खरसावां : मुसलमान केवल जानवरों की ही नहीं, बल्कि बुरी आदतों की भी कुर्बान. कुर्बानी लोगो में त्याग की भावना जगाती है. खास जानवरों को सवाब की नीयत से अल्लाह की राह में जबहा करें. कुर्बानी हजरत इब्राहीम अलैहिस सलाम की सुन्नत है. मोहम्मद साहब ने भी कुर्बानी का हुक्म दिया है. कुरआन पाक के सूरह कौसर में अल्लाह फरमाता है तुम अपने रब के लिए नमाज पढों और कुर्बानी करो. उक्त बाते खरसावां के मदीना मस्जिद बेहरासाई में ईद उल अजहा की नमाज अदा करने के बाद मौलाना मो आसिफ इकबाल रिजवी ने कही.
कदमडीहा के मौलाना ने कहा कि दुनिया में मोहब्बत व भाईचारे से बढकर कुछ भी नही. यही इंसानियत की नेक राह है. इस पर चलकर ही देश व समाज की तरक्की संभव है. खरसावां में गुरूवार को त्याग व भाईचारंगी की प्रतीक बकरीद अकीदत के साथ मनाई गई. ईद उल अजहा की नमाज खरसावां के मदीना मस्जिद बेहरासाई, मस्जिद निजामुददीन गोढपुर, मस्जिदे बिलाल कदमडीहा एवं जामिया मस्जिद कदमडीहा में अदा की गई. कुर्बानी की फजीलतें बयान करते हुए ईमानों ने ईद-उल-अजहा पढाई. बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह से नहा धोकर नमाजी पोशाक पहन कर मस्जिदों की और चल पडे. मस्जिद में जमा होकर कताबद्व तरीके से ईद उल अजहा की नमाज अदा की. साथ ही इमाम से खुतबे भी सुनी.
इसके अलावा खुदा से मुसलमानों ने अमन-चैन व खुशहाली के साथ शांति व मगफिरत की सामूहिक दुआ की. खुतबे सुनने के बाद लोगों ने गले लगाकर एक दूसरे को बकरीद की मुबारकबाद दी. नमाज अदा करने के बाद कुर्बानियों का दौर शुरू हो गया. ईद उल अजहा से तीन दिनो तक कुर्बानी की रस्म अदा की जाती है. हजारों लोगों ने ईद उल अजहा नमाज अदा की.
इस्लाम में कुर्बानी की है बडी अहमियत
इस्लाम में कुर्बानी की बडी अहमियत है. यह एक तरह से माल की इबादत भी है. कुर्बानी दुनिया के तमाम मुसलमानों पर फर्ज है, जो हैसियत रखते है. मोहम्म्द स. ने फरमाया जिसने नेक नीयत, खुशी और हलाल तरीके से कुर्बानी दी उसे जहन्नुम की आग से बचा लिया जाएगा.
सैकडों बकरों की गई कुर्बानी
अल्लाह की राह पर सैकड़ों की संख्या में बकरों की कुर्बानी दी गई. बकरीद की नमाज के साथ शुरू हुई कुर्बानी अगले तीन दिनों तक चलेगी. ऐसी मान्यता है कि हजरत इब्राहिम अलहीसलाम ने अपने बेटे इस्माइल अलहीसलाम से स्वप्न में कहा कि तुम सबसे प्रिय वस्तु की कुर्बानी दीे. हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के खातिर इस काम को कर दिखाया. इकलौते बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बानी देने के दौरान हजरत इब्राहीम की आंखो में पटटी बंधी थी. अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार हजरत जिबरईल को भेजकर हजरत इस्माइल की जगह एक दुम्बे (बकरा) को रखवा दिया. हजरत इब्राहीम ने जब बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो उनकी जगह वह बकरा कुर्बान हो गया. इसलिए इस याद को ताजा रखने के लिए बकरीद के मौके पर जानवरों की कुर्बानी दी जाती है.