सरायकेला: पिछले एक दशक के कोल्हान के ग्रामीण क्षेत्रों में दो तरह के ग्राम प्रधान को लेकर विवाद है. समय- समय पर यह विवाद कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती हैं. अब फिर इस विवाद के पंख निकल आए हैं.
दरअसल, कोल्हान प्रमंडल संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल हैं. यहां आदिवासियों के बीच वर्षों पुरानी रूढ़ि प्रथा प्रचलित हैं. जिमसें पारम्परिक ग्राम प्रधान होते हैं, लेकिन अलग झारखंड राज्य गठन के बाद सरकार की ओर से विभिन्न गांवों में ग्राम प्रधान का चुनाव कराया गया था. सरकार द्वारा कराए गए ग्राम प्रधान चुनाव को कुछ आदिवासी समाज के लोग अवैध मानते हैं. इसी के कारण पारम्परिक ग्राम प्रधान और सरकारी प्रकिया वाले ग्राम प्रधान के बीच विवाद रहती हैं. मंगलवार को अम्बेडकराईट पार्टी ऑफ इंडिया की ओर से सरायकेला- खरसावां के उपायुक्त को एक ज्ञापन सौंपा गया. ज्ञापन में कहा गया है, कि पारंपरिक ग्राम प्रधान एवं तथाकथित फर्जी ग्राम प्रधान को लेकर पांचवी अनुसूचित क्षेत्र के प्रत्येक राजस्व ग्राम में मतभेद एवं भेदभाव उत्पन्न हो रहा है, उसकी स्पष्टीकरण सुनिश्चित की जाए, यानी आमजनों को स्पष्ट किया जाय कि लोग किसे अपना ग्रामप्रधान मानें. उपायुक्त को दिए गए ज्ञापन में कहा गया है, कि अनुसुचित क्षेत्र में आदिवासियों के उत्थान के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार की ओर से कल्याणकारी योजनाओं को प्रस्तावित किया जाता है. उन योजनाओं के आवंटन एवं सुचारू रूप से क्रियान्वयन हेतु प्रत्येक राजस्व गांव में ग्रामसभा एवं टोला ग्रामसभा होती हैं, जिसमें पारंपरिक ग्रामप्रधान (माझी, मुंडा, पाहन, मानकी, परगना आदि पदनाम दिया जाता हैं. ज्ञापन में बताया गया है कि पेसा कानून 1996 एवं झारखंड पंचायत राज अधिनियम – 2001 की धारा 8(|||) , संविधान के अनुच्छेद 13(3)(क) और अनुच्छेद 244(1) के तहत हमें संवैधानिक एवं कानुनी शक्ति प्रदान करता है. जिससे पारंपरिक रीति रिवाजों के प्रति जागरूकता एवं जिम्मेवारी बढ़ेगी. ज्ञापन सौंपने वालों में जिला अध्यक्ष रूपाय माझी, सचिव संजय कुमार टुडू, भगवान टुडू, राजु अन्य मौजूद थे.