राजनगर: आदिवासी सेंगेल अभियान के संस्थापक व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने बुधवार को राजनगर में कहा कि भारत के आदिवासियों की अस्तित्व एवं भाषा-संस्कृति को बचाने के लिए सरना धर्म कोड बहुत जरूरी है. आदिवासी हिन्दू, ईसाई या सिख नहीं हैं. आदिवासी प्रकृति पूजक हैं. सालखन ने कहा, कि पूरे देश में 15 करोड़ से अधिक आदिवासी निवास करते हैं. 2011 के जनगणना में अन्य कोई कॉलम में 50 लाख से अधिक आदिवासियों ने सरना धर्म लिखा लिखा था. हमने पिछले जनगणना में 44 लाख जैन धर्म वालों को पीछे छोड़ दिया है. संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हमारी यह हमारी मौलिक अधिकार है. आदिवासी सेंगेल अभियान झारखंड, उड़ीसा, बिहार, बंगाल और असम में एक सौ लाख आदिवासियों से सरना धर्म लिखवाने का कार्य करेगी. एक लाख लोगों के साथ दिल्ली में सरना धर्म कोड की मांग को लेकर वृहत आंदोलन करेंगे. इसके बावजूद भी हमें भारत सरकार सरना धर्म कोड नहीं देती है तो सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. इसके लिए अभी पूरे पांच राज्यों के 50 जिलों में आदिवासी सेंगेल अभियान का सरना सागड़ (रथ) भ्रमण कर आदिवासियों को जागरूक कर रही है. इस दौरान सालखन मुर्मू ने झारखंड सरकार से सरना संथाली भाषा को प्रथम राजभाषा का दर्जा देने, पढ़े- लिखे युवाओं को रोजगार देने, डोमेसाइल को लागू करने तथा सीएनटी एसपीटी एक्ट को कड़ाई से लागू करने की मांग की. इस दौरान सुमित्रा मुर्मू, जुनियर मुर्मू, विमो मुर्मू, आम्पा हेम्ब्रम, वीरे हेम्ब्रम, श्रीमती हेम्ब्रम,शांखो टुडू, सुनाराम हेम्ब्रम, घासीराम किस्कु, खेलाराम सोरेन, धनू टुडू, दुर्गा चरण टुडू आदि उपस्थित थे.
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