अपने ही पांव में मारी कुल्हाड़ी…? दिल्ली के गरियारों में कांग्रेस पार्टी के बड़े नेतागण अपनी-अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते रहे राहुल गांधी को ‘पप्पू’ का तमगा देने वाले सिद्धू ने उसे पप्पू बना ही दिया कैप्टन अमरिंदर ने शुरु से ही कॉमेडी सर्कस के किंग सिद्धू का विरोध किया प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने के दौरान ही दोनों नेताओं में जमकर तकरार हुई थी कैप्टन ने सिद्धू का विरोध किया था कांग्रेस पार्टी को सिद्धू कपिल शर्मा का शो समझकर मनमानी करने में अड़े रहे वरिष्ठ कांग्रेसजनों का स्पष्ट कहना है कि आरएसएस और भाजपा की अंदरुनी लाबी पंजाब में अपनी रणनीति में कामयाब हो गई
राजनीति में इसको बोलते हैं अपने पांव में कुल्हाड़ी मारना! राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी में अपनी नासमझी को पंजाब के फैसले पर प्रकट किया है। उसने कैप्टन अमरिंदर सिंह से इस्तीफा लेकर अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार लिया है! राहुल गांधी ने इस तरीके से कैप्टन अमरिंदर सिंह को जो बरसो पुराने कांग्रेसी परिवार से जुड़े हुए है ऐसे नेताओं को नए आए हुए जिसको कांग्रेस की फिलॉसफी का ज्ञान ना हो, जो कांग्रेस को समझ ही नहीं सकते ऐसे इंसान के चक्कर में पड़कर अपनी पार्टी को गड्ढे में धकेल दिया और कैप्टन अमरिंदर का इस्तीफा लेकर नासमझी का परिचय दिया। 100 साल से ज्यादा पुरानी कांग्रेस पार्टी के इतिहास में पहले भी कभी भी इंदिरा जी ने या राजीव गांधी जी ने पुराने कर्मठ कांग्रेस के कार्यकर्ता, नेता या कांग्रेस की परंपरा का पालन करने वालों का इस तरीके से अनादर और बेइज्जती नहीं की थी।
नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नए नवेले अभी-अभी बने नए कांग्रेसी नेता जिनको कांग्रेस के इतिहास को समझने में लंबा समय लगेगा और जिन्होंने कांग्रेस की सियासत को अपने कॉमेडी सर्कस के अनुसार बनाने की कोशिश की इसका भुगतान कांग्रेस पार्टी को भविष्य के चुनाव में देखने को मिल सकता है। आप पार्टी के नेता ने स्पष्ट रूप से कहा राजनीति में नवजोत सिंह सिद्धू एक कामेडियन का किरदार निभा रहे हैं जो कहीं ना कहीं इस फैसले से सही साबित हो गया। जिस तरीके से नौटंकी और नाटक कॉमेडी सर्कस में ताली बजा-बजाकर नवजोत सिंह सिद्धू कॉमेडी करते थे आने वाले समय में उसी स्तर का राजनीतिक रंगमंच अब देखने को मिलने वाला है।
कांग्रेस की परंपरा के खिलाफ जाकर राहुल गांधी ने कर्मठ पुराने कांग्रेस के नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से जो बाहर किया है उसका आम कांग्रेसजनों पर असर बहुत गंभीर और निराशाजनक तरीके से देखने को मिल रहा है। पूरे हिंदुस्तान के कांग्रेसी कल्चर के पुराने कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की नासमझी को नवजोत सिद्धू की कॉमेडी सर्कस का एक मोहरा मान रहे हैं, कहीं ना कहीं राहुल गांधी नवजोत सिंह सिद्धू के कॉमेडी सर्कस के एक सेलिब्रिटी बन गए और अपनी पार्टी को आज खत्म करने के लिए घर ले जाकर अंतिम कील पंजाब में ठोक दिया।
कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं की जो एक लॉबी है उसके अनुसार कांग्रेस के वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अब यह कहा नहीं जा सकता कि ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ता और पुराने कार्यकर्ताओं की कोई पूछ परख कांग्रेस पार्टी में रह गई है। पार्टी के लिए समर्पित और निष्ठावान नेता जो राहुल गांधी की नासमझी को समझने लगे हैं वे अब हतोत्साहित होने लगे हैं। बोलने के लिए राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी का बेड़ा गर्क कर रखा है। नए नवेले जो कांग्रेस के नेता पैदा होते हैं जिसको कांग्रेस पार्टी की राजनीति का ज्ञान नहीं है। कांग्रेस पार्टी के इतिहास की जानकारी नहीं है, ऐसे नेताओं के चक्कर में पड़कर कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार एक नेता ने अपनी बात को रखते हुए स्पष्ट कहा कि इसी तरीके से मैंने अपने 50 साल के इतिहास में कांग्रेस को निर्णय लेते देखा चिमन भाई पटेल की सरकार भी गुजरात में इंदिरा जी के समय काल में इस्तीफा मांगने जाने पर ऐसे ही चली गई थी। जो कांग्रेसी इतिहास में और भारत के इतिहास में आज तक भुलाया नहीं जा सकता। उसके बाद आज तक गुजरात में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी। इंदिरा जी के शासनकाल में इसी तरीके की घटना शरद पवार मुख्यमंत्री महाराष्ट्र के थे तब भी हुई थी शरद पवार ने इंदिरा जी को पुलोद संगठन बनाकर महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी को चलता किया था। इससे भी कांग्रेस पार्टी ने सबक नहीं लिया। यह घटना याद करते हुए महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने स्पष्ट कहा कि एआर अंतुले पूर्व मुख्यमंत्री महाराष्ट्र ने इंदिरा जी के पास जाकर बड़ी विनती की थी कि शरद पवार को कांग्रेस से बाहर नहीं निकाला जाए। लेकिन नए नवेले कांग्रेस में आए नेताओं ने इंदिरा जी के कान भरकर शरद पवार को कांग्रेस से बाहर निकलवा दिया। इसी कारण से लेकर आज तक कांग्रेस को महाराष्ट्र में स्थिर और पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने का अवसर ही प्राप्त नहीं हो रहा है और इसके बाद ही एनसीपी का उदय हुआ। इसी तरह आंध्र प्रदेश में वायएसआर के निधन के बाद जगन रेड्डी जो वायएसआर के उत्तराधिकारी हो सकते थे। राहुल गांधी ने जगन रेड्डी को दरकिनार करते हुए किसी और बाहरी नेता पर विश्वास कर आंध्र में जो चाल चली जिससे कांग्रेस पार्टी का आंध्र में नाम लेने वाला कोई नहीं रहा। और जगन रेड्डी अलग होकर आंध्र में अपनी सरकार चला रहे हैं।
सिद्धु पर भरोसे की पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शनिवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। कैप्टन की इस्तीफे के बाद कांग्रेस में हलचल मच गई है। कैप्टन ने इस्तीफा देने के बाद तल्ख शब्दों में कहा है कि उसे अपमानित कर इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया गया। पंजाब कांग्रेस में दो साल पहले नवजोत सिंह सिद्धु के पार्टी में शामिल होने के साथ ही गुटबाजी और विरोध की राजनीति हावी थी। नवजोत सिंह सिद्धु ने कैप्टन के विरोध का झंडा बुलंद किया और हाईकमान को अपने विश्वास में लेकर अमरिंदर सिंह को हटाने में कामयाब हो गए। कांग्रेस में नेता इसे राहुल गांधी का बोल्ड फैसला बता रहे हैं, लेकिन राजनीति के जानकार इसे राहुल गांधी की एक और बड़ी गलती के तौर पर देख रहे हैं। कांग्रेस में पिछले कुछ समय से वरिष्ठ नेता और पदाधिकारी हाशिए पर हैं। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने दम पर कांग्रेस को जिंदा रखा और दो बार सरकार बनाने में सफल रहे। पिछले चुनाव में वे अपने दम पर कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लेकर आए, यहां तक की इस दौरान उन्होंने राहुल गाधी को भी राज्य में चुनाव प्रचार से दूर रखा था। हालाकि सरकार बनने के बाद वन मेन आर्मी की तरह काम करने और संगठन को तवज्जो नहीं देने के कारण उनके अपने समर्थक मंत्री-विधायक भी उनसे नाराज रहने लगे जिसका फायदा नवजोद सिद्धु ने उठाया और इसी नाराजगी को उसने कैप्टन के खिलाफ हथियार बनाकर उसे सत्ता से विमुख कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि कैप्टन से इस्तीफा लेकर क्या राहुल गांधी ने पंजाब में कांग्रेस को पुनगर्ठित और मजबूत करने का काम किया है या वे सिद्धु के झांसे में आकर अपना ही हिट विकेट कर लिया है यह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से साबित हो जाएगा। दिन भर की हलचल के बाद कैप्टन का इस्तीफा : पंजाब में कांग्रेस ने नया सीएम बनाना तय कर लिया है। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव है और पार्टी लंबे समय तक विवाद की स्थिति को नहीं झेल सकती थी। ऐसे में अमरिंदर पर आलाकमान ने दबाव डालकर इस्तीफा ले लिया। अगर पिछले कुछ दिन के घटनाक्रम को देखें तो साफ हो गया था कि अमरिंदर की कुर्सी जा रही है। कैप्टन की जानकारी के बगैर चंडीगढ़ में विधायकों की बैठक बुलाना इसकी अहम कड़ी रही। कैप्टन के खिलाफ मुहिम में 40 विधायकों के दस्तखत वाले खत से शुरू हुआ विवाद निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया। कांग्रेस आलाकमान ने इस बैठक को बुलाने के लिए साफ तौर से अमरिंदर की अनदेखी की। इस बीच शुक्रवार को रातोंरात तय कर लिया गया कि शनिवार को चंडीगढ़ में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होगी। इससे कहीं न कहीं साफ है हो गया था कि पार्टी ने उनकी विदाई पर मुहर लगा दी है। कैप्टन को 25 विधायकों का सपोर्ट : जिस वक्त कैप्टन अमरिंदर इस्तीफा देने के लिए राजभवन निकले, उस वक्त उनके आवास पर 19 कांग्रेस विधायक मौजूद थे। बताया जा रहा है कि कम से कम 25 विधायक उनके समर्थन में हैं। ऐसे में कांग्रेस मुख्यमंत्री भले ही किसे भी बनाए, पार्टी के भीतर पनपे असंतोष को दबा पाना हाईकमान के लिए चुनौती बनी रहेगी। 6 महीने में ही पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस्तीफे के बाद अमरिंदर ने कह दिया है कि फ्यूचर पॉलिटिक्स का विकल्प खुला हुआ है। उन्होंने कहा कि साथियों से चर्चा के बाद भविष्य की राजनीति पर फैसला लेंगे। भाजपा के लिए ये बड़ा मौका बन सकता है : कैप्टन के दिल में कांग्रेस के अलावा भाजपा के लिए भी प्यार कई बार दिखाई दिया है। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले जब कांग्रेस ने उन्हें नजरंदाज किया था, तब भी वे भाजपा में जाने का मन बना चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी नजदीकी छिपी नहीं है। अमरिंदर जब भी दिल्ली जाते हैं तो उन्हें क्करू से मुलाकात का वक्त आसानी से मिल जाता है। वे अक्सर गृहमंत्री अमित शाह से भी मिलते रहते हैं। अब कैप्टन के इस्तीफे के बाद भाजपा इसे अपने लिए बड़े मौके में बदल सकती है। सूत्रों के मुताबिक, कैप्टन भाजपा लीडरशिप से संपर्क में बने हुए हैं।
देश में इमर्जेंसी लगाने के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हार मिली और जनता पार्टी की सरकार बनी थी। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस पार्टी को कई सीटों से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वसंतराव दादा पाटील उनकी जगह महाराष्ट्र के सीएम बने। बाद में कांग्रेस में टूट हो गई और पार्टी कांग्रेस (पुलोद) तथा कांग्रेस (अर्श) में बंट गई। शरद पवार ने बारामती निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की। वर्ष 1978 में जब आपातकाल की वजह से इन्दिरा गांधी का विरोध जोरों पर था, तब कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद विपक्षी जनता पार्टी के साथ मिलकर शरद पवार ने प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से एक अलग पार्टी का निर्माण किया। लेकिन जब वर्ष 1980 में इन्दिरा गांधी वापस सत्ता में लौटीं तब शरद पवार के इस दल को फरवरी 1980 में खारिज कर दिया। आगामी चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी ए.के. अंतुले ने जीतकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद को संभाला। पवार ने 1981 में कांग्रेस प्रेसीडेंसी पदभार को संभाल लिया। इसके बाद 90-95 के दौर में कांग्रेस से बाहर जाकर नेशनल्सिट कांग्रेस पार्टी बना ली।
आप नेता राघव चड्डा ने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू पर निशाना साधते हुए कहा था कि वो राजनीति के राखी सावंत है। ये बयान सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया था। राघव चड्डा का यह बयान राखी सावंत को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और उसने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी।
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