चाईबासा/ Ashish Kumar Verma कोल्हान विश्वविद्यालय और भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की ओर से चाईबासा में आदिवासी दर्शन, संस्कृति एवं परंपरा पर विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज समापन हो गया.
पूरे देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए बुद्धिजीवियों ने आदिवासी दर्शन, संस्कृति और परंपरा की ऐतिहासिकता और आज के परिप्रेक्ष्य में उसकी आवश्यकता पर अपने विचार रखें. समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ जयंत शेखर ने कहा कि जब राम का बनवास होता है तब भी यही एक समुदाय है जो 14 साल उनके साथ रहता है और भगवान जिनके सबसे नजदीक होते हैं. माता शबरी के झूठे बेर को भी भगवान ने सहर्ष स्वीकार किया. जनजातियों के कारण ही अखंड भारत सदा से सुरक्षित रहा और बाद में अंग्रेजों के कारण इसका विघटन हुआ. उन्होंने कहा कि हम सबको इस संस्कृति से काफी कुछ सीखने की जरूरत है. इसी उद्देश्य से चाईबासा में कोल्हान विश्वविद्यालय की स्थापना भी हुई.
कोल्हान विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू डॉ एससी दास ने कहा कि आधुनिकता की दौड़ में आदिवासी समाज को पिछड़ा के रूप में स्थान दे दिया गया. जबकि इस समाज की व्यवस्था और संरचना बहुत बेहतरीन है. वह अपने आप में खुश रहते हैं. सरकार तरह-तरह की विकास योजनाएं लाती है और कार्य करती है. इसके बावजूद विकास नहीं हो पा रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि जो लोग नियम और योजनाएं बनाते हैं वह आदिवासी जीवन दर्शन, संस्कृति और परंपरा को समझते ही नहीं है.