गया/ Pradip Ranjan गया में चल रहे पितृपक्ष मेला के तीसरे दिन शहर के कोरमा गांव के समीप स्थित प्रेतशिला पर्वत पर पिंडदान का प्रावधान है. जिन लोगों की भी अकाल मृत्यु हो जाती है, उनका पिंडदान यहां पर किया जाता है. इस पिंडवेदी को प्रेतशिला पहाड़ भी कहा जाता है. जिन लोगों का यहां पिंडदान किया जाता है, उनकी फोटो इस पर्वत पर स्थित वटबृक्ष के ऊपर लगा दी जाती है, ताकि उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सके.
इसी कामना के साथ देश के विभिन्न राज्यों से हजारों की संख्या में लोग प्रेतशिला पिंडवेदी पहुंचे और अकाल मृत्यु के शिकार हुए लोगों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया.
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इस संबंध में स्थानीय पंडा मनोज गिरी ने बताया कि यह प्रेतशिला पहाड़ है, यहां पिंडदान करने से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है. ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की अकाल मृत्यु होती है, वे प्रेत के रूप में इस पर्वत पर वास करते हैं. यही वजह है कि पितृपक्ष के समय तो लोग इस प्रेतशिला पर्वत पर आते हैं, लेकिन अन्य दिनों में यहां कोई भी नहीं आता. यहां पिंडदान करने से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है. पहाड़ के ऊपर बड़ी सी शीला है, जिस पर भगवान ब्रह्मा के पैर के निशान हैं और उन पर तीन लकीरें है, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा जाता है. इस जगह पर पिंड अर्पित किया जाता है, साथ ही सत्तू उड़ाने का प्रावधान है.
ऐसा माना जाता है कि सत्तू उड़ाने से जो प्रेत बने हैं, वे सत्तू को लेकर बैकुंठ चले जाते हैं और उन्हें प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है. यही वजह है कि अकाल मृत्यु के शिकार लोगों को यहां पिंडदान किया जाता है.
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मनोज गिरी (स्थानीय पांडा)
वही प्रेतशिला पिंडवेदी पर पिंडदान करने आए तीर्थ यात्री सज्जन अग्रवाल ने कहा कि ऐसा सुना था कि आकाल मृत्यु के शिकार लोगों का गयाजी के प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान किया जाता है. जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसी वजह से यहां पर पिंडदान करने आए हैं, ताकि पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो और उनकी आत्मा शांत हो. इस प्रेतशिला पिंडवेदी पर पिंडदान करने से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.
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सज्जन अग्रवाल (तीर्थयात्री)