दुमका (Mohit Kumar) दुमका में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ शुक्रवार को राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव का शुभारंभ किया गया. सात दिनों तक चलने वाले इस मेले को लेकर कई भ्रांतियां है. इसे अन्धविश्वास माने या फिर हकीकत. कहा जाता है कि जो भी प्रतिनिधि या प्रशासन इस मेले का उद्घाटन करते है तो उसकी सत्ता या कुर्सी चली जाती है. यही वजह है कि इस मेले का उद्घाटन ना कभी मंत्री करते है और ना कभी जिला प्रशासन के अधिकारी. ऐसे में मेले का उद्घाटन ग्राम प्रधान से कराकर इस दंश से बचकर अपनी पीठ भी थपथपा लेते है.
*जनजातीय मेला को राजकीय दर्जा प्राप्त है. प्रकृति की गोद में बसा है मयूराक्षी नदी*
यह मेला दुमका के मयूराक्षी नदी के किनारे प्रकृति की गोद में बसा हुआ है. एक सप्ताह तक चलने वाला जनजातीय मेला की शुरूआत 1890 में संथाल परगना के डिप्टी ब्रिटिश कमिश्नर आर कस्टेयर्स ने की थी. करीब 128 साल पुराने इस जनजातीय मेला के सबंध में कहा जाता है कि 1855 हुये में संथाल हूल क्रांति के बाद कस्टेयर्स ने आदिवासियों से खोयी हुई विश्वास और ब्रिटिश हुकूमत के प्रति बढ़ी दूरियों को मिटाने के लिए इस मेले की शुरुआत की गयी थी.
*कभी जनजातीय हिजला मेला के नाम से जानते थे लोग*
पहले यह मेला जनजातीय हिजला मेला के नाम से जाना जाता था. बाद में झारखंड सरकार ने इस मेला को राजकीय दर्जा देकर मेला को गौरव और इसकी विशेषता को सामने लाने की कोशिश की. कहा जाता है अविभाजित बिहार के समय इस मेले का उद्घाटन एक मुख्यमंत्री ने की थी जहां उनकी सत्ता चली गई थी. वहीं झारखंड बनने के बाद इस मेले का उद्घाटन राज्य के मंत्री ने की तो उनकी कुर्सी गई तो फिर दोबरा नहीं मिली. यही कारण है कि कोई मंत्री नहीं आते.