CENTRAL DESK नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सहारा समूह को बड़ा झटका दिया है. जहां मंगलवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ ने केंद्रीय रजिस्ट्रार को निवेशकों के आवेदनों की जांच के बाद दो सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, जिसमें दावा किया गया था कि उन्हें परिपक्वता के बाद भी अपना पैसा नहीं मिला है.
इस बीच हाईकोर्ट ने सहारा ग्रुप की सोसाइटियों को कोई भी नई जमा राशि स्वीकार करने से रोक दिया है.
कोर्ट सहारा क्रेडिट को- ऑपरेटिव सोसाइटी और सहारा ग्रुप की दो अन्य सोसायटियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्रीय रजिस्ट्रार के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें नए जमा लेने के साथ- साथ मौजूदा सदस्यों के निवेश या जमा को नवीनीकृत करने से रोक दिया गया था. हालांकि केंद्रीय रजिस्ट्रार के आदेश पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल जनवरी में रोक लगा दी थी, लेकिन याचिकाओं में सैकड़ों लोगों ने सोसायटी में निवेशक होने का दावा किया था. आवेदनों में आरोप लगाया गया है, कि भले ही उनका निवेश परिपक्व हो गया हो, लेकिन समितियों ने अभी तक उन्हें परिपक्व राशि का भुगतान नहीं किया है. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने अदालत को बताया कि लगभग सात से दस करोड़ लोगों ने इन सोसायटियों में निवेश किया है और अब उनमें से हजारों ने विभिन्न मंचों पर शिकायत की है, कि उनके पैसे का भुगतान नहीं किया जा रहा है. शर्मा ने प्रस्तुत किया कि इन सोसायटियों से 60,000 करोड़ से अधिक निकाले गए और लोनावाला के पास एम्बी वैली प्रोजेक्ट में निवेश किया गया. यह प्रस्तुत किया गया था कि इन सोसाइटियों से 2,000 करोड़ से अधिक की राशि भी ली गई और समूह के प्रमोटर सुब्रत रॉय की जमानत सुरक्षित करने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के पास जमा कर दी गई.
सहारा समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसबी उपाध्याय ने आवेदनों और शिकायतों की वास्तविकता पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि सरकार के आदेशों के संदर्भ में, उनसे निपटने के लिए एक आंतरिक तंत्र बनाया गया है. उपाध्याय ने कहा, कि शिकायतों की राशि निवेशकों की कुल संख्या के 0.006 प्रतिशत से भी कम है, और यह कि सोसायटी ने जनवरी 2021 से अपने जमाकर्ताओं को 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया है. उन्होंने सोसाइटी के एक विशेष ऑडिट का हवाला दिया कि रिपोर्ट उनके पक्ष में थी, और अदालत से अनुरोध किया कि वह आगे जमा स्वीकार करने पर कोई रोक न लगाए क्योंकि यह एक तरीका है, जिससे वह अपने निवेशकों को भुगतान कर सकता है. उच्च न्यायालय ने हालांकि कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपनी वास्तविकता दिखाने की जरूरत है.
हालांकि बेंच पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा समाज के मामलों की जांच का आदेश देने या शिकायतों की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायिक सदस्य को नियुक्त करने के लिए इच्छुक थी, लेकिन बाद में इसने केंद्रीय रजिस्ट्रार को कार्य पूरा करने के लिए कहा, साथ ही कहा कि इसके लिए बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है.
इससे पूर्व सोमवार को लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया कि सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने 232.85 लाख निवेशकों से 19400.87 करोड़ रुपये और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड ने 75.14 लाख निवेशकों से 6380.50 करोड़ रुपये एकत्रित किए है. वहीं, दूसरी ओर पूंजी बाजार नियामक सेबी (SEBI) अब तक ब्याज समेत कुल 138.07 करोड़ रुपये ही वापस कर पाया है.
सहारा इंडिया के निवेशकों को उनका पैसा कब वापस मिलेगा के सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री भाने कहा कि सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड नाम की दो विशेष सहारा कंपनियों से संबंधित आदेश जारी किए हैं. वहीं, दूसरी ओर 31 दिसंबर, 2021 तक ‘सेबी-सहारा रिफंड’ खाते में 15,503.69 करोड़ रुपये जमा किए हैं. ऐसे में रिफंड के लिए आवेदन मिलने पर पैसे वापस किए जाएंगे. वित्त राज्यमंत्री ने कहा सेबी को 81.70 करोड़ रुपये की कुल मूल राशि के लिए 19,644 आवेदन प्राप्त हुए हैं. इनमें से सेबी ने 138.07 करोड़ रुपये की कुल राशि 48,326 ओरिजिनल बॉन्ड सर्टिफिकेट / पासबुक वाले 17,526 एलिजिबल बॉन्डहोल्डर्स को रिफंड किया है.
सरकार ने बताया कि बाकी शेष आवेदन या तो SIRECL और SHICL द्वारा उपलब्ध कराये गए दस्तावेजों और डाटा में उनका रिकॉर्ड ट्रेस नहीं हो पाने के कारण या सेबी द्वारा पूछे गए प्रश्नों को लेकर बांडहोल्डर्स से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं होने के कारण बंद कर दिए गए.