चाईबासा/ Jayant Pramanik पश्चिमी सिंहभूम जिले में आज लोकतंत्र बचाओ अभियान का प्रतिनिधिमंडल सिंहभूम सांसद जोबा माझी से मिलकर क्षेत्र के जन मुद्दों और समस्याओं पर चर्चा किया और संलग्न मांग पत्र दिया. प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि अभियान ने पिछले 1.5 साल से लगातार सिंहभूम समेत राज्य की कई लोक सभा सीटों पर लोकतंत्र पर मंडरा रहे खतरों और जन मुद्दों पर लोगों को जागरुक और संगठित किया था. इसका परिणाम पांचो आदिवासी सीटों पर देखने को मिला है.
प्रतिनिधिमंडल ने सांसद से कहा कि सिंहभूम की जनता ने चुनाव में स्पष्ट रूप से संविधान और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में निर्णय लिया है. इसलिए यह आशा है कि सांसद मोदी सरकार की हर जन विरोधी, संविधान विरोधी व समाज को बांटने वाली नीति व योजना का सड़क से संसद तक विरोध करेंगी.
प्रतिनिधिमंडल ने पहला मांग रखा कि तुरंत ईचा खरकई बांध परियोजना (कैनल सहित) रद्द किया जाए एवं मोदी सरकार के कई आदिवासी-विरोधी नीतियों व योजनाओं पर सांसद का ध्यान केन्द्रित किया जिन्हें तुरंत रद्द करना चाहिए. भूमि स्वामित्व कार्ड परियोजना, वन संरक्षण अधिनियम संशोधन 2023 व व्यवसायिक खनन नीति को रद्द करना चाहिए. आने वाले दिनों में ऐसी किसी भी परियोजना को लागू नहीं करना चाहिए जो आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है व जिसमें ग्राम सभा ने सहमती नहीं दी है. साथ ही, तीनों नए अपराधिक कानून – भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता व भारतीय साक्ष्य संहिता के कार्यान्वयन पर तुरंत रोक लगना चाहिए. इन दमनकारी जन विरोधी कानून का प्रमुख उद्देश्य है अलोकतांत्रिक पुलिसिया राज की स्थापना करना. सांसद को संसद में 2011 से लंबित जनगणना को तुरंत करवाने की मांग भी रखनी चाहिए. विलम्ब के कारण करोड़ों लोग अनेक अधिकारों व योजनाओं से वंचित हैं. साथ ही, सरना कोड लागू किया जाए एवं हो, मुंडारी, कुडुख समेत सभी आदिवासी भाषाओं को संविधान की आठवी अनुसूची में डाला जाए.
प्रतिनिधिमंडल ने क्षेत्र के कई विशेष मुद्दों पर कार्यवाई की मांग की. वन अधिकार कानून अंतर्गत अनेक सामुदायिक वन पट्टों के दावे लंबित हैं. अनेक वन ग्रामों को अभी तक राजस्व ग्राम का दर्जा नहीं मिला है. तुरंत इन पर कार्यवाई की जाए. यह भी देखा गया है कि स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बल आदिवासी भाषा, रिति – रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन मूल्यों के प्रति संवेदनशील नहीं होते हैं. उनकी संवेदनशीलता सुनिश्चित की जाए. साथ ही, पश्चिमी सिंहभूम आदिवासी बहुल क्षेत्र है अतः स्थानीय प्रशासन के निर्णायक पदों पर आदिवासियों को प्राथमिकता दी जाए.
क्षेत्र में आदिवासी-मूलवासी बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन में केंद्रीकृत किचन एक बड़ी समस्या बन गयी है. प्रतिनिधिमंडल ने मांग किया कि ज़िला के चार प्रखंडों में मध्याह्न भोजन में केंद्र्क्रित किचन व्यवस्था को बंद किया जाए और पूर्व की तरह विद्यालय में ही ताज़ा और गरम खाना बनाकर बच्चों को दिया जाए.
प्रतिनिधिमंडल ने क्षेत्र में कृषि, पलायन, शिक्षा व स्वास्थय के मुद्दे भी उठाये. क्षेत्र के हज़ारो युवा रोज़गार के लिए पलायन करते हैं. अनेक महिलाएं मानव तस्करी का शिकार भी बन जाती हैं. इनके सहयोग के लिए विशेष कोषांग की स्थापना की जाए और स्थानीय रोज़गार की व्यवस्था हो.सभी विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की जाए. क्षेत्र के उपस्वास्थ्य केन्द्रों व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर हो, उनकी उपस्थिति नियमित रूप से रहे और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो. ज़िला खनिज फण्ड की राशी का बंदरबाट रुके एवं ग्राम सभा के निर्णय अनुसार मुख्यतः कुपोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा,कृषि व रोज़गार के मुद्दों के निराकरण के लिए हो. डीएमएफ का कार्यान्वयन ग्राम सभा व ग्राम पंचायतों को दिया जाए और न कि केवल लाइन डिपार्टमेंट व ठेकेदारों को.
प्रतिनिधिमंडल में बोजाय कालुन्दिया, चम्ब्रा सुंडी, डोबरो बारी, हेलेन सुंडी, मानकी तुबिड, नारायण कांडेयांग, जॉन कायम, जिंगी जोंको, राजेश प्रधान, संदीप प्रधान, सुरेश जोंको, शांति तिरिया, सिदियु कायम, सुनीता डोंगो, तुराम मुन्दुईया समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे.