DESK बुधवार को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी संकल्प यात्र समाप्त करने के बाद घाघीडीह जेल जाकर पिछले छः महीने से जेल में बंद भाजपा नेता अभय सिंह से मिले. वे यहां करीब 45 मिनट रुके. मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने इसके पीछे राजनीति साजिश करार दिया. उसके बाद मरांडी आदित्यपुर पहुंचे जहां उन्होंने ईचागढ़ के पूर्व विधायक रहे अरविंद सिंह उर्फ मलखान सिंह के संरक्षण में निर्माणाधीन प्रवीण सेवा संस्थान के पूजा पंडाल का अवलोकन किया. हालांकि यहां मरांडी ने अरविंद सिंह के जल्द बीजेपी में वापसी के संकेत देकर एकसाथ कई सवाल समर्पित भाजपाइयों के लिए छोड़ गए हैं जिसपर राजनीतिक विश्लेषक अपने- अपने हिसाब से आंकड़े बिठा रहे हैं, मसलन अरविंद सिंह के भाजपा में आने पर उनकी भूमिका पार्टी में क्या होगी ? उन्हें कहां से टिकट दिया जाएगा ? क्या पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता उन्हें स्वीकार करेंगे ? खेमों में बंटी बीजेपी का एक धड़ा अरविंद सिंह को मौसम विज्ञानी मानता है और उनके खिलाफ है, तो दूसरा उनके पक्ष में है. तीसरा धड़ा खुद बाबूलाल मरांडी का है. मतलब मरांडी ने अरविंद सिंह के नाम पर मुहर लगा दी है.
आपको बता दें कि जब बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी से नाता तोड़ा था और अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा बनाई थी तब अरविंद सिंह उनकी पार्टी के टिकट पर ईचागढ़ से चुनाव लड़े थे और जीत हासिल की थी. अभय सिंह उनके विशेष सिपहसालार थे. बीजेपी में वापसी के चंद दिनों बाद ही अभय सिंह राजनीतिक षड्यंत्र के शिकार हो गए और पिछले 6 महीने से सलाखों के पीछे हैं. इसके पीछे राजनीति कौन कर रहा है इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है.
बाबूलाल मरांडी आरएसएस कैडर से रहे हैं. बीजेपी से निष्कासित किये जाने के बाद दिन- प्रतिदिन उनकी ख्याति गिरती चली गई. 14 साल भाजपा से दूर रहते उन्होंने अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने का काम किया मगर उनकी पार्टी से चुनाव जीतकर सदन पहुंचे नेता एक- एक कर बीजेपी और दूसरे दलों में चलते चले गए. अभय सिंह ने उनका साथ नहीं छोड़ा और अंततः बाबूलाल मरांडी की घर वापसी हुई, मगर अभय सिंह सलाखों के पीछे चले गए. अभय सिंह को लेकर पार्टी के तमाम बड़े नेताओं के बयान आ चुके हैं मगर अभय सिंह सलाखों से बाहर नहीं निकल सके हैं. जबकि जिस मामले में उन्हें जेल भेजा गया था उस मामले में उन्हें हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है. उन्हें दूसरे मामले में डिटेन किया गया है और मामला कोर्ट में लंबित है. दोनों ही मामले साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने से जुड़ा है. अभय सिंह जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा से ताल्लुक रखते हैं और उनकी क्षेत्र में पकड़ काफी मजबूत है. ये अलग बात है कि बीजेपी ने उन्हें कभी अपना उम्मीदवार नहीं बनाया यहां पिछले 25 सालों से बीजेपी चुनाव जीतती रही है. हालांकि पिछले चुनाव में बीजेपी के बागी सरयू राय ने यह सीट हथिया ली है और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को सत्ता से बेदखल कर दिया.
अब बात कर लेते हैं अरविंद सिंह की. अरविंद सिंह भी बाबूलाल के करीबी माने जाते हैं, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें बाबूलाल मरांडी ने झाविमो से टिकट नहीं दिया था. जिसके बाद उन्होंने ईचागढ़ से निर्दलीय चुनाव लड़ा और हार गए. अब फिर से वे बाबूलाल मरांडी के करीब आ गए हैं और बीजेपी में वापसी की बाट जोह रहे हैं हालांकि मरांडी की हरी झंडी मिल चुकी है अब बीजेपी में उनके लिए क्या भूमिका तय होती है इसपर सभी की नजर रहेगी. कोल्हान में ईचागढ़, जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिम और बहरागोड़ा छोड़ सभी सीट आरक्षित हैं. यदि आजसू से गठबंधन होता है तो बीजेपी को ईचागढ़ सीट छोड़नी पड़ सकती है. यदि गठबंधन नहीं हुआ तो बीजेपी के समक्ष धर्मसंकट की स्थिति होगी. इस सीट पर दिवंगत पूर्व विधायक साधु चरण महतो ने जीत का परचम लहराया था. आज उनकी धर्मपत्नी सारथी महतो सक्रिय हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में साधु चरण महतो चुनाव हार गए थे, और बाद में बीमारी की वजह से उनकी मौत हो गयी. अब उनकी पत्नी अपने पति के नाम के आसरे पार्टी का झंडा बुलंद किए हुए हैं. यह सीट वर्तमान में झामुमो के पास है. यहां से पूर्व डिप्टी सीएम स्वर्गीय सुधीर महतो की धर्मपत्नी सविता महतो विधायक है. आजसू की अगर हम बात करें तो आजसू के हरेलाल महतो यहां बेहद मजबूत स्थिति में है. यदि पार्टी अरविंद सिंह को यहां से टिकट देती है तो परिस्थितियों बदल सकती है, मगर उसे आजसू के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं का भी कोप भाजन का शिकार होना पड़ सकता है.
दूसरी सीट जमशेदपुर पश्चिम की है. सरयू राय के बागी होने के बाद भाजपा को यह सीट गंवानी पड़ी और यहां से झारखंड के वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री बना गुप्ता कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुने गए. बीजेपी ने यहां से देवेंद्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था मगर वह चुनाव हार गए. 5 साल बीतने को है भाजपा यहां सरयू राय सरीखे नेता खड़ा कर पाने में नाकाम रही है. अभय सिंह या अरविंद सिंह को पार्टी यहां आजमा सकती है, मगर कोल्हान के पूर्व डीआईजी रहे राजीव रंजन सिंह की एंट्री से पार्टी यहां निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है.
तीसरी सीट जमशेदपुर पूर्वी की है. इस सीट से भाजपा के बागी सरयू राय विधायक हैं, मगर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के रहते भाजपा यहां किसी अन्य प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाएगी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है. हालांकि यहां भी अभय सिंह की दावेदारी मजबूत है, जबकि बीजेपी के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता और अर्जुन मुंडा के करीबी रहे अमरप्रीत सिंह काले की भी यहां खासी पकड़ है.
चौथी सीट बहरागोड़ा की है. इस सीट पर भाजपा के पास फिलहाल कोई प्रमुख दावेदार नहीं है. संभावना जताई जा रही है कि सांसद विद्युत वरण महतो के पुत्र कुणाल महतो की इस सीट से इस शर्त पर एंट्री हो सकती है, कि कुणाल सारंगी को जमशेदपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ाई जाए. कुल मिलाकर इस सीट पर भी बीजेपी ऊहापोह की स्थिति में है. यही वजह है कि अरविंद सिंह और बाबूलाल मरांडी के मुलाकात के बाद एक ओर जहां बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ताओं में हलचल तेज हो गई है तो दूसरी तरफ राजनीतिक विश्लेषकों की गणना और आंकड़े भी गड़बड़ा रहे हैं. इसके पीछे बीजेपी के अंदरूनी कलह और गुटबाजी को बाबूलाल मरांडी ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है और यहां कोई कलह नहीं है, मगर जैसे- जैसे बाबूलाल मरांडी की संकल्प यात्रा आगे बढ़ रही है, वैसे- वैसे उनके लिए चुनौतियां भी बढ़ रही है, क्योंकि पार्टी के अंदरूनी कलह की वजह से ही बीजेपी यहां सत्ता से दूर जा चुकी है.