जमशेदपुर: आप करें तो चमत्कार हम करें तो …….! कुछ इसी फलसफे पर झारखंड के नेता और अफसर चल रहे हैं. यहां सत्ता पक्ष के नेता से लेकर विपक्ष के नेताओं की नजरों में पत्रकारों की अहमियत कीड़े- मकोड़ों से भी कम रह गयी है. अधिकारी अपने हिसाब से पत्रकारों को डरा- धमका कर खबरें बनवा रहे हैं. हालात ऐसे हो चुके हैं कि कथित पत्रकार संगठन भी इसी राह पर चल पड़े हैं, जिससे इंसाफ की उम्मीद करना बेमानी होती जा रही है.
घटना सोमवार देर शाम की है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की संकल्प यात्रा सरायकेला के खरसावां और राजनगर से जमशेदपुर पहुंची. जहां बिस्टुपुर खरकई टीओपी के समीप सैकड़ों की संख्या में भाजपाई बाबूलाल मरांडी के स्वागत में जुटे थे. जमशेदपुर के कई पत्रकार भी वहां मौजूद थे. मरांडी का काफ़िला जैसे ही पहुंचा कि उत्साहित भाजपाई ढोल- नगाड़ों के साथ उनका स्वागत करने लगे. इस पल को कैमरे में कैद करने कुछ फोटो जर्नलिस्ट जैसे ही पोजिशन लेने लगे कि बाबूलाल मरांडी के अंगरक्षकों ने उनपर हमला कर दिया. इसमें चार फोटो जर्नलिस्टो के घायल होने की खबर है. जिसमें सबसे ज्यादा चोट न्यूज़ एजेंसी एएफपी के फोटो जर्नलिस्ट संजीव कुमार दत्ता को लगी है. उनके कॉलर बॉन (कंधे की हड्डी) टूट गए हैं. इस घटना में बाकी तीन फोटो जर्नलिस्टों ने मामले में या तो चुप्पी साध ली या उन्हें चुप करा दिया गया. संजीव दत्ता ने बताया कि इसका उन्हें खेद है, कि ऐसे मामले में पत्रकारों का सहयोग उन्हें नहीं मिला. और मामले को रफा- दफा कर दिया. हालांकि जेजेए की ओर से सांत्वना दी गयी है. बताया जा रहा है कि बाद में बाबूलाल मरांडी ने पत्रकारों से यह कहते हुए माफी मांगी गई कि भीड़ की वजह से यह घटना हुई है. सवाल यह उठता है कि भीड़ किसकी थी ? क्या भीड़ में कैमरा लेकर उग्रवादी घुसे थे ? भीड़ में हर तरफ भाजपाई थे. और फ़ोटो जर्नलिस्ट से उनका हर दिन सामना होता है. संजीव दत्ता पूरे झारखंड में एजेंसी के लिए फोटोग्राफी करने जाते हैं उन्हें तो हर कोई जानता है फिर मरांडी के बॉडीगार्डों ने ऐसा क्यों किया ?
बता दें कि जमशेदपुर में हाल के दिनों में पत्रकार पर यह दूसरा हमला है. इससे पूर्व न्यूज़ 11 भारत के वीडियो जर्नलिस्ट अनवर शरीफ पर मानगो में हमला हुआ था. उक्त मामले में न तो पुलिस अपराधियों को ढूंढ सकी न ही पत्रकार संगठन पुलिस पर दबाव बना सके. तर्क दिया गया कि घायल पत्रकार द्वारा लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराया गया इसलिए पुलिस और पत्रकार संगठन बैकफुट पर चली गई.
फिर पत्रकार संगठन क्यों ?
पत्रकारों के हितों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए बने पत्रकार संगठन जब पत्रकारों के मामले में संवेदनशील नहीं होंगे तो पत्रकार संगठन क्यों ? ये बड़ा सवाल हर पत्रकारों के जेहन में कौंधने लगा है. क्रिकेट, बैडमिंटन, ब्लड डोनेशन, प्रशासन और कॉरपोरेट की चापलूसी यदि पत्रकार संगठन के लिए महत्वपूर्ण है तो ऐसे पत्रकार संगठनों को लेकर अब सोचने का समय आ गया है. जमशेदपुर के हालिया दो घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि अब पत्रकारों को अपनी आबरू बचाने के लिए खुद बचकर पत्रकारिता करने की जरूरत है.