सिक्किम के गंगटोक से उपर चीन सीमा पर डोकोला में तैनात गुमला के जवान सुनील लकड़ा का पार्थिव शरीर मंगलवार को गुमला उनके घर चेटर अनुग्रह नगर पहुंचा.
जवान का पार्थिव शरीर जैसे ही गुमला शहर पहुंचा लोग जगह- जगह पर रोक कर पुष्पांजलि देते हुए जवान को श्रद्धांजलि दी. फूलों से सजी तिरंगे से लिपटे जवान का पार्थिव शरीर चेटर अनुग्रह नगर पहुंचते ही माहौल गमगीन हो गया. शव को उतारते ही भारत माता की जय, सुनील लकड़ा अमर रहे जैसे नारों के साथ राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनके पार्थिव शरीर को घर के अंदर प्रवेश किया गया. शव के घर पहुंचते ही परिजनों की आंखें नम हो गई और उनके पार्थिव शरीर को एक झलक देखने के लिए बेताब रहे. सेना के जवानों ने ताबूत खोलकर परिजनों को दर्शन कराया. तत्पश्चात धार्मिक रिती विधि से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया विधिवत पास्टर फ्रांसिस टोप्पो की अगुवाई में की गई. और चेटर अनुग्रह नगर के कब्रिस्तान राष्ट्रीय सम्मान के साथ सेना के जवानों और ग्रामीणों द्वारा कब्र तक पहुंचाया गया. कब्रिस्तान में धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार शहीद को अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित किया गया, वहीं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा भी श्रद्धांजलि अर्पित किया गया. सेना के जवानों ने सैन्य सम्मान के तहत तिरंगा को शहीद की मां नाइमी लकड़ा को सौंप दिया, और सेना के जवानों ने तीन चक्र फाइरिंग कर श्रद्धांजलि अर्पित किया.
जवान सुनील लकड़ा का पैतृक आवास रायडीह प्रखंड क्षेत्र के ऊपर खटंगा पंचायत के कोबीटोली गांव में है. सुनील लकड़ा परिवार के साथ चेकर अनुग्रह नगर में पन्द्रह साल से मकान बना कर रह रहे थे. जवान की पत्नी मधुवानी लकड़ा और उसके पुत्र अमन लकड़ा और उसकी पुत्री रोजी लकड़ा चेटर अनुग्रह नगर में रहते हैं. दोनों बच्चों की पढ़ाई नांट्रेडेम स्कूल में चल रही है. पुत्र अमन 12वीं और पुत्री रोजी दसवीं कक्षा की छात्रा है. जवान सुनील घर के बड़े पुत्र थे. उनकी दो बहनें मंजू लकड़ा और ममता लकड़ा की शादी हो चुकी है. पैतृक आवास कोबीटोली में मां नाइमी लकड़ा और उसके पिता ईश्वर लकड़ा रहते हैं.
जवान सुनील लकड़ा 1996 में 3 बिहार बटालियन में सेना में भर्ती हुए थे. 2000 में उनकी शादी मधुवानी से हुई थी. उनकी पत्नी से 23 अक्टूबर की सुबह आठ बजे बात हुई थी, उस समय वे नाश्ता कर रहे थे, और अपने आप को ठीक है बोले थे, लेकिन ड्यूटी में ठंढ लगने की बात कही थी. सीमा सुरक्षा ड्यूटी में उन्हें अत्यधिक ठंढ लगने से उन्हें 23 अक्टूबर दोपहर गंगटोक सेना अस्पताल में भर्ती कराया गया और इलाज जारी था. अचानक उसी दिन देर रात सुनील की मौत हो गई. मौत की सूचना 24 तारीख सुबह परिजनों को मिली और सेना द्वारा 26 तारीख को शव को गुमला लाया गया और अंतिम संस्कार किया गया. बटालियन के नायाब सुबेदार पेत्रुस बाड़ा ने बताया कि सुनील की मौत का कारण बैटल कैजुअल में चोट लगने के कारण सिक्किम के डोकोला में शनिवार को हुई थी. इसी कारण उसे अस्पताल में भर्ती किया गया था जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.
शहीद सुनील लकड़ा के अंतिम संस्कार में पैतृक आवास कोबीटोली गांव के अलावा गुमला शहरी क्षेत्र के सैकड़ों ग्रामीण, प्रशासनिक अधिकारी, जनप्रतिनिधि एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ शहीद के अंतिम संस्कार में हजारों की संख्या में लोग मौजूद हुए और श्रद्धांजलि अर्पित किया गया, लेकिन शहीद सुनील लकड़ा के पिताजी ईश्वर लकड़ा अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए. जो चर्चा का विषय रहा. अंतिम संस्कार की सूचना मिलने के बाद मां नाइमी लकड़ा और उसके साथ दोनों पुत्री और दमाद पहुंचे, लेकिन पिता ईश्वर लकड़ा नहीं पहुंचे.
वहीं शहीद के पिता का अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने का कारण पूछने पर ग्रामीणों ने बताया, कि ईश्वर लकड़ा अपने एकलौते बेटे का अंतिम संस्कार अपने पैतृक गांव कोबीटोली में करना चाहते थे, और सारी तैयारियां भी कर रखी थी, लेकिन सोमवार शाम को पुत्रवधु ने गुमला में ही अंतिम संस्कार करने का फैसला तय कर दिया. इसी कारण से शहीद के पिता ईश्वर लकड़ा अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए. मीडियाकर्मियों ने उनके गांव जाकर वजह जानने का प्रयास किया, लेकिन घर पर ताला लगा मिला. वैसे अंतिम संस्कार सम्पन्न होने तक वे गुमला नहीं पहुंचे थे.