देहरादून:- दीपक कुमार 13 अगस्त की सुबह काम पर निकले। उन्होंने नहीं सोचा था कि यह आखिरी बार है जब वह काबुल में अपना घर देख रहे हैं। उन्होंने नहीं सोचा कि उन्हें आधी दुनिया का सफर करते हुए, 13,000 किलोमीटर की यात्रा कर भारत आना पड़ेगा। घर से निकलने के कुछ घंटों बाद कुमार ने खुद को 50 भारतीयों के साथ हवाई अड्डे के लिए जा रही एक बस में पाया। हाथों में टिकट के तौर पर एक दस्तावेज लेकर वह दुबई के लिए रवाना हुए।
तालिबान काबुल की ओर बढ़ रहा था, लेकिन बहुतों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि देश की राजधानी पर इतनी तेजी से कब्जा होगा। हालांकि कुमार के मालिक, ब्रिटिश दूतावास ने पहले से ही तैयारी कर रखी थी। जैसे ही कुमार 13 अगस्त को कार्यालय पहुंचे, उन्हें और उनके सहयोगियों को एक ब्रिटिश मालवाहक विमान के लिए टिकट दिया गया, जिन्हें अगले कुछ घंटों में काबुल से रवाना होना था और हवाई अड्डे के लिए एक बस में जल्दी से चढ़ने के लिए कहा गया।
सेना से रिटायर होने के बाद दूतावास की सुरक्षा में काम करने वाले कुमार ने कहा, ‘हम में से अधिकांश के लिए, सोचने या पैकिंग करने का समय नहीं था। इसलिए हमने बस पकड़ ली। जैसे ही हम शहर से गुजरे, हमें विस्फोटों की आवाज सुनाई दी। कुछ तालिबानी लोगों ने हमारी बस पर गोलियां चला दीं। सौभाग्य से, वाहन बुलेटप्रूफ था।’ कुमार के साथ उनके साथी अजय थापा, पूरन थापा और प्रेम कुमार भी थे जो सभी देहरादून के रहने वाले हैं। अजय ने कहा, ‘हवाई अड्डे के रास्ते में, हमने देखा कि अफगानों की भीड़ हमारी बस को रोकने की कोशिश कर रही है। वे हमसे उन्हें साथ ले जाने की मिन्नत कर रहे थे, उनमें से कई महिलाएं थीं। मैंने कभी इतना असहाय महसूस नहीं किया।’
समूह सुरक्षित रूप से हवाई अड्डे तक पहुंचने में कामयाब रहा, जिसे अमेरिकी सेना ने घेर लिया था। ‘हम कई घंटों तक हवाई अड्डे पर इंतजार करते रहे जब तक कि हम एक ब्रिटिश मालवाहक विमान में सवार नहीं हो गए। यह विमान दुबई के लिए तड़के 3.30 बजे रवाना हुआ। दुबई से, हमने हीथ्रो हवाई अड्डे के लिए एक उड़ान भरी और फिर एक कमर्शल उड़ान से 18 अगस्त को दिल्ली पहुंचे। उन लोगों ने 13,000 किलोमीटर की यात्रा की।
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