DESK बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व में बदलाव की तैयारी चल रही है. झारखंड में भी प्रदेश से लेकर जिला और मंडल अध्यक्ष बदलने की कवायद जोर- शोर से चल रही है. इसको लेकर पार्टी के अंदर लॉबिंग भी जमकर हो रही है. गुटबाजी और जातीय समीकरण भी हावी है. इस रस्साकशी में जनाधार वाले जमीनी नेता और कार्यकर्ता एकबार फिर ठगे जाएंगे इसकी प्रबल संभावना बनने लगी है.

पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पद को छोड़ सक्रिय राजनीति में वापस लौटे हैं और पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं. उधर पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे अर्जुन मुंडा भी अपनी खोई जमीन को फिर से हथियाने की जुगत भिड़ा रहे हैं. जबकि बीजेपी में अभी अपनी जमीन तैयार कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, सिंहभूम की पूर्व सांसद रही गीता कोड़ा, पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, जामा की पूर्व विधायक और सीएम हेमंत सोरेन की बड़ी भाभी सीता सोरेन, बोरियो के पूर्व विधायक लोबिन हेम्ब्रम सरीखे नेता अग्नि परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. भले बदले सियासी घटनाक्रम के बाद इन्होंने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की है मगर बीजेपी की आबोहवा इन्हें रास नहीं आ रही है ऐसे में देखना यह दिलचस्प होगा कि अगले पांच साल तक इनमें से कौन नेता बीजेपी के तपोभूमि में टिकता है.
अब बात करते हैं सरायकेला- खरसावां की. पिछले डेढ़ दशक से बीजेपी इस जिले की तीन विधानसभा सीटों पर जीत को तरस गयी है. भले इसबार पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद सरायकेला सीट बीजेपी के खाते में है मगर बीजेपी के लिए मैच जिताऊ कप्तान यानी जिलाध्यक्ष का स्ट्राइक रेट फिसड्डी रहा है. इसका मुख्य कारण आदित्यपुर का “लाल कोठी” यानी निवर्तमान मेयर का आवास है. भले बीजेपी कार्यकर्ताओं की पार्टी होने का दावा करे मगर सरायकेला में बीजेपी “लाल कोठी” से चलती है. निवर्तमान मेयर विनोद कुमार श्रीवास्तव बीजेपी के ऐसे रणनीतिकार कहे जाते हैं जिनके आगे बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी नतमस्तक है. यही कारण है कि बीजेपी का हालिया प्रदर्शन बेहद ही निराशाजनक रहा है. आदित्यपुर नगर निगम और सरायकेला शहरी क्षेत्र को छोड़ बीजेपी का प्रदर्शन औसत से भी कम रहा है इसके पीछे बीजेपी नेताओं का “लाल कोठी” के इर्दगिर्द परिक्रमा रहा है. वैसे एक दौर था जब विनोद श्रीवास्तव का जलवा हुआ करता था मगर आज उस दौर से बीजेपी कोसों आगे निकल चुकी है. उस दौर में जनाधार वाले कार्यकर्ताओं की पूछ हुआ करती थी आज “मुद्रा धारी” नेताओं की पूछ हो रही है इसमें विनोद बाबू सबपर भारी हैं.
सरायकेला जिले में पार्टी की दुर्दशा का जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ गुटबाजी और पर जमीनी कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करना है. इसबार भी ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि जिलाध्यक्ष विनोद कुमार श्रीवास्तव के करीबी मनोज तिवारी को लेकर लॉबिंग चल रही है. जबकि आरआईटी मंडल अध्यक्ष के लिए उनके पुत्र विवेक विशाल के नाम के प्रस्ताव पर सहमति बनाने का प्रेशर पॉलिटिक्स चल रहा है. जबकि मनोज तिवारी से बेहतर हरेकृष्ण प्राधन, कृष्ण मुरारी झा, रामनाथ महतो, बोरजो राम हांसदा, रंजन सिंह, अशोक सिंह, राकेश मिश्रा, सुमित चौधरी सरीखे नेता बेहतर विकल्प हो सकते हैं. बता दें कि ये सभी बीजेपी के बेंच स्ट्रेंथ हैं. इनके पास जबरदस्त जनाधार भी है. मगर, इनका कोई गॉडफादर नहीं है. इस वजह से इनकी पैरवी नहीं हो पा रही है.
अब बात करते हैं विवेक विशाल की. इस साहब की खासियत बस इतनी है कि ये साहब “लाल कोठी” के वारिस हैं. किसकी मजाल कि इनके नाम पर आपत्ति जाता दें. जबकि वर्तमान मंडल अध्यक्ष काफी तेज- तर्रार और जमीनी स्तर पर काफी प्रभावशाली नेता माने जाते हैं. इस पोस्ट के लिए अन्य कई विकल्प हैं मसलन स्वप्निल सिंह, दीपक सिंह, ललन शुक्ला वगैरह मगर “लाल कोठी” को ये नेता पसंद नहीं है इसलिए इन्हें झंडा ही ढोना पड़ेगा. वैसे ये सभी “लाल कोठी” के ही प्रोडक्ट हैं.
इधर चंपाई खेमा भी लॉबिंग में जुटा है. यदि पार्टी आलाकमान चंपाई पर भरोसा करती है तो पार्टी को इसका जबरदस्त लाभ होगा. मगर बीजेपी के महंत कभी चंपाई खेमा को हावी होने नहीं देंगे. यदि चंपाई की चली तो “लाल कोठी” की “बादशाहत” जानी तय है, मगर चंपाई के खास “शागिर्द” भी तिवारी जी पर मेहरबान हैं.
