कपाली: सरायकेला- खरसावां जिला का चांडिल अनुमंडल व अंचल प्रशासन इन दिनों खूब सुर्खियों में है. इनके लिए किसी भी जमीन को रसूखदारों और भू- माफियाओं के इशारे पर इधर से उधर करना कोई बड़ी बात नहीं है. क्योंकि इन्हें पता है कि इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.
आपको याद दिला दें कि पिछले दिनों कपाली मौजा के डोबो में ईचागढ़ विधायक सविता महतो के विवादित जमीन पर कब्जा दिलाने पूरा अनुमंडल पुलिस – प्रशासन उतर गया था और मूल रैयतों एवं ख़ातियानी रैयतों के भारी विरोध, यहां तक कि कोर्ट के आदेश को ताक पर रखते हुए चांडिल अनुमंडल प्रशासन ने विधायक की जमीन पर जबरन कब्जा दिलाया. यहां तक कि विरोध में उतरे ग्रामीणों के साथ चांडिल अंचलाधिकारी प्रणव अंबस्ट ने जो किया वह किसी से छिपा नहीं है. जब अंचलाधिकारी ने एक ग्रामीण का गर्दन पकड़ उसके साथ दुर्व्यवहार किया था. बाद में अंचलाधिकारी के बचाव में एसडीओ ने प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया को ही केस करने की धमकी दी थी. यदि आप उस पूरे मामले को भूल गए हैं, तो इस वीडियो क्लिप को देख अपना स्मरण ताजा कर लें.
देखें किस तरह सीओ प्रणब अम्बष्ठ ने खतियानी रैयत को गर्दन पकड़कर धक्के देकर वफादारी निभा रहे हैं
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चलिए अब आपको चांडिल अनुमंडल के कपाली मौजा के दूसरी कहानी से रूबरू कराते हैं. जानिए चांडिल अनुमंडल और अंचल कार्यालय में क्या खेल चल रहा है. सबसे पहले आप चांडिल एसडीओ कोर्ट के आदेश की इस प्रति को देखें. यह चांडिल एसडीओ कोर्ट के 22 जुलाई 2021 का आदेश है.
देखें चांडिल अनुमंडल दंडाधिकारी के आदेश की प्रति
इसमें लिखा है….
अभिलेख उपस्थापित। आवेदक बलराम महतो एवं अन्य पिता स्व० दयाल महतो, ग्राम बन्धुगोड़ा, पो०- कपाली, थाना- ओ०पी० कपाली, जिला- सरायकेला-खरसावाँ द्वारा अधोहस्ताक्षरी के कार्यालय में एक आवेदन समर्पित किया गया जिसमें उल्लेख किया गया है कि द्वितीय पक्ष के मो० मुस्तफा, ग्राम- कमारगोड़ा, नगर परिषद आफिस के नजदीक, कपाली, थाना- चाण्डिल, जिला- सरायकेला-खरसावाँ द्वारा आवेदक की भूमि को जबरन दखल करने का प्रयास किया जा रहा है। शांति व्यवस्था भंग होने की संभावना को देखते हुए उभय पक्षों को कारण पृच्छा दाखिल करने हेतु धारा-144 द०प्र०स० के अन्तर्गत नोटिस निर्गत किया गया। विवादित भूमि का विवरण मौजा- कपाली, थाना सं0 332. खाता सं0-216, प्लॉट नं० 276 रकबा 50 डी० जिसकी चौहदी- 30- प्लॉट सं0- 278, 40- कान्दरू कर्मकार ५० प्लॉट [सं० 280, 279 पं0- नीज, प्लॉट सं0-275 आवेदक के विद्वान अधिवक्ता द्वारा आवेदन के माध्यम से कहा गया है कि प्रश्नगत
भूमि आवेदक के पिता स्व० दयाल महतो के द्वारा क्रय की गई भूमि है। परन्तु द्वितीय पक्ष के मो. मुस्तफा द्वारा उपरोक्त वर्णित भूमि पर जबरन ईट एवं बालू का संग्रह कर निर्माण कार्य करने का प्रयास किया जा रहा है। जबकी क्रय के पश्चात से ही प्रश्नगत भूमि प्रथम पक्ष के दखल कब्जे में है। आवेदन के समय प्रथम पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्वारा निबंधित विक्रय दलील सं0- 2733, दिनांक- 15.10.1980 की छायाप्रति जो बगला भाषा में लिखी हुई है, नामांतरण मुकदमा सं0- 372 / 1987-88 की छायाप्रति एवं लगान रसीद वर्ष 2013-14 तक अद्यतन की छायाप्रति संलग्न किया गया है। द्वितीय पक्ष के मो० मुस्तफा के द्वारा ना तो स्वयं एवं ना ही किसी अधिवक्ता के माध्यम से उपस्थित दर्ज की गई एवं ना ही विवादित भूमि से संबंधित कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया गया है। अतः अभिलेख में धारित कागजातों के अध्ययन से प्रश्नगत भूमि पर प्रथम पक्ष का दावा सत्य प्रतीत होता है।
अतः उपरोक्त के आलोक में इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि अभिलेख में वर्णित भूमि पर धारा-144 द.प्र.सं. के तहत लगाई गई निषेधाज्ञा प्रथम पक्ष के विरुद्ध रिक्त किया जाता है एवं द्वितीय पक्ष के विरूद्ध स्थायी किया जाता है। अतः वाद की कार्यवाही समाप्त की जाती है।
लेखापित
अनुमंडल दंडाधिकारी
आइए जानें पूरा मामला
दरअसल बलराम महतो एवं विष्णु महतो ने चांडिल अनुमंडल न्यायालय में आवेदन देकर अपने जमीन को कब्जा मुक्त कराने का गुहार लगाई थी. आवेदन में बताया गया था कि कपाली मौजा अंतर्गत खाता संख्या 215 के प्लॉट संख्या 275 व 276 पर कमारगोड़ा के किसी मो० मुस्तफा द्वारा अवैध कब्जा किया जा रहा है, जिसे कब्जा मुक्त कराई जाय. उक्त आवेदन के आधार पर चांडिल अनुमंडल दंडाधिकारी सह अनुमंडल पदाधिकारी ने अपने कोर्ट से दोनों पक्ष को उपस्थित होने एवं अपने कागजात प्रस्तुत करने का आदेश जारी किया. निर्धारित दिन पर आवेदक बलराम महतो के अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखा, अपने दावे को मजबूती से पेश किया. वहीं, जमीन के दस्तावेजों को भी प्रस्तुत किया. जिसके बाद कोर्ट ने बलराम महतो के पक्ष में फैसला सुनाया और उक्त जमीन का बलराम महतो को सौंपी गई, लेकिन मामला यहां शांत नहीं हुआ, बल्कि यहीं से मामले में खोंच आई. जिसका समाधान आजतक नहीं हुआ. उक्त जमीन को पुनः विवादित ठहराया गया है, जिसके पीछे अनुमंडल पदाधिकारी और अंचलाधिकारी का बड़ा खेल है. चांडिल प्रशासन ने मिलकर दो परिवारों के रातों की नींद हराम कर रखी है. जब पूरा मामला आप समझेंगे तो आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी.
बता दें कि ऊपर आपने जिस जमीन के मामले को पढ़ा, उसमें एक ऐसा अध्याय जुड़ गया है, जिसके कोई हाथ पैर नहीं हैं, लेकिन चांडिल प्रशासन है कि जबरन हाथ पैर निकालने में लगा हैं. यहां बता दें कि उक्त जमीन के चक्कर में कई अधिकारियों ने अपना जमीर भी बेच खाया है. दूसरी ओर माफियाओं के दिलों दिमाग में जमीन हथियाने का ऐसा धुन सवार है कि वे रुपयों की ताकत से प्रशासन से कुछ भी करवा सकते हैं, फर्जीवाड़ा भी करवा सकते हैं. करवा सकते नहीं, बल्कि इस मामले में तो फर्जीवाड़े का आकंठ देखने को मिल रहा है.
दोनों पीड़ित भाई
बताया जाता है कि अनुमंडल कोर्ट ने जिस बलराम महतो के पक्ष में फैसला सुनाया था, अब उक्त जमीन पर किसी चंद्र मांझी ने भी दावा किया है. चंद्र मांझी ने भी अनुमंडल पदाधिकारी को आवेदन किया है और अपना जमीन कब्जा दिलाने का मांग किया है. उसपर प्रधानमंत्री आवास योजना भी पास करा दिया गया है. इधर, नाइंसाफी के डर से बलराम महतो ने भी अनुमंडल पदाधिकारी से गुहार लगाई है. अब दोनों पक्षों ने अपने जमीन का विवरण कुछ इस तरह से दिया है –
बलराम महतो – मौजा कपाली, खाता संख्या 215, प्लॉट संख्या 275 व 276, जिसमें कुल रकवा 52 डिसमिल
चंद्र मांझी – मौजा कपाली, खाता संख्या 126, प्लॉट संख्या 275 व 276, जिसमें कुल रकवा 52 डिसमिल
रसीद की पर्ची
अब यहां गौर करने वाली बात है कि एक ही मौजा में दो अलग- अलग खाता तो हो सकता है, लेकिन क्या एक ही मौजा के अंतर्गत दो अलग अलग प्लॉट के नंबर एक ही तरह के होते हैं क्या ? जी नहीं ऐसा नहीं होता है, ऐसा झारखंड में तो नहीं होता है. एक मौजा के अधीन अलग- अलग कई खाता संख्या होते हैं, जिसके अंतर्गत अलग- अलग प्लॉट नंबर होते हैं, लेकिन इस मामले में खाता संख्या 215 (बलराम महतो) और खाता संख्या 126 (चंद्र मांझी) दोनों के प्लॉट नंबर 275 और 276 हैं, ऐसा कैसे हुआ और इसके जिम्मेदार कौन हैं ? इतना ही नहीं बीते एक साल से इस मामले को लेकर दोनों पक्ष कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं. दूसरी ओर अनुमंडल पदाधिकारी रंजीत लोहरा भी फिल्मी डायलॉग की तरह तारीख पर तारीख पर तारीख दिए जा रहे हैं. वैसे, अनुमंडल पदाधिकारी रंजीत लोहरा ने भी समान प्लॉट नंबर के मामले पर गौर नहीं किया है, या जानबूझकर मामले को उलझाने में लगे हैं ? यह कहना बड़ा मुश्किल है. बताया जाता है कि अनुमंडल पदाधिकारी रंजीत लोहरा इससे पूर्व में स्वयं भी काफी समय तक राज्य के विभिन्न अंचलों में अंचलाधिकारी के रूप में रहे हैं, इसके बावजूद इतनी बड़ी लापरवाही कैसे ?
बलराम महतो और चंद्र मांझी के मामले में एक ही तरह के प्लॉट नंबर को आवेदन में देखने के बाद भी उन्होंने लगातार निर्देश जारी किए हैं.
सबसे पहले बीते 11 मार्च 2022 को अनुमंडल पदाधिकारी ने चंद्र मांझी को निर्देश दिया है, कि वह खाता 215 के प्लॉट नंबर 275 व 276 में निर्माण कार्य ना करें, क्योंकि उक्त जमीन बलराम महतो की है, चंद्र मांझी को निर्देश देते हुए कहा गया था कि खाता 126 के प्लॉट नंबर 275 व 276 आपकी है, वहां आप निर्माण कार्य कर सकते हैं. इसके बाद अनुमंडल पदाधिकारी ने 23 मार्च 2022 को चांडिल अंचलाधिकारी को निर्देश जारी किया कि कपाली मौजा के खाता 215 के प्लॉट 275 व 276 तथा खाता 126 के प्लॉट 275 व 276 दोनों खाता का रकवा 52 डिसमिल जमीन पर बलराम महतो तथा चंद्र मांझी द्वारा अपना अपना दावा किया जा रहा है, इसलिए अंचल कार्यालय के पंजी – 2 की जांच कर वास्तविकता से अवगत कराएं. इधर, अनुमंडल पदाधिकारी ने कपाली ओपी को भी उक्त जमीन पर निर्माण कार्य पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया है. मजे की बात है कि अनुमंडल पदाधिकारी ने अपने निर्देश पर जमीन के दोनों पक्षों को अपने अपने जमीन का सीमांकन कराने का भी आदेश दिया है.
यह तो वही बात हो गई ” अंधेर नगरी चौपट राजा”. जब एक ही जमीन है और दो दावेदार तो भला कैसे दोनों अपने- अपने जमीन का सीमांकन कराएं. अब कपाली के ग्रामीणों का कहना है कि समय की बर्बादी और दावेदारों की परेशानी को देखते हुए प्रशासन की मौजूदगी में सबसे पहले तो दो अलग- अलग जमीन का स्थल निरीक्षण हो. पहले दो अलग- अलग जमीन तो दिखे फिर बाद में फैसला होगा कि किस जमीन का मालिक कौन हैं ?
हो ना हो इस पूरे मामले ने यह बता दिया है कि चांडिल प्रशासन के संरक्षण में क्षेत्र में जमीन हेराफेरी का खेल जोरो पर हैं. बीते दिनों अंचलाधिकारी द्वारा जब एक ग्रामीण के साथ खुलेआम दुर्व्यवहार करने का मामला पूरे राज्य में फैलने के बाद भी अंचलाधिकारी के विरुद्ध किसी तरह का कार्रवाई नहीं होने के कारण ही अधिकारियों को इस तरह के करतूतों को करने में हिम्मत मिल रही हैं.
देखें अनुमंडलाधिकारी के तारीख पर तारीख की कहानी
इस संबंध में अंचलाधिकारी प्रणव अम्बष्ट का कहना है कि उक्त मामले पर चांडिल अनुमंडल पदाधिकारी ने निर्देश दिया है. निर्देश पर दोनों पक्षों के वास्तविकता की मांगी गई हैं. पंजी – 2 पर जिसका नाम दर्ज होगा, उसके आधार पर रिपोर्ट बनेगा और अनुमंडल पदाधिकारी को समर्पित किया जाएगा. आम तौर पर एक ही मौजा में एक ही नंबर के प्लॉट नहीं होते हैं, बल्कि अलग- अलग ही होते हैं, लेकिन इस मामले की विस्तृत जानकारी बंदोबस्त कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है. सवाल यह उठता है कि एसडीओ खुद भी सीओ रह चुके हैं, उन्हें अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए कि इसका डाटा बंदोबस्त कार्यालय में उपलब्ध होगा, फिर उनके द्वारा सीओ को बीच में क्यों लाया गया. वैसे इस प्रकरण में सीओ की भूमिका शक के दायरे में इसलिए है, कि उनके द्वारा रिपोर्ट विगत छह महीने से समर्पित नहीं किया गया है.