सरायकेला- खरसावां जिला के आरआईटी थाना अंतर्गत सरकारी जमीन को भू माफियाओं द्वारा धड़ल्ले से बेचा गया है. मीडिया में खबर दिखाए जाने के बाद प्रशासनिक महकमा हरकत में आया और फिर शुरू हुआ अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई, लेकिन अब उसमें राजनीतिक तड़का लगने के बाद हवाओं का रुख बदलने लगा है. कुछ सवाल सरायकेला जिले के आरआईटी थाना क्षेत्र के वास्तु विहार के समीप कुलुपटांगा मौजा के साईं कॉलोनी और मोतीनगर नगर में हुए सरकारी जमीन के खिलाडिय़ों से….
सरकारी जमीन पर बने स्कूल और तालाब कहां गए ? नगर निगम का दावा है, कि जिले के उपायुक्त के निर्देश के बाद 4 एकड़ जमीन उसे उपलब्ध कराया गया था. सवाल नगर आयुक्त से, कि उपायुक्त के किस पत्रांक के माध्यम से कब नगर निगम को यह भूखंड आबंटित करायी गयी थी. उस वक्त कौन उपायुक्त थे, कौन अंचलाधिकारी और कौन नगर आयुक्त, मेयर- डिप्टी मेयर और क्षेत्र के पार्षद थे ? नगर निगम ने दावा किया है, कि उसके द्वारा आबंटित भूखंड पर कब्जा दिलाने के लिए गम्हरिया अंचलाधिकारी से अनुरोध किया गया था. सवाल कि कब किया गया था और सीओ कौन थे ? जब निगम कार्यालय को पता था, कि उसकी जमीन पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रहा है, उस वक्त नगर निगम प्रशासन कहां था ? अब सवाल अतिक्रमणकारियों के बचाव में उतरे झामुमो और कांग्रेस के नेताओं से. जिन अतिक्रमणकारियों को गरीब बताकर दोनों दलों के नेता खुद को गरीबों का मसीहा बताकर वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं, तो एक साईं कॉलोनी और मोतीनगर ही क्यों ! राज्य में जहां भी सरकारी जमीनों का अतिक्रमण हुआ है, सभी को मालिकाना हक दिलाने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए. जिला प्रशासन को ऐसे मामलों को राजनीतिक दलों के जिम्मे ही छोड़ देना चाहिए. ऐसे में क्या ये नहीं समझा जाए कि भू माफियाओं के सिंडिकेट को बेनकाब करने के बजाए राजनीतिक दलों के लोग उन्हें संरक्षण दे रहे ? क्योंकि ऐसे भू माफियाओं के सिंडिकेट के झांसे में आकर लोग अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई अवैध जमीन पर मकान बनाने में लगा देते हैं, और जब सरकारी डंडा चलता है, तो भू माफिया राजनीतिक दलों को आगे कर खुद भूमिगत हो जाते हैं.
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