उत्तरकाशी: उत्तरकाशी की धंसी सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को बाहर निकाल लिया गया है. विदित हो 12 नवंबर की अहले सुबह सुरंग धंसी थी और वहां काम कर रहे मजदूर फंस गए थे. तब से उन्हें बाहर निकालने के लिए एड़ी- चोटी का जोर लगा दिया गया. देश ही नहीं, विदेश से भी एक्सपर्ट आए. भारी मशीनों को लगाया गया.
इस दौरान बाबा बौख नाग को मनाने का दौर भी जारी रहा. आखिरकार 16 दिनों के रेस्क्यू ऑपरेशन ने रंग दिखा दिया. ‘इंसान, विज्ञान और भगवान’ की त्रिशक्ति ने सीमेंट और शरिये की मजबूत जोड़ को ध्वस्त कर दिया. अब 16 दिन बाद 41 जिंदगियां घुप्प अंधेरे से निकलकर आजाद हवा में सांस ले पाएंगे. यह चमत्कार नहीं तो चमत्कार से कम भी नहीं है. इंसान, विज्ञान और भगवान की त्रिशक्ति ने कैसे यह चमत्कार कर दिखाया.
घटना 12 नवंबर, 2023 की सुबह करीब 5.30 बजे की है जब उत्तरकाशी में बन रही सिलक्यारा- डंडालगांव सुरंग का एक हिस्सा अचानक धंसने लगा. सुरंग में काम कर रहे मजदूरों पर देखते ही देखते आफत की बारिश हो गई. सुरंग का मलबा 60 मीटर तक फैल गया और बाहर का रास्ता बंद हो गया. 41 मजदूर सुरंग में कैद हो गए. सबसे पहली चुनौती थी- मजदूरों की स्थिति जानने की थी. मलबे की वजह से वॉकी- टॉकी ने काम करना बंद कर दिया था. तब उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (डीएमए) और स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एसडीआरएफ) की टीम को लगा दिया. इसके साथ ही रेस्क्यु ऑपरेशन की शुरुआत हो गई. मजदूरों का हाल जानकर उन्हें सुरक्षित रखने की कवायद होने लगी.
इस प्रयास में काम आया चार इंच का एक पाइप जिसे एक दिन पहले ही सुरंग का पानी बाहर निकालने के लिए बिछाया गया था. इसी पाइप के पास वॉकी-टॉकी का सिग्नल मिला और मजदूरों से बातचीत होने लगी. मजदूरों को पाइप से कंप्रेसर के जरिए ऑक्सिजन, दवाइयां और कुछ खाने-पीने की चीजें भेजी जाने लगीं. पहले चरण की सफलता मिलने के बाद अब पूरा ध्यान मजदूरों को बाहर निकालने पर गया.
इसी प्रयास में मलबा हटाने की कोशिशें तेज हुईं. लेकिन एक तरफ मलबा हटाया जा रहा था तो दूसरी तरफ से मलबा गिर भी रहा था. तब मशीन से करीब 20 मीटर तक मिट्टी हटाई गई, लेकिन ऊपर से मलबा गिरने लगा. तब मलबा हटाने के बजाय ऊपर से ड्रिलिंग करने का फैसला किया गया. ड्रिलिंग के जरिए 900 एमएम के मोटे पाइप मजदूरों तक पहुंचाने थे. काम शुरू हुआ, लेकिन रफ्तार बहुत धीमी रही. तब सी30 हरक्यूलिस विमान से 25 टन वजनी अमेरिकी ऑगर मशीन दिल्ली से लाया गया. पहले की ऑगर मशीन हर घंटे 1 मीटर ड्रिल कर रही थी और दिल्ली से आई मशीन प्रति घंटे 5 मीटर की रफ्तार से ड्रिलिंग करने लगी. लेकिन करीब 25 मीटर तक ही पाइप डाली गई थी कि ऑगर मशीन में खराबी आ गई. अब 900 एमएम का पाइप डालना मुश्किल हो गया.
तब 800 एमएम का पाइप डाला जाने लगा. रेस्क्यू ऑपरेशन के आठ दिन हो गए थे. लेकिन कुछ खास सफलता मिलती नहीं दिख रही थी. तब पांच तरफ से ड्रिलिंग करने का फैसला हुआ. एनएचआईडीसीएल, टीएचडीसीआईएल, ओएनजीसी, आरवीएनएल और सतलुज जल विद्युत निगम जैसी संस्थाओं को इस काम में लगा दिया गया. 21 नवंबर को 6 इंच का एक पाइप मजदूरों तक पहुंचाने में सफलता मिल गई. इस पाइप से उनके पास खाने-पीने के बेहतर साधन मुहैया होने लगे. तभी एक वक्त ऐसा आया जब लगा कि कुछ घंटों में मजदूर बाहर निकाल लिए जाएंगे. 60 मीटर के मलबे में 45 मीटर तक 800एमएम का पाइप पहुंच चुका था. बस तीन पाइप डाले जाने थे कि अमेरिकी ऑगर मशीन सीमेंट और शरिये के मजबूत जोड़ में फंसकर खराब हो गई.
तब तक विदेश से एक्सपर्ट्स भी आ गए थे. उन्होंने कहा कि अब ऑगर मशीन ठीक नहीं की जा सकती है. दो दिन ड्रीलिंग का काम रुक गया. फिर रैट माइनर्स को काम पर लगाया गया. यह इंसानी जज्बे की पराकाष्ठा का प्रतीक है. रैट माइनर्स के जरिए हाथ से मलबा निकालने का काम शुरू हुआ. 27 नवंबर, सोमवार को 6 रैट माइनर्स से 2-2 की टीम में लोग मजदूरों तक पहुंचने लगे. कहा गया कि 24 घंटे में वो मजदूरों तक पहुंच जाएंगे. लेकिन जुनून देखिए, अनुमान से पहले ही वो मजदूरों तक पहुंच गए. विज्ञान की ताकत, इंसान की मेहनत और भगवान के आशीर्वाद ने 41 मजदूरों की जान बचा ली.