रासबिहारी मंडल की रिपोर्ट
सरायकेला: सहायक आचार्य नियुक्ति नियमावली के नोटिफिकेशन का टेट सफल सहायक अध्यापक संघ ने विरोध किया है. साथ ही इसे झारखण्डी आदिवासी- मूलवासी युवाओं के साथ गंदा मजाक करार दिया है.
गुरुवार को संघ के प्रदेश मीडिया प्रभारी सह वार्ताकार कमिटी सदस्य कुणाल दास ने इस संदर्भ में एक प्रेसवार्ता के दौरान कहा कि वर्तमान में जारी सहायक आचार्य नियुक्ति का नोटिफिकेशन पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है. एक ओर जहां महंगाई के इस वीभत्स दौर में विधायक- सांसद और मंत्री बेतरतीब तरीके से लगातार अपने वेतन और अन्य सुविधाओं में इजाफा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राष्ट्र निर्माता कहे जाने वाले शिक्षकों को चपरासी के तुल्य वेतन दिए जाने की तैयारी चल रही है.
इसके अलावा मुख्य बहाली परीक्षा तकरीबन 7 से 8 घंटे तक आयोजित करने की बात की गई है वह आश्चर्यजनक है. किसी भी राज्य के शिक्षक नियुक्ति परीक्षा का प्रारूप इतनी लंबी अवधि का नहीं है. साथ ही उक्त नोटिफिकेशन में इस बात का भी जिक्र है कि परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले शिक्षक भी नियुक्ति के दस वर्ष बाद पूर्ण सरकारी शिक्षक बनेंगे. उक्त बिंदु का संघ पुरज़ोर विरोध करता है क्योंकि बतौर पारा शिक्षक ऑलरेडी जीवन की एक लंबी अवधि इस क्षेत्र में सेवा दी है. सभी सहायक अध्यापक शिक्षण कार्य का पर्याप्त अनुभव रखते हैं. बावजूद इसके एक कड़ी परीक्षा से गुजरने के बाद भी सरकारी शिक्षक बनने के लिए दस वर्षों तक का इंतज़ार करना उम्रदराज स शिक्षकों के साथ बेरहमी है. श्री दास ने आगे कहा कि पारा शिक्षकों के लिए पूर्व निर्धारित 50% के आरक्षण के प्रावधान में भी तमाम संविदा कर्मियों का अतिक्रमण हमारे अधिकार और अवसर का हनन है. कुल मिलाकर पूरे नोटिफिकेशन पर गौर करने पर पता चलता है कि यह अफसरशाही का एक गहरा षड्यंत्र है जिससे स्थानीय आदिवासी और मूलवासी युवाओं को सरकारी नौकरी से वंचित रखा जाए. ऐसा प्रतीत होता है कि अफसरशाही पर इस सरकार ने नियंत्रण खो दिया है और वे बेलगाम हो चुके हैं. किंतु टेट सफल सहायक अध्यापक संघ इसका मुखर होकर विरोध करेगा. चूंकि टेट पास पारा शिक्षक सरकारी शिक्षक बनने की संपूर्ण अहर्ता के साथ ही लंबा कार्यानुभव रखते हैं अत: संघ प्रारंभिक स्कूलों में मौजूदा रिक्त पदों के 50% सीटों पर पारा शिक्षकों को 9300-34800 के वेतनमान पर सीधे समायोजन की मांग राज्य सरकार से करती है. अन्यथा इस सरकार को भी एक बड़े आंदोलन से रूबरू होना पड़ सकता है. संघ न्याय के लिए कोर्ट का भी रुख करने से गुरेज़ नहीं करेगा.