खरसावां Ramzan Ansari मुसलमानों का दूसरा सबसे बडा पर्व ईद उल अजहा (बकरीद) है. जो कल यानी रविवार 10 जुलाई को मनाया जाएगा. इसे लेकर मुस्लिम समुदाय के लोगों की लागभग सारी तैयारियां पूरी हो चुकी है. बकरीद में कुर्बानी की अहमियत होती है, कुर्बानी का बकरा खरीदने के लिए साप्ताहिक हाट, बजारों में भीड़ समाप्त हो चुका है लोग अपने- अपने पसंद के बकरों की खरीदारी कर चुके हैं. किसी ने हाटों से बकरे की खरीदारी की, तो कोई गावों से.
कुर्बानी के लिए खरसावां में 10 से लेकर 50 हजार तक के बकरे बजार में उतारे गए. वही विभिन्न क्षेत्रों से लोग 70 हजार तक के बकरे खरीद कर लाए हैं. कुर्बानी पर खरसावां के बेहरासाई मौलाना मो आसिफ इकबाल रजवी ने कहा कि खास जानवरों को बकरीद के दिन सवाब की नीयत से अल्लाह की राह में जबहा किया जाता है जो कुर्बानी कहलाती है. यह कुर्बानी हजरत इब्राहीम अलैहिस सलाम की सुन्नत है. मोहम्मद साहब ने भी कुर्बानी का हुक्म दिया है. कुरआन पाक के सूरह कौसर में अल्लाह फरमाता है तुम अपने रब के लिए नमाज पढों और कुरबानी करो.
ईद उल अजहा के नमाज का समय मुकर्रर
खरसावां में ईद उल अजहा (बकरीद) का समय मुकर्रर कर दिया गया है. मदीना मस्जिद बेहरासाई में सुबह 7:15 बजे, अगर बारिश नही हुआ तो कदमडीहा के ईदगाह में सुबह 7:00 बजे बकरीद की नमाज अदा की जाऐगी. बारिश होने पर मस्जिदे बिलाल कदमडीहा एवं जामिया मस्जिद कदमडीहा में सुबह 7 बजे बकरीद की नमाज अदा की जाएगी. वही मस्जिद निजामुददीन गोढपुर में 7:30 बजे नमाज अदा की जाएगी.
हैसियत वालों पर फर्ज है कुर्बानी
इस्लाम में कुर्बानी की बडी अहमियत है. यह एक तरह से माल की इबादत भी है. कुर्बानी दुनिया के तमाम मुसलमानों पर फर्ज है, जो हैसियत रखते है. मोहम्म्द स. ने फरमाया जिसने नेक नीयत, खुशी और हलाल तरीके से कुर्बानी दी उसे जहन्नुम की आग से बचा लिया जाएगा. मोहम्म्द स. ने फरमाया जब तुम बकरीद का चांद देखो और कुर्बानी की नीयत कर लो तो अपने बाल और नाखून ना कटवाओ.
कुर्बानी का समय
बकरीद के दिन यानि दसवीं जिलहिज्जा को मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह नहा धोकर व साथ कपडे पहनकर नमाज के लिए ईदगाह या मस्जिदों में जाते है. दो रकात नमाज अदा करने के बाद कुर्बानी का सिलसिला शुरू होता है जो बारहवीं जिलहिज्जा तक चलती रहती है.
क्यों की जाती है कुर्बानी
अल्लाह के नबी हजरत इब्राहीम अ को अल्लाह ने आजमाइश के लिए ख्वाब दिखाया कि वो अपने इकलौते बेटे हजरत इस्माइल को अल्लाह की राह में कुर्बान करे. हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के खातिर इस काम को कर दिखाया. इकलौते बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बानी देने के दौरान हजरत इब्राहीम की आंखो में पटटी बंधी थी. अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार हजरत जिबरईल को भेजकर हजरत इस्माइल की जगह एक दुम्बे (बकरा) को रखवा दिया. हजरत इब्राहीम ने जब बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो उनकी जगह वह बकरा कुर्बान हो गया. इसलिए इस याद को ताजा रखने के लिए बकरीद के मौके पर जानवरों की कुर्बानी दी जाती है.
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