DESK सिंहभूम संसदीय सीट पर इस बार फिर से बीजेपी का पहिया फंसने जा रहा है. जिस सोच के साथ गीता कोड़ा को बीजेपी में लाया गया कहीं न कहीं अब मामला उल्टा पड़ने लगा है. इसकी बड़ी वजह नाराज कांग्रेसियों की गोलबंदी और बीजेपी के जमीनी कैडरों में गीता कोड़ा को लेकर दुविधा माना जा रहा है. शहरी क्षेत्र के मतदाताओं में भी इसबार दुविधा की स्थिति बन रही है.
इसकी एक वजह आदित्यपुर नगर निगम के पूर्व मेयर विनोद कुमार श्रीवास्तव और पूर्व डिप्टी मेयर बॉबी सिंह के घटते जनाधार को भी माना जा रहा है. दोनों नेताओं पर नगर निगम की जनता ने काफी भरोसा जताया था मगर वे जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सके. कैडर वोटरों में भी नाराजगी नजर आ रही है. लोगों में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि बीजेपी आलाकमान अपने उम्मीदवारों के बजाए बाहरी उम्मीदवार पर भरोसा जताया. अब गीता कोड़ा से जुड़े कांग्रेसी हावी हो चले हैं. यही वजह है कि शहरी मतदाताओं के साथ बीजेपी के कैडरों में भी नाराजगी है.
वैसे गीता कोड़ा ने नामांकन दाखिल जरूर कर दिया है, मगर हवा का रुख बदलने लगा है. जोबा माझी के चुनावी मैदान में कूदने के बाद पहले तो हवा बनाया गया कि “हो” बनाम “संथाल” के बीच मुकाबला होगा. मगर, अब इसको लेकर आदिवासी एकजुट नजर आने लगे हैं. अंदारखाने की माने तो सिंहभूम संसदीय क्षेत्र के सभी विधायकों को झामुमो आलाकमान का सख्त निर्देश है कि जिसके विधानसभा से जोबा माझी को कम वोट मिलेंगे उसकी विधानसभा की टिकट कट जाएगी. यही वजह है कि सिंहभूम के सभी झामुमो विधायक एकजुट हैं. जगन्नाथपुर में कांग्रेस के विधायक हैं यहां कोड़ा दंपत्ति का एकाधिकार है फिर भी झामुमो और कांग्रेस मिलकर यहां कड़ी टक्कर दे सकते हैं. ग्रामीण मतदाताओं में झामुमो की उम्मीदवार जोबा माझी को लेकर कोई दुविधा नहीं है. उनमें जोबा को लेकर अब कोई दुविधा नहीं नजर आ रही है.
आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में पुरेन्द्र विनोद श्रीवास्तव और बॉबी सिंह पर भारी
हालिया सर्वे से जो बातें निकलकर आई है उसके अनुसार आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में पूर्व मेयर विनोद कुमार श्रीवास्तव और डिप्टी मेयर बॉबी सिंह के जनाधार की तुलना में पुरेंद्र नारायण सिंह के जनाधार में इजाफा हुआ है. इसकी एक वजह नगर निगम क्षेत्र में पुरेन्द्र की सक्रियता और मुख्यमंत्री चंपई सोरेन से धनिष्ठा है. पुरेन्द्र लगातार जनहित के मुद्दों पर मुखर होकर अपनी बातों को रखते रहे हैं. उनका ओबीसी वोटरों पर खासा पकड़ है. इसके अलावा शिक्षित वर्ग में भी पुरेन्द्र की खासी पैठ है. यदि सबकुछ ठीकठाक रहा तो जोबा माझी को पुरेन्द्र की पहुंच का लाभ मिल सकता है.
आरएसएस में भी असमंजस
बीजेपी के साथ आरएसएस कैडरों में भी गीता कोड़ा को लेकर असमंजस की स्थिति नजर आ रही है. आरएसएस के कैडरों में भी उहापोह की स्थिति नजर आ रही है. हालांकि आरएसएस के कैडर कभी भी पासा पलट सकते हैं. यदि आरएसएस की नाराजगी दूर नहीं हुई तो फिर मुश्किल हो सकता है. आरएसएस के नाराजगी की वजह से ही प्रचंड मोदी लहर में भी सरायकेला विधानसभा सीट पर बीजेपी कमल खिलाने में नाकाम रही है.
इन कांग्रेसियों पर पार्टी की पैनी नजर
गीता कोड़ा के बीजेपी में जाने के बाद कुछ कांग्रेसियों का अभी भी उनसे मोहभंग नहीं हुआ है. अभी भी वे गीता कोड़ा के संपर्क में है. इनमें से जगदीश नारायण चौबे और मोनू झा आज भी खुद को सांसद प्रतिनिधि कहलाना पसंद करते हैं. कार्यकारी जिलाध्यक्ष अंबुज पांडे के जनाधार में भी कमी देखी जा रही है. उनके भाइयों की वजह से क्षेत्र में किरकिरी हो रही है. पार्टी के कार्यकर्ताओं पर उनकी पकड़ ढीली है. पुराने कांग्रेसियों को दरकिनार करना उन्हें भारी पड़ने लगा है. कार्यकर्ताओं में उनको लेकर नाराजगी देखी जा रही है. आरोप है कि वे खास लोगों को लेकर चलते हैं. मुन्ना शर्मा, उपेंद्र शर्मा, सुरेशधारी, लाल बाबू सरदार, खिरोद सरदार, गंभीर सिंह, श्री राम ठाकुर, राणा सिंह, शिवदयाल शर्मा ये ऐसे कांग्रेसी हैं जिनपर पार्टी आलाकमान की खास नजर है. इनके गतिविधियों की समीक्षा चल रही है. वैसे यदि ये यदि एकजुट होकर इंडिया गठबंधन की उम्मीदवार जोबा माझी के पक्ष में काम कर गए तो उन्हें जीतने से कोई रोक नहीं सकता है. कांग्रेस के ग्रामीण प्रभारी बनाए गए कालीपद सोरेन को प्रभार मिलने से ग्रामीण मतदाताओं में इसका असर दिखने की संभावना है. उनके जिम्मे नाराज कांग्रेसियों को एक मंच पर लाने की भी है जो थोड़ा टफ है. युवा कांग्रेसियों में रमेश बलमुचु, लखन हेम्ब्रम, मरांग सरीखे नेताओं के पास जनाधार बचा है ये भी तुरुप का एक्का साबित हो सकते हैं. ग्रामीण इलाकों में झामुमो की अच्छी खासी पकड़ है यहां मुकाबला कांटों का होने का अनुमान है.