DESK आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर एनडीए गठबंधन ने जहां झारखंड के सभी 14 लोकसभा सीटों के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है, वही “इंडी” गठबंधन में अभी भी कई दांव फंस रहे हैं. “इंडी” गठबंधन के घटक दल आपस में ही अपने- अपने क्षेत्र में ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं.
वैसे कोल्हान के दो सीटों सिंहभूम और जमशेदपुर पर मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर है. साथ ही 4 जून के बाद उन्हें कुर्सी जाने का डर भी सताने लगा है. क्योंकि यदि गांडेय विधानसभा सीट से हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन चुनाव जीत जाती हैं तो सीएम चंपाई सोरेन को कुर्सी गंवानी पड़ सकती है. उसके बाद उनका राजनीति करियर क्या होगा इसको लेकर कई कयास लगने लगे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सिंहभूम सीट से सीएम चंपाई सोरेन ही कहीं चुनावी समर में गीता कोड़ा के सामने न कूद पड़े. इसकी संभावना प्रबल इसलिए भी हो रही है कि यहां से “इंडी” गठबंधन के पास सिवाय चंपई के ऐसा कोई उम्मीदवार नहीं है जो गीता कोड़ा का मुकाबला कर सके. अबतक कयास लगाए जा रहे थे कि खरसावां विधायक दशरथ गागराई, चाईबासा विधायक दीपक बिरुआ को पार्टी उम्मीदवार घोषित कर सकती है, मगर दोनों ही नेताओं से जीत की गारंटी नहीं होता देख झामुमो थिंक टैंक यहां से चंपई सोरेन को ही उम्मीदवार बनने पर विचार कर सकता है. वैसे इस रेस में सरायकेला जिला परिषद सोनाराम बोदरा भी शामिल हो सकते हैं.
अब बात करते हैं जमशेदपुर लोक सभा सीट की. यहां भी “इंडी” गठबंधन के पास विद्युत वरण महतो के मुकाबले कोई कद्दावर नेता अबतक उभर कर सामने नहीं आया है. झामुमो को कुड़मी वोटरों को साधने के लिए कोई कुड़मी नेता ही चाहिए. क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में चंपई सोरेन यहां से विद्युत वरण महतो से बुरी तरह पराजित हो चुके हैं. यहां कुड़मी वोटर सबसे ज्यादा है और हार जीत का अंतर पैदा करता है. इस बार झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) बीजेपी और “इंडी” गठबंधन के समक्ष मुसीबत पैदा कर सकता है. ऐसे में झामुमो के पास आस्तिक महतो, पूर्व दिवंगत सांसद सुनील महतो की पत्नी सुमन महतो के अलावे दूसरा बड़ा चेहरा नजर नहीं आ रहा है. वैसे यहां भी झामुमो चौंकाने वाला प्रत्याशी दे सकता है. इसमें एक नाम डॉ. शुभेंदु महतो का आ रहा है. श्री महतो बेदाग छवि के नेता हैं और कुड़मी वोटरों पर उनकी पकड़ बेहद ही मजबूत है. वे पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और वर्तमान मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के विश्वासपात्र हैं. वर्तमान में वे सरायकेला- खरसावां झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिला अध्यक्ष भी हैं. उनके कुशल नेतृत्व में जिले के तीनों विधानसभा सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवारों की जीत हुई है.
*गीता कोड़ा और विद्युत वरण महतो की दुविधा*
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में शामिल हुई गीता कोड़ा भले लाख दावे कर ले कि उन्हें सिंहभूम की जनता और बीजेपी के कार्यकर्ताओं का समर्थन मिल रहा है. मगर अंदर से गीता कोड़ा डरी सहमी हैं. उनके लिए बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को कैंपेनिंग करनी पड़ रही है. जमीन से जुड़े बीजेपी के नेताओं को गीता कोड़ा स्वीकार करने से बच रहे हैं. कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी देखी जा रही है. कार्यकर्ताओं की नाराजगी की वजह से गीता कोड़ा को कई कार्यक्रम रद्द करने पड़े हैं. अब गीता कोड़ा “मोदी की गारंटी” के नाम के सहारे क्षेत्र में सक्रिय है. उनके साथ कुछ कांग्रेसी नेता जुगलबंदी करते नजर आ रहे हैं जो बीजेपी के जमीनी कैडरों को रास नहीं आ रहा है.
यही हाल जमशेदपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार विद्युत वरण महतो का है. इसका उदाहरण रविवार को जमशेदपुर में देखा गया. जहां सांसद रहते विद्युत वरण महतो पर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए बैठक के दौरान कार्यकर्ताओं ने जमकर हंगामा किया. आलम यह रहा कि विद्युत महतो कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करने से बचते नजर आए. ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो यहां भी उनकी स्थिति ठीक नहीं है. जेबीकेएसएस यहां काफी मजबूत स्थिति में है. उन्हें अपनी ही बिरादरी का विरोध झेलना पड़ सकता है. आदिवासी- मूलवासी विवाद यहां बीजेपी के लिए मुसीबत पैदा कर सकता है. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि दोनों संसदीय क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशियों के इस कमजोरी का “इंडी” गठबंधन क्या लाभ उठा सकता है.