DESK 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दल तैयारी में जुट गई है. हालांकि बीजेपी का थिंक टैंक इसको लेकर गहन मंथन में जुटा है. दस साल के रिपोर्ट कार्ड के साथ उसे चुनाव में जाना है. एंटी इंकंवेंसी का खतरा उसके बाद “इंडिया” से कैसे निपटा जाए इसपर भाजपा के रणनीतिकार मंथन में जुट गए हैं.
पीएम मोदी एक- एक सांसदों का रिपोर्ट कार्ड खुद जांच रहे हैं. मतलब साफ है कि बीजेपी कड़े निर्णय ले सकती है. कई वर्तमान सांसदों का टिकट कट सकता है तो कई के सीट बदले जा सकते हैं. इसको लेकर सांसदों की धड़कने तेज है साथ ही लॉबिंग भी तेज हो गई है. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि बाजी किसके हाथ लगती है.
झारखंड के वर्तमान सांसदों का भी रिपोर्ट कार्ड का लेखा- जोखा लागभग तैयार हो चुका है. प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी से लेकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास सांसदों के कार्यों की समीक्षा में जुट गए हैं. बीजेपी थिंक टैंक पिछला 2019 का इतिहास दुहराने में जुटी है. हालांकि रघुवर दास ने 14 लोकसभा सीट जिताने का दावा किया है. उसमें सिंहभूम और राजमहल संसदीय सीट भी शामिल है. जहां बीजेपी यह तय नहीं कर सकी है कि प्रत्याशी कौन होगा. इसका मतलब साफ है कि दोनों ही सीटों पर भाजपा बोरो खिलाड़ियों के भरोसे 2024 की बैतरनी पार करेगी.
यहां सिंहभूम संसदीय सीट की यदि हम बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में दिवंगत लक्ष्मण गिलुआ यहां से भाजपा के उम्मीदवार थे, जिन्हें कांग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ रही पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने पराजित किया था और झारखंड कांग्रेस की लाज बचाई थी. इससे पूर्व मधु कोड़ा भी इस सीट से सांसद रह चुके हैं. भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद वे अयोग्य घोषित कर दिए गए थे.
इस बार भाजपा के लिए मुश्किल हालात हैं. बेंच स्ट्रेंथ की अगर बात करें तो दूर- दूर तक कोई प्रत्याशी नजर नहीं आता जो सांसद के रूप में दावा कर सके, न ही बीजेपी की ओर से किसी को आगे लाया गया. हालांकि दिवंगत लक्षण गिलुआ की धर्मपत्नी मालती गिलुआ पार्टी के गतिविधियों में सक्रिय जरूर हैं, मगर उनका दायरा चाईबासा तक ही सीमित है. पार्टी के कर्ता- धरताओं ने उन्हें पूरे संसदीय क्षेत्र के लिए कभी आगे नहीं किया. मतलब साफ है कि श्रीमती गिलुआ पर पार्टी दांव नहीं लगाएगी. फिर कौन होगा पार्टी का चेहरा ? इसपर राजनीतिक विश्लेषकों के अलग- अलग राय हैं. कोई मंझग़ाव के पूर्व विधायक बड़कुंवर गागराई, की चर्चा कर रहा है तो कोई मनोहरपुर के पूर्व विधायक गुरचरण नायक की चर्चा कर रहा है. कुछ जेबी तुविद की भी चर्चा कर रहे हैं. मगर यहां बताते चलें कि तीनों ही अपने विधानसभा सीट बचाने में विफल रहे थे.
मतलब साफ है कि सिंहभूम संसदीय सीट पर यदि भाजपा को वापसी करनी है तो कोड़ा दंपति को अपने पाले में करना होगा या अर्जुन मुंडा सरीखे नेता को इस सीट पर चुनाव लड़ाना होगा क्योंकि अर्जुन मुंडा के कद का नेता बीजेपी के पास कोल्हान में फिलहाल कोई नहीं है. ऐसा उन्होंने खूंटी और जमशेदपुर लोकसभा सीट जीतकर साबित कर दिया है. वैसे कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि यदि कोड़ा दंपति कांग्रेस छोड़ भाजपा में नहीं आते हैं तो बीजेपी इस बार गीता कोड़ा के विकल्प के रूप में अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा पर दांव लगा सकती है. वैसे इस सीट पर हो और संथाल के बीच वर्चस्व की लड़ाई होती है, जबकि मीरा मुंडा तमाड़िया (भूमिज) समुदाय से अति है. उन्हें शहरी मतदाताओं का सहयोग मिलेगा. वैसे फिलहाल भाजपा के पास कोई विकल्प नहीं है जो कोड़ा दंपति को चुनौती दे सके.