औरंगाबाद/ Dinanath Mouar एक तरफ जहां बिहार सरकार जातीय जनगणना करवाने को लेकर खुद को गंभीर बता रही है, वहीं दूसरी तरफ पैसे के अभाव में एक गरीब माता- पिता अपने 21 वर्षीय पुत्र का शव लाने में भी असमर्थ रहे.
यह घटना बिहार सरकार के लिए एक तमाचे कम नहीं है. देश में ही हुई मौत, लाश भी मिली मगर पुतला बनाकर बिहार में किया गया अंतिम संस्कार; वजह बेचैन कर देगी
इस खबर को पढ़कर कलेजा मुंह को आ जाएगा. यह खबर गरीबी का दर्द बयां करने वाली है तो सिस्टम की भी पोल खोलने वाली है. खबर झकझोर देने वाली भी है. खबर पढ़कर अनायास ही आप यह भी कह उठेंगे कि ऐसा भी होता है क्या ? ऐसा किसी गरीब, लाचार और बेबस किसी परिवार के साथ न हो. यह खबर एक हजार 322 किलोमीटर दूर तेलंगाना प्रदेश की है, पर औरंगाबाद जिले से जुड़ी है. तेलंगाना के जंगली इलाके में पेड़ से झूलते हुए एक युवक की शव मिलती है. युवक की पहचान बिहार के औरंगाबाद जिले में नबीनगर थाना क्षेत्र के शिवपुर गांव निवासी सुरेंद्र मालाकार के पुत्र अंकित (21) के रूप में होती है.
वहां की पुलिस को यह पता चलता है कि मृतक तेलंगाना के जगदलपुर जिले के बेलकाटूर में रहकर काफी दिनों से जीबीआर नामक प्राइवेट कंपनी में काम करता था और पिछले एक मई से वह लापता था. वह 20 दिन पहले घर आया था. इसके बाद वह घर वालों को यह कहकर तेलंगाना वापस लौट गया था कि काम नही करेंगे तो कमाएंगे कैसे ?
इस बार 20 दिन पहले जो वह घर से गया तो वापस नहीं लौटा. इतना तक कि मरने के बाद उसकी लाश तक घर नहीं लौट सकी. मृतक के पैतृक गांव शिवपुर के लोगों के मुताबिक, अंकित का बहनोई राजन भगत जो माली थाना के बरियावां का निवासी है. वह उसके साथ ही रहता है. अंकित के अचानक से गायब होने पर उसके बहनोई ने घर वालों को इसकी सूचना भी दी थी. साथ ही वहां अपने स्तर से अपने साले की खोजबीन भी की थी, लेकिन कुछ भी अता पता नहीं चलने पर वह थक- हार कर बैठ गया था. इसी बीच तीन मई को वहां बेलकादुर के पास जंगली इलाके से अंकित का शव पेड़ से लटका हुआ मिला. वहां की पुलिस ने कपड़ो में मिले कागजातों से मृतक की पहचान की और मृतक के मोबाइल में नियमित कॉल होने वाले नंबर पर जब संपर्क किया तो वह उसके बहनोई राजन का निकला. पुलिस से लाश मिलने की सूचना पर बहनोई ने इसकी सूचना परिजनों को दी, लेकिन
गरीबी के कारण शव लाने में सक्षम नहीं होने पर परिजनों ने पुतला बना कर दाह संस्कार कर दिया.
तेलंगाना की पुलिस ने लाश मिलने के बाद पोस्टमॉर्टम कराया और शव को अंकित के बहनोई को सौंप दिया. अब दाह संस्कार के लिए शव को गांव लाने की बारी थी, पर यही पर गरीबी का दानव मुंह बाए खड़ा हो गया और अंकित का शव मिलने के बाद भी गरीबी के कारण घर नहीं लाया जा सका.अंकित का बहनोई भी गरीब ही ठहरा. इस कारण उसकी भी ऐसी हैसियत नहीं रही कि वह अपने साले की लाश को तेलंगाना से 1,322 किमी. की दूरी तय कर औरंगाबाद ला सके. यहां तक कि गरीबी और पैसे के अभाव में परिजन भी तेलंगाना नहीं जा सके. इस स्थिति में बेचारा बहनोई मरता क्या न करता. उसने भी अर्थाभाव में अपने शाले की शव को वहीं मिट्टी में दफना दिया.
इधर, शिवपुर गांव में परिजनों ने मृतक के नाम का पुतला बनाकर दाह संस्कार कर दिया. शिवपुर के ग्रामीण भरत पाठक, ललित पाठक और रघुवीर पासवान ने बताया कि सुरेंद्र मालाकार का परिवार बेहद गरीब है। अंकित ही मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करता था. उसकी मौत के बाद स्थिति और भी खराब हो गई है फिलहाल तो परिजनों के पास अंकित का ब्रह्मभोज करने के लिए भी पैसे नहीं है. इस हादसे के बाद शिवपुर गांव में मातम पसरा है. गांव के लोग गरीबी के कारण परिजनों द्वारा शव नही लाए जाने से हतप्रभ है. अब स्थिति यह है कि यदि गांव वाले आपस में चंदा कर कुछ रुपये का इंतजाम कर भी लेते तो भी दूरी इतनी लंबी थी कि लाश तो आ जाती पर उसकी हालत बेहद खराब हो जाती. इस वजह से भी परिजनों ने पुतला बनाकर ही दाह संस्कार की क्रिया करना मुनासिब समझा. परिजनों को अंकित की लाश नहीं ला पाने से गम दोहरा हो गया है. उनका रो- रोकर हाल बेहाल है. इस बीच ग्रामीणों ने शासन- प्रशासन के स्थानीय अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का ध्यान आकृष्ट कराते हुए गरीब परिवार को मदद पहुंचाने की गुहार लगाई है.