सरायकेला/ Pramod Singh भगवान जगन्नाथ के रथ उत्सव की तैयारी सरायकेला, हरिभंजा, खरसावां तथा आस- पास के जगन्नाथ मंदिरों में शुरू हो गई है. शनिवार को सरायकेला के प्राचीन जगन्नाथ मंदिर में परंपरा के अनुसार देव स्नान पूर्णिमा उत्सव का आयोजन किया गया. इसमें प्रभु जगन्नाथ को देव स्नान कराया गया. साथ में खट्टा प्रसाद खिलाया गया. इससे भगवान जगन्नाथ बीमार होकर स्वास्थ्य लाभ के लिए अन्नसरगृह में चले गए.
सरायकेला में ढाई सौ वर्षोँ से पुरी के तर्ज पर रथयात्रा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. सरायकेला के रथ यात्रा में सारे अनुष्ठान एवं विधि- विधान पुरी की तर्ज पर आयोजित की जाती है. शनिवार को जगन्नाथ मंदिर में पारंपरिक रीति- रिवाज के अनुसार देव स्नान पूर्णिमा पर प्रभु जगन्नाथ, भाई बलभद्र एवं बहन शुभद्रा की पूजा- अर्चना कर देव स्नान कराया गया. मंदिर में आयोजित धार्मिक अनुष्ठान के तहत सुगंध मिश्रित 108 कलश के पवित्र जल से मंदिर के पुजारी ने प्रभु को देव स्नान कराया. इसके बाद प्रभु जगन्नाथ, दाउ बलभद्र एवं बहन शुभद्रा का श्रृंगार कर उन्हें मंदिर स्थित सिंहासन पर विराजमान कराते हुए भक्तों ने प्रभु की पूजा- अर्चना की. पूजा-अर्चना के बाद प्रभु को खीर- खिचड़ी व खट्टा आमड़ा से बनी सब्जी का प्रसाद चढ़ाया गया. खट्टा प्रसाद खाते ही प्रभु बीमार हो गए और स्वास्थ्य लाभ के लिए पंद्रह दिनों के लिए प्रभु मंदिर स्थित अन्नसर गृह में चले गए.
इस दौरान जगन्नाथ पूजन के लिए पंद्रह दिनों तक मंदिर का कपाट बंद रहेगा. अस्वस्थता के दौरान प्रभु का उपचार की परंपरा निभाई जाएगी. परंपरा के अनुसार माली परिवार द्वारा विशेष औषधि की दो खुराक का सेवन प्रभु को कराया जाएगा. दवा का सेवन कर प्रभु स्वस्थ्य हो जाएंगे. प्रभु 7 जुलाई को नेत्र उत्सव में भक्तों का दर्शन देंगे उसी दिन महाप्रभु जगन्नाथ अपने मौसी के घर के लिए निकलेंगे.
*जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें*
हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा बहुत विशेष मानी जाती है. यह त्योहार भगवान कृष्ण के साथ- साथ भाई बलभद्र और उनकी छोटी बहन सुभद्रा की पूजा के लिए समर्पित है. यह दिव्य उत्सव पूर्णिमा से शुरू होता है. इस उत्सव के दौरान मुख्य रूप से तीन रथ आकर्षण के केंद्र होते हैं. सदियों पुरानी यह परंपरा सभी भक्तों के लिए खास है. ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 12वीं शताब्दी में हुई थी. इस शुभ अवसर पर जगन्नाथ मंदिर से बलराम, जगन्नाथ और सुभद्रा की मूर्तियां बाहर आती हैं. इसके बाद इस पवित्र यात्रा की शुरुआत होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस रथ को खींचने से भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को अपार सुख- समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं और उनकी सभी बाधाओं का नाश करते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि इसमें शामिल होने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस साल इसका आरंभ 07 जुलाई और समापन 16 जुलाई को होगा.