सरायकेला : झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिले को कुदरत ने अप्रतिम प्राकृतिक सुंदरता बख्शी है. कलकल बहती नदियां, पेड़-पौधों से आच्छादित पहाड़ और जंगलों में विचरण करते वन्य प्राणी. जिधर नजर फेरें दिल को सकून देते मनोहारी दृश्य दिख जाएंगे. ऐसे ही स्थलों में एक है महाभारत काल के धरोहरों को समेटे बोंगबोंगा नदी के तट पर स्थित भीमखंदा.
यहां दिसंबर माह में पिकनिक करने वालों की भीड़ उमड़ती है. राजनगर प्रखंड मुख्यालय से लगभग बारह किमी दूरी पर बाना टांगरानी पंचायत के समीप स्थित भीमखंदा काफी रमणीक स्थल है. बोंगबोंगा नदी की कल- कल करती धारा व विराजमान बाबा बानेश्वर महादेव की पूजा- अर्चना सहित रमणिक स्थल सैलानियों को पिकनिक करने के लिए अपनी ओर आकर्षित करती है. भीमखंदा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सरकारी स्तर से भी प्रयास किए गए हैं. उक्त स्थल पर बैठने के लिए चेयर से लेकर झूला आदि भी लगाए गए हैं, जो सैलानियों को अपनी और आकर्षित कर रहा है. सिर्फ राजनगर ही नहीं, सरायकेला, खरसावां, जमशेदपुर व पडोसी राज्य ओडिसा से भी लोग अपने परिवार के साथ यहां पहुंचते हैं. पिकनिक स्थल पर भीमखंदा सेवा ट्रस्ट द्वारा साफ- सफाई की व्यवस्था की जाती है. 15 दिसंबर से मकर संक्रांति तक भीमखंदा पिकनिक स्थल पर पिकनिक करने वालों की काफी भीड़ रहती है.
भगवान भोलेनाथ की होती है पूजा अर्चना
नदी के बीचो बीच भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं. बरसात के दिनों में पहले नदी में बाढ़ आने से पूरा मंदिर बालू से ढंक जाता था. उसके बाद मंदिर से बालू हटा कर पूजा- अर्चना की जाती थी. मंदिर का रमणीक स्थल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. वहीं सरकारी स्तर से विकसित किए जाने के कारण अब मंदिर बालू से नही ढंकता है. मंदिर के पुजारी नलिन पति बताते हैं यह स्थल महाभारत काल से जुड़ा हुआ है जिसके कारण दूर- दराज से लोग आते हैं. मान्यता है, कि भीमखंदा में महाभारत काल के समय अजुर्न ने यहां पर शिवलिंग की स्थापना की थी. यहां पर हर सोमवार को शिवभक्त पूजा- अर्चना करने के लिए आते है. हर साल मकर में आखान यात्रा के दिन टुसू मेला का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों की भीड़ जुटती है. कहा जाता है, कि महाभारत काल में पांडव वनवास के दौरान कुछ दिन यहां रुके थे. भीम ने यहां पर चुल्हा बनाया था, और उनके पैर के निशान, हाथी के पैर के निशान, पांडव द्वारा लिखी गई लिपि, अजुर्न द्वारा स्थापित शिवलिंग व अजुर्न पेड़ जो महाभारत युग की याद दिलाते हैं और लोगों को अपनी ओर आकषिर्त करते है.
चांडिल डैम की खूबसूरती के क्या कहने
चांडिल अनुमंडल से होकर बहनेवाली स्वर्णरेखा नदी पर स्थित चांडिल डैम की सुंदरता के क्या कहने. झारखंड में सबसे ज्यादा सैलानी इस डैम का लुफ्त उठाने पहुंचते हैं. यहां न केवल झारखंड बल्कि पड़ोसी जिला जमशेदपुर के अलावे बंगाल और ओडिशा से भी सैलानी पहुंचते हैं और पिकनिक का लुफ्त उठाते हैं. चांडिल बांध के पास स्थित संग्रहालय में चट्टानों पर लिखी गई लिपियां हैं, जो 2000 वर्ष पुरानी हैं. बहुउद्देश्यीय चांडिल डैम दो नदियों की धार को रोककर बनाया गया था. बांध की ऊंचाई 220 मीटर है और इसके पानी के स्तर की ऊंचाई अलग- अलग जगहों से 190 मीटर है, जो देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पर्यटकों को नौकायन और बांध के आसपास की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद देती हैं. स्वर्णरेखा नदी इस क्षेत्र के मध्य से बहती है. हंड्रू से होने वाली काकोरी नदी चांडिल में स्वर्णरेखा नदी के साथ मिलती है.
जायदा मंदिर
भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर, झारखंड के तीर्थ धामों में से एक है. स्वर्णरेखा नदी के रांची- टाटा मार्ग पर स्थित इस देवस्थल में मकर संक्रांति (टूसू महोत्सव) की पूर्व संध्या पर हर साल एक मेला का आयोजन किया जाता है. जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु मकर स्नान के बाद भगवान भोलेनाथ का दर्शन करते हैं. कई पहाड़ियों के बीच मे स्थित यह प्राचीन मंदिर सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहा है.
दलमा टॉप
दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी झारखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक है. चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में पड़नेवाले दलमा टॉप समुद्र तल से 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां भी हर साल हजारों की संख्या में सैलानी पहुंचते हैं.
मिरगी चिगड़ा
खुले आसमान के नीचे बिछी चट्टानों की प्राकृतिक चादर और खरकई नदी का कलकल करता पानी, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण मिरगी चिगड़ा सालों भर सैलानियों को अपनी ओर आकर्षिक करता है. इस स्थल का पौराणिक महत्व होने के कारण भी लोग यहां आते हैं. प्रतिवर्ष सिर्फ जनवरी के महीने में 22 से 25 हजार लोग यहां परिवार के साथ पिकनिक के लिए पहुंचते हैं. प्रकृति की गोद में बसे इस स्थल को देखकर लोग आनंदित हो जाते हैं. बहुत सारे सैलानी खरकई नदी के पानी में जकक्रीड़ा का आनंद भी लेते हैं. दिसंबर का बीत चुका है. अभी से लोग पिकनिक की तैयारियों में जुट गए हैं. मिरगी चिंगड़ा में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के पहले शनिवार को महिला मेला और उसके अगले मंगलवार को पुरुष मेला का आयोजन किया जाता है, जो विश्वभर में अनूठा है. यहां आए लोग स्थापित गर्भेश्वर महादेव का पूजन कर अपनी मनोकामना प्राप्त करते हैं.
मांस और मदिरा की मनाही
महाभारतकालीन पौराणिक स्थल की मान्यता होने के कारण इस स्थल पर मांस और मदिरा के सेवन की मनाही होती है. बताया जाता है कि भारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव इस क्षेत्र में प्रवास करते हुए गुजरे थे. जिसके कई प्रमाण हैं. पत्थरों पर पदचिन्ह एवं चूल्हों तथा पूज्य गृह के रूप में मौजूद हैं. परंतु समय के साथ स्थानीय अवैध पत्थर माफियाओं द्वारा ऐसे पुरातात्विक प्रमाणों को नष्ट किया जा रहा है.
1 Comment
भीमखांदा पर्यटन स्थल की जानकारियां दी गई है,जोआधी-अधूरी है और भ्रामक भी। पत्रकारिता में अनुसंधान की भी जरुरत है।मकर संक्रांति-आखाईन यात्रा का संबंध भी महाभारत काल से जूड़ा हुआ घटना है।