सरायकेला (Pramod Singh) कहते हैं न कि ऊपरवाले की लाठी में आवाज नहीं होता, मगर दर्द बेहद ही पीड़ादायक होता है. वर्दी के गुमान में अक्सर थानेदार ऐसी गलती कर जाते हैं, जिससे वर्दी दागदार होते हैं और पुलिस के आलाधिकारियों की जलालत झेलनी पड़ती है. थानेदारी के रौब में थानेदार मानवीय संवेदनाओं की भी परवाह नहीं करते. क्योंकि उन्हें पता होता है कि उनकी गलती पर विभाग उन्हें बचा लेगा, निलंबन से ज्यादा उन्हें कोई सजा नहीं मिल सकती है.
सरायकेला थाने के बाल मित्र कक्ष में जमशेदपुर के बहरागोड़ा के नाबालिग आदिवासी प्रेमी द्वारा बुधवार को बेल्ट के सहारे फांसी लगाकर आत्महत्या किए जाने के बाद एकसाथ कई सवाल न केवल थानेदार, बल्कि पुलिस के आलाधिकारियों पर भी उठ रहे हैं. हालांकि जिले के एसपी ने मामले की खुद जांच की और प्रथम दृष्टया थानेदार मनोहर कुमार को दोषी मानते हुए उन्हें निलंबित कर दिया है.
जिसके लिए थानेदार तैयार थे. मगर सवाल वही उठता है कि क्या निलंबन मात्र से थानेदार का गुनाह माफ हो जाएगा ? क्या नाबालिग के परिजनों को इंसाफ मिल जाएगा ? आखिर नाबालिग का गुनाह क्या था ? बस इतना ही कि उसने एक युवती से प्रेम किया था और युवती के परिजनों ने उसे थाने को सौंप दिया था, वो भी बगैर किसी शिकायत के ! फिर तीन दिनों तक युवक को सलाखों के पीछे क्यों रखा गया ? इसकी सूचना वरीय अधिकारियों को क्यों नहीं दी ? साफ जाहिर होता है कि युवक से छोड़ने के एवज में डील चल रहा था. जिसे दे पाने में युवक या उसके परिजन अक्षम थे.
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बगैर किसी शिकायत के नाबालिग आदिवासी युवक को थाने में रखना गुनाह की किस श्रेणी में आता है वरीय अधिकारियों को इसको ध्यान में रहते हुए थानेदार के खिलाफ कार्रवाई करने की जरूरत है. यह भी सोचना होगा कि आखिर युवक के साथ थाने में क्या हुआ होगा, कि उसे बेल्ट के सहारे फांसी लगाकर आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जबकि पुलिसिया प्रोटोकॉल के तहत यदि किसी संदिग्ध व्यक्ति/ युवक को हिरासत में लिया जाता है तो उसके शरीर में वस्त्र के अलावा कोई भी बाहरी परिधान नहीं होनी चाहिए. ऐसे में यक्ष प्रश्न फिर वही उठता है, कि युवक को आत्महत्या करने के लिए बेल्ट किसने उपलब्ध कराया.
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दूसरा अहम सवाल जब युवक ने आत्महत्या कर ही ली थी तो उसे उतारा क्यों गया ? क्यों नहीं उसकी वीडियोग्राफी कराई गई ? क्यों नहीं वरीय अधिकारियों के आने तक इंतजार किया गया ? बालमित्र थाना के कक्ष में युवक का शव जमीन पर कंबल में लिपटा पाया गया.
कंबल में लपेटने के पीछे मंशा क्या थी ? घटना बुधवार दिन के 11 बजे की थी, देर रात तक शव को थाना परिसर के बाल मित्र कक्ष में बिना किसी आला अधिकारी को सूचित किए बगैर शव को कंबल में लपेट कर रखने के पीछे मंशा क्या थी ? क्या अंधेरे का फायदा उठाकर शव को गायब करने की कोई मंशा थी ? इस बिंदु पर भी जांच होनी चाहिए. ऐसे कई सवाल है जिसका जवाब देना पुलिस के आला अधिकारियों के लिए मुश्किल होगा. मगर ऐसा तब होगा जब युवक के परिजन थानेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करेंगे. यहां सवाल यह भी उठता है कि जिसके परिजन पुलिस की डिमांड पूरा कर पाने में अक्षम थे, वे थानेदार के खिलाफ एफआईआर कहां से कर पाएंगे.
युवक आदिवासी समुदाय का था उसके परिजन इतने सक्षम नहीं है कि वे केस लड़ सके. ऐसे में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, ट्राईबल एडवाइजरी काउंसिल, आदिवासी संगठनों को मामले पर संज्ञान लेने की जरूरत है. तब जाकर कहीं ना कहीं युवक के परिजनों को इंसाफ मिलने की उम्मीद रहेगी.
एमजीएम भेजा गया नाबालिग का शव
एसपी आनंद प्रकाश ने बुधवार की रात को ही मामले को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया था. उन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रेट की निगरानी में नाबालिक के शव का पोस्टमार्टम कराए जाने की बात कही थी. गुरुवार अहले सुबह थाना प्रभारी के निलंबन का आदेश जारी करते हुए शव को जमशेदपुर एमजीएम मेडिकल कॉलेज भेजा गया. जहां मेडिकल बोर्ड की मौजूदगी में शव का पोस्टमार्टम कराया गया. समाचार लिखे जाने तक युवक के परिजनों द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं कराया गया है.
बाईट
आनंद प्रकाश (एसपी- सरायकेला)