सरायकेला: भले राजकीय चैत्र पर्व सह छऊ महोत्सव 2025 का सफलतापूर्वक समापन हो गया मगर छऊ गुरु और पद्मश्री शशधर आचार्य दुःखी हैं. दुःखी इसलिए हैं क्योंकि उन्हें अपने ही घर में अपमानित किया जा रहा है. अपनों की उपेक्षा और मीडिया में उनके बयानों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने पर भी पद्मश्री शशधर आचार्य खासे नाराज हैं. उनकी नाराजगी इसी से समझी जा सकती है कि, कलानगरी सरायकेला में तीन दिन पूर्व संपन्न हुए राजकीय चैत्रपर्व सह छऊ महोत्सव- 2025 के समापन समारोह से उन्होंने खुद को दूर कर लिया.


पिछले पांच- छह वर्षों में छऊ महोत्सव से ठीक पहले विवाद शुरू होता है और महोत्सव के समापन के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है. विवाद के केंद्रबिंदु में पद्मश्री शशधर आचार्य को रखा जाता है. यहां तक कि उनपर निजी हमले भी किए जाने लगे हैं. इसबार भी वैसा ही हुआ. महोत्सव के शुरुआत में उन्हें जिला प्रशासन की ओर से न्यौता दिया गया. वे इसमें शामिल भी हुए मगर आर्टिस्ट एसोसिएशन ने विरोध करना शुरू कर दिया. उसके बाद पद्मश्री शशधर आचार्य ने पूरे कार्यक्रम से खुद को अलग कर लिया. जिला प्रशासन द्वारा आयोजित दस दिनों तक चलनेवाला छऊ महोत्सव सफलतापूर्वक संपन्न भी हो गया. मगर महोत्सव के समापन के बाद जो हुआ उसने कला जगत की गरिमा को शर्मसार कर दिया.
इसमें कुछ मीडियाकर्मियों और उनके संस्थानों ने बड़ी भूमिका निभाई. वे यह भूल गए कि उनके तथ्यहीन और विवादित रिपोर्ट से शशधर आचार्य की नहीं “पद्मश्री” और “छऊ” का अपमान होगा. वे यह भी भूल गए कि शशधर आचार्य आज किसी परिचय के मोहताज नहीं रह गए हैं.
जिस छऊ के प्रचार- प्रसार और साधना के कारण उन्हें पद्मश्री जैसा सम्मान दिया गया उसी छऊ महोत्सव में उनकी गैरमौजूदगी वह भी तब जब वे सरायकेला में मौजूद थे हर कलाप्रेमी को आहत कर गया. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं इसपर यदि बात की जाए तो लोककला छऊ रूपी समुद्र विषाक्त हो जाएगा. कला जगत का शायद ही कोई ऐसा सम्मान होगा जो शशधर आचार्य को नहीं मिला हो. झारखंड का सर्वोच्च सम्मान “झारखंड गौरव” से लेकर “पद्मश्री” और न जाने कितने सम्मान पा चुके गुरु शशधर आचार्य की पीड़ा उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती है.
दरअसल छऊ महोत्सव की समाप्ति के बाद गुरु शशधर आचार्य के एक बयान को चुनिंदा मीडिया संस्थानों में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया. जिसमें उनके हवाले से कहा गया कि “पूर्व के छऊ गुरुओं को उन्होंने शिक्षा दी है” आर्टिस्ट एसोशिएशन ने इसका कड़ा विरोध किया है. यहां तक कि उनका पुतला फूंकने की चेतावनी दे डाली. गुरु शशधर आचार्य इसी को लेकर आहत है. श्री आचार्य ने कहा कि उनका पुतला फूंकने की आवश्यकता नहीं है. वे सशरीर मौजूद है. जिन्हें उनके कला और योग्यता पर शक है वे आएं और उन्हें जिंदा जला दें. मगर अपमानित न करें. छऊ गुरु ने वैसे लोगों को खुली चुनौती दी है जो उनकी कला और योग्यता पर सवाल उठा रहे हैं और उन्हें अपमानित करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कलाकार हूं मंच तैयार करें और शास्त्रार्थ के लिए सामने आएं इस तरह से मीडिया का सहारा लेकर “छऊ” जैसी कला का अपमान न करें. मीडियाकर्मियों और उनके संस्थानों को ऐसे रिपोर्ट से बचना चाहिए. उन्होंने बताया कि उनकी पांचवीं पीढ़ी छऊ के उत्थान के लिए समर्पित है. छठी पीढ़ी के रूप में उनके पुत्र ने भी इस कला को अपना लिया है. छऊ के विकास में उनका एवं उनके परिवार का क्या योगदान है इसे किसी को बताने की जरूरत नहीं है. मैंने अपना पूरा जीवन ही छऊ के विकास के लिए समर्पित कर दिया है. आज उनके सिखाए कलाकार दुनिया के फलक पर छऊ का प्रचार प्रसार कर रहे हैं. छऊ कलाकेंद्र सरायकेला को कुछ लोग राजनीति के आग में झोंक रहे हैं और वे भस्मासुर की भूमिका में हैं जिससे छऊ का अपने जन्मभूमि से पतन हो जाएगा. इसके पतन को रोकने के लिए ही पांच साल पूर्व दिल्ली छोड़ सरायकेला आया और यहां बच्चों को निःशुल्क छऊ की तालीम दे रहा हूं. बाहर से भी बच्चे इस विधा को सीखने आ रहे हैं. ऐसे में उनपर अपने ही घर में लांछन लगाना तर्कसंगत नहीं है.
उन्होंने कहा कि पूर्व में छऊ कलाकेंद्र का बजट दो से ढाई लाख का बजट हुआ करता था आज की तारीख में इसका 70 लाख का बजट हो चुका है. इसके लिए उन्होंने जो मेहनत की है उसकी चर्चा करने के बजाए राजनीत के तराजू पर उनकी योग्यता को तौला जा रहा है. जो उनका विरोध कर रहे हैं उन्हें सामने आकर कला के जरिये सामना करनी चाहिए. आज छऊ कलाकेंद्र गुरु विहीन है. वहां के बच्चों सही तालीम नहीं मिल पा रही है. उनका सुर- ताल और लय बिगड़ रहा है इससे छऊ अपने मूल प्रकृति से भटक जाएगा और पूर्वजों की महान विरासत सरायकेला से विलुप्त हो जाएगी. मैंने कहीं भी ये नहीं कहा है कि पूर्व के गुरुओं को उन्होंने तालीम दी है, बल्कि ये कहा है कि गुरु मकरध्वज दारोगा, जयराम सामल, अवनि कांत मोहंती, डोम काका और बिसो काका ने उनके केंद्र में शिक्षा दी जिसे तोड़मरोड़कर पेश कर दिया गया और विवाद का रूप दे दिया गया.
