कांड्रा/ Bipin Varshney टूटी सड़क की मरम्मत होते आप लोगों ने कई बार देखा होगा, लेकिन सड़क निर्माता कंपनी जीआरडीसीएल के कर्मियों द्वारा सड़क के गड्ढों को भरने के लिए अब एक नया तरीका अपनाया जा रहा है. यह नजारा मेन रोड कांड्रा मे गुरुवार देखने को मिला, जब कई जगहों पर पूरी तरह टूट चुकी मुख्य सड़क की मरम्मत करने आए कंपनी के कर्मचारियों ने सड़क निर्माण सामग्री रोड पर तो बिछा दी लेकिन लेबल करने के लिए उसके ऊपर रोलर चलाने के बजाय एक ट्रक को ही आगे पीछे कर रोलर का काम चला लिया.
अब कंपनी के पास रोलर की उपलब्धता है या नहीं यह एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब मांगने पर सड़क रिपेयरिंग करने आए कर्मचारी ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सिर से सिंग. मिनटों में कर्मचारी के साथ- साथ रोलर के रूप में उपयोग किया जाने वाला ट्रक भी नौ दो ग्यारह हो गया.
बता दें कि उक्त सड़क टोल रोड है जिसके लिए वाहन चालकों को एक निश्चित रकम चुकानी पड़ती है, लेकिन सड़क निर्माण की सामग्री को लेकर पहले से सुलगते सवाल अब आइना दिखा रहे हैं. मेन रोड कांड्रा में सड़क कई स्थानों पर टूट गई और उसकी रिपेयरिंग के लिए सड़क निर्माता कंपनी ने चिपिंग का सहारा लिया है. मगर यहां सड़क निर्माण में प्रयुक्त की जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता ऐसी है कि चिपिंग के 15 दिन बाद सड़क फिर से उखड़ जाती है और महीनों बाद कर्मचारी खानापूर्ति करने दोबारा से वहां पहुंच जाते हैं. यह हाल तब है जब करोड़ों रुपए की वार्षिक कमाई इस रोड के माध्यम से सड़क निर्माता कंपनी को टोल के रूप में प्राप्त होती है.
सड़क के रखरखाव और साफ- सफाई के लिए जेआरडीसीएल कभी अपनी ओर से दिलचस्पी नहीं दिखाता है. जिसका परिणाम है कि मेन रोड कांड्रा में लगाए गए स्ट्रीट लाइट में से 70 फीसदी स्ट्रीट लाइट बेकार हो चुके है. इन्हें दुरुस्त करने या बदलने के लिए कभी सड़क निर्माता कंपनी ने जहमत नहीं उठाई. यहां सवाल यह उठता है, कि जब टोल रोड में सड़क की स्थिति ऐसी है तो फिर अन्य सड़कों का क्या हाल होगा, जहां टोल की वसूली नहीं होती है ?
स्थानीय लोगों की मानें तो उक्त सड़क पर ओवरलोडेड वाहनों का खुलेआम आवागमन होता है. टोल प्लाजा के सामने कैंप लगाकर दोपहिया वाहन चालकों को सुरक्षा के मानकों का पालन नहीं करने पर चालान काटने वाले ट्रैफिक पुलिस कर्मियों को ना तो इन ओवरलोडेड वाहनों को पकड़ने से मतलब है ना ही उन्हें दंड लगाना उनके मंसूबे में शामिल है. जानकारों के मुताबिक इन ओवरलोडेड वाहनों के मालिकों द्वारा प्रतिमाह एक मोटी रकम ट्रैफिक विभाग के उच्च अधिकारियों तक पहुंचाई जाती है, जिससे ओवरलोड वाहन ना सिर्फ सड़कों की दुर्दशा करवा रहे हैं बल्कि राहगीरों की जान भी जोखिम में डाल रहे हैं.
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