सरायकेला: सरायकेला, एवं आसपास के क्षेत्र में मकर पर्व से एक दिन पूर्व पारंपारिक रीति रिवाज के अनुसार बाउड़ी मनाई गई. शुक्रवार को पवित्र स्नान के साथ मकर मनाया जाएगा जिसकी अंतिम तैयारियां पूरी की जा रही है. गुरुवार को सरायकेला, सीनी, राजनगर, आदित्यपुर, गम्हरिया एवं आपसाप के हाट- बाजार व दुकानों में लोगों ने जमकर मकर की अंतिम खरीददारी की. मकर पर्व झारखंड का मुख्य त्योहार है जिसे पारंपारिक रीति- रिवाज के अनुसार काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस मौके पर हर समुदाय व तबके के लोग मकर स्नान कर नया वस्त्र धारण करते हैं, और नए अन्न से बने तरह- तरह के पकवान बनाते हैं. मकर पर्व की शुरुआत बाउड़ी के साथ की जाती है. सरायकेला एवं आसपास के विभिन्न क्षेत्र में पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार बाउड़ी मनाई गई. बाउड़ी के दिन लोग मकर की अंतिम तैयारी पूरी करते हैं. इस दिन मकर संक्रांति के मौके पर बनाये जाने वाले पकवान की तैयारी की जाती है. बांउड़ी के दिन भी लोगों ने जरुरतों के मुताबिक मकर की खरीददारी की. सरायकेला में कपड़े, जूते-चप्पल, सौंदर्य प्रसाधन एवं किराना दुकानों में खरददारी करने वाले ग्राहकों की काफी भीड़ रही. जहां गुरुवार को महामारी की भयावहता को दरकिनार कर लोग देर रात तक खरीदारी में व्यस्त रहे.
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मकर संक्रांति की धार्मिक मान्यता
मकर संक्रांति भारतीयों का प्रमुख त्योहार है और अलग- अलग राज्यों, शहरों एवं गांवों में वहां की परंपरा के अनुसार मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. इसी दिन अलग- अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है. कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत इसी दिन से होती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वंय उसके घर आते हें. शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन ही चुना था. कहा जाता है कि मकर संक्रांति के ही के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे- पीछे चल कर कपिल मुनि के अश्रम से होकर गंगा सगर में जा मिली थी.
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