सरायकेला/ Pramod Singh झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं. 2019 में डबल इंजन की सरकार को बेपटरी कर हेमंत सोरेन राज्य की सत्ता पर काबिज हुए. दो साल वैश्विक त्रासदी के बीच हेमंत सोरेन ने तमाम झंझावातों को झेलते हुए तीन साल पूरे कर लिए हैं. वैसे अब सरकार और विपक्ष चुनावी मोड में आ चुकी है.
यहां हम बात कर रहे हैं सरायकेला और खरसावां विधानसभा सीट की. जहां पिछले दो विधानसभा चुनाव में दोनों ही सीट पर भाजपा जीत को तरस गयी है. सरायकेला विधानसभा सीट पर पिछले चार विधानसभा चुनाव में अजेय रहे मंत्री चम्पई सोरेन के आगे भाजपा नेता गणेश महाली ने हथियार डाल खरसावां का रुख कर लिया है. यूं कहें तो चम्पई के कुदरा भूत के खौफ से गणेश महाली ने सरायकेला का मैदान छोड़ दिया है. इन दिनों महाली खरसावां में नेट प्रैक्टिस कर रहे हैं. वैसे चम्पई सोरेन के कुदरा भूत ने भाजपा नेता लक्ष्मण टुडू और पूर्व विधायक रहे अनंत राम टुडू के राजनैतिक कैरियर पर ग्रहण लगा दिया है. दोनों ही नेता आज राजनीतिक दौड़ से लगभग बाहर हो चुके हैं. चूंकि अनंतराम टुडू पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के बेहद करीबी हैं, इसी वजह से यदा- कदा व राजनीतिक कार्यक्रम में नजर आ जाते हैं. इस सूची में जल्द ही गणेश महाली भी आ सकते हैं. हालांकि महाली पुरजोर नेट प्रैक्टिस में जुटे हैं.
2014 की हार से नहीं उबर सकी भाजपा और महाली
भाजपा ने गणेश महाली को टिकट दिया. मोदी लहर के बीच भाजपा इस सीट को बचा पाने में विफल रही. यहां तक कि खरसावां सीट से मुख्यमंत्री रहते अर्जुन मुंडा भी किला बचाने में विफल रहे थे. तब से लेकर आजतक भाजपा दोनों सीटों पर जीत को तरस रही है.
महाली को लेकर आरएसएस में दुविधा
भजपा लगातार दो चुनाव में महाली को जिता पाने में विफल रही. तब गणेश महाली अर्जुन मुंडा के खास थे. पहली बार अर्जुन मुंडा की वजह से 2014 में भाजपा ने उन्हें टिकट दिया, मगर महाली का पूर्व का इतिहास उन्हें जीता न सका. महाली 1100 वोट से चम्पई सोरेन से हार गए. अंदरखाने की माने तो महाली को लेकर आरएसएस दुविधा में रही. आरएसएस नहीं चाहती थी कि गणेश महाली को पार्टी टिकट दे. 2019 में अंतिम क्षण में गणेश महाली को टिकट थमाया गया, मगर इस बार भी भाजपा और महाली इस सीट को बचा पाने में विफल रहे. इस बार चम्पई सोरेन ने गणेश महाली को करीब 15000 मतों के भारी अंतर से पराजित कर अपनी धमक साबित कर दी. चंपई सोरेन सरायकेला विधानसभा से 6 बार विजयी रहे हैं. एक बार उन्हें अनंतराम टुडू से मात खानी पड़ी थी. अनंतराम टुडू आरएसएस के पसंद थे. झारखंड अलग राज्य गठन होने के बाद अनंतराम टुडू सरायकेला से पहले विधायक चुने गए थे, मगर भाजपा ने 2005 में अनंतराम टुडू का टिकट काट लक्ष्मण टुडू को टिकट थमाया तब से लेकर आज तक इस सीट पर भाजपा एक अदद जीत को तरस रही है.
महाली का खरसावां प्रेम, इस बार भी बोरो के सहारे खरसावां में भाजपा
2014 में मुख्यमंत्री रहते अर्जुन मुंडा के खरसावां सीट हारने के बाद 2019 में भी भाजपा इस सीट को बचा पाने में विफल रही. भाजपा इस सीट पर मजबूत और दमदार प्रत्याशी दे पाने में विफल रही. पिछले विधानसभा चुनाव में जवाहरलाल बानरा को पार्टी ने टिकट दिया और उन्हें दशरथ गागराई ने करारी शिकस्त देकर लगातार दूसरी बार जीत का परचम लहराया. हालांकि अब तक भाजपा यहां मजबूत प्रत्याशी खड़ा करने में विफल साबित रही है. यही वजह है कि गणेश महाली अब खरसावां से नई पारी की शुरुआत करने की तैयारी में जुटे हैं, और यहां जमकर पसीना बहा रहे हैं. वैसे लक्ष्मण टुडू पर यह प्रयोग सफल रहा था और 2014 में घाटशिला से उन्होंने भाजपा के लिए जीत का परचम लहराया था, मगर 2019 में भाजपा ने फिर से लक्ष्मण का टिकट काट दिया, नतीजा भाजपा के हाथ से घाटशिला सीट निकल गयी. हालांकि 2019 के विधानसभा चुनाव में पूरे कोल्हान में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था.
सरायकेला से मीरा रेस में, रमेश हांसदा का हो सकता है राजनीतिक वनवास
राजनीतिक पंडितों की अगर मानें तो सरायकेला विधानसभा से इस बार भाजपा केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की धर्म पत्नी मीरा मुंडा पर दांव खेल सकती है. मीरा मुंडा महिलाओं में बेहद ही लोकप्रिय है, और अपनी दमदार राजनीति की वजह से जानी जाती है. पार्टी के सभी वर्गों पर मीरा मुंडा का पकड़ है. वहीं झामुमो छोड़ भाजपा में आए रमेश हांसदा को इस बार भी निराशा हाथ लग सकती है. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के करीबी माने जाने वाले रमेश हांसदा को पिछली बार ही टिकट मिलने की संभावना थी, मगर अंतिम क्षणों में रमेश हांसदा चूक गए और टिकट गणेश महाली को दे दिया गया. हालांकि रमेश हांसदा लगातार क्षेत्र में सक्रिय जरूर हैं, मगर पार्टी के अंदरखाने में उनको लेकर दुविधा की स्थिति बनी हुई है. वैसे रमेश को संथाल समाज से आने का लाभ मिल सकता है. कुल मिलाकर कहे तो सरायकेला और खरसावां विधानसभा सीट पर इस बार भी भाजपा उहापोह की स्थिति में है. भले भाजपा 2024 के चुनावी मोड में है, मगर भाजपा के पास ऐसा चेहरा नहीं है जो चंपई सोरेन का सामना कर सके.