ब्यूरो प्रमुख प्रमोद सिंह की रिपोर्ट

सरायकेला: मौसी बाड़ी में विराजमान प्रभु जगन्नाथ ने मंगलवार को अपने दाउ बलभद्र के साथ भक्तों को मत्स्य- कच्छ के रुप में दर्शन दिया. जानकारी हो कि मौसी माड़ी में प्रभु जगन्नाथ अपने भक्तों को विभिन्न अवतार के रुप में दर्शन देते हैं. भगवान विष्णु के 10 अवतार में से यह पहला और दूसरा अवतार है. जब एक राक्षस धर्म ग्रंथों को चुराकर समंदर की गहराई में छुपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने मछली का रूप धारण करके उन ग्रंथों को खोज निकाला था. और दूसरा जब समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु ने कछुआ का रूप धारण करके मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर उठा रखा था.
सरायकेला में यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. यहां के छउ मुखौटा कलाकार सुशांत कुमार महापात्र अपने सहयोगी कलाकारों के साथ हर साल भगवान जगन्नाथ, दाउ बलभद्र व शुभद्रा का अलग- अलग अवतारों के रुप में श्रंगार करते आ रहे हैं. मंगलवार को प्रभु जगन्नाथ, दाउ बलभद्र का मत्स्य- कच्छ के रुप में दर्शन के लिए सुशांत कुमार महापात्र ने अपने सहयोगी कलाकार सुमित महापात्र, अमित महापात्र, उज्जवल सिंह, पार्थ सारथी दास, शुभम कर , मुकेश साहू, मानू सत्पथी, विक्की सत्पथी एव गौतम बनर्जी के साथ भगवान की वेश सज्जा की. मंगलवार को काफी संख्या में स्थनीय एवं दूरदराज गांवों से आकर श्रद्धालुओं ने मौसी बाड़ी में प्रभु जगन्नाथ के मत्स्य- कच्छ रुप का दर्शन कर पूजा- अर्चना की. महाप्रभु के मत्स्य- कच्छ के रुप में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी.
कहा जाता है कि पहले गुंडिचा मंदिर में रहने के दौरान प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा की हर दिन अलग- अलग वेश सज्जा की जाती थी. परंतु वर्तमान में भगवान श्री हरि विष्णु के दशावतारों के रूप में की जाने वाली वेश परंपरा दो- तीन दिन ही हो पाती है. इस वर्ष भी गुरु सुशांत कुमार महापात्र के निर्देशन में कलाकार सुमित महापात्र, अमित महापात्र, उज्ज्वल सिंह, पार्थ सारथी दास, शुभम कर और मुकेश साहू द्वारा भगवान की वेष सज्जा की जाएगी. इसके तहत मंगलवार को भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की वेश सज्जा की गयी. गुरु सुशांत कुमार महापात्र के निर्देशन में इस वर्ष भगवान विष्णु के नरसिंह- वराह और कल्कि अवतार के रूप में भी वेष सज्जा की जाएगी.
बताया जाता है कि सरायकेला रथ यात्रा में वेश परंपरा की शुरुआत 70 के दशक में शुरू हुई थी. गुरु प्रसन्न कुमार महापात्र, डोमन जेना, सुशांत महापात्र जैसे कलाकारों द्वारा प्रभु की वेश सज्जा की जाती थी. वर्तमान में गुरु सुशांत कुमार महापात्र के निर्देशन में स्थानीय कलाकारों द्वारा सरायकेला रथ यात्रा में वेष परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. गुंडिचा मंदिर (मौसी बाड़ी) का कपाट बंद कर मध्य रात्रि से वेष सज्जा प्रारंभ की जाती है. अहले सुबह गुंडिचा मंदिर का कपाट खुलते ही अवतार के स्वरूप में महाप्रभु श्री जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के दर्शन भक्त करते हुए पूजा अर्चना करते हैं.
