गम्हरिया: वैश्विक त्रासदी कोरोना महामारी के दूसरे लहर की त्रासदी को लोग अभी भूले नहीं हैं. जबकि ओमिक्रोन नाम के वायरस का खतरा अभी बना हुआ है. दूसरे लहर के दौर में देश और राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हकीकत की बधिया उधेड़कर रख दी थी. लाखों लोगों की मौत के बाद किसी तरह दूसरे लहर का प्रकोप कम जरूर हुआ है, मगर खतरा पूरी तरह से टला नहीं है
केंद्र और राज्य सरकारों के साथ सरकारी महकमा स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के बजाए चुनावी दांव- पेच और जुमलेबाजी में जुट गए हैं.
चलिए अब हम आपको झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिले के जमीनी हकीकत से आपको अवगत कराते हैं. जहां गम्हरिया प्रखंड क्षेत्र के डुमरा पंचायत स्थित उप स्वास्थ्य केंद्र अपने निर्माण के बाद दुल्हन की तरह सज- धज कर तैयार है, मगर विभागीय उदासीनता के कारण 10 वर्ष पूर्व बना यह उप स्वास्थ्य केंद्र अबतक तक स्वास्थ्य विभाग को हैंडोवर ही नहीं हो पाया है.
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बताया जा रहा है कि अभी भी उक्त भवन में काफी काम होने बाकी हैं. लाखों खर्च कर बना अस्पताल का यह भवन ग्रामीणों के लिए मृगतृष्णा बनकर रह गया है. आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र का यह अस्पताल डुमरा गांव में महज एक शोभा की वस्तु बनकर रह गया है. इसका सबसे बड़ा कारण विभागीय उदासीनता है.
यह कैसी विडंबना है कि 10 साल बीत जाने के बाद भी इसे स्वास्थ्य विभाग को हैंड ओवर नहीं किया गया. कोरोना काल में जहां स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर हाहाकार मचा था. वही स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की उदासीनता ने सिद्ध कर दिया है, कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने में सरकार और विभाग कितना संवेदनशील है.
इन दिनों सरकार आपके द्वार कार्यक्रम के जरिए सरकार और सरकारी तंत्र जो ढिंढोरा पीट रही है उसकी हकीकत बयां करने के लिए यह अस्पताल का भवन काफी है. वर्तमान में दुल्हन की तरह सजे इस भवन में सन्नाटा पसरा हुआ है. एक छोटे से खंडहरनुमा भवन में स्वास्थ्य कर्मी अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं. वहीं गम्हरिया प्रखंड के स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी प्रमिला कुमारी से जब इस संबंध में जानकारी चाही तो उन्होंने बताया, कि अभी तक विभाग द्वारा भवन हैंड ओवर ही नहीं हुआ है. इस वजह से उन्होंने नए भवन में उप स्वास्थ्य केंद्र को चालू कराने में असमर्थता जाहिर की.
वैसे हमारा उद्देश्य सरकार और सरकारी तंत्र पर कटाक्ष करना नहीं है, बल्कि सिस्टम को कुम्भकर्णी निंद्रा से जगाना है, क्योंकि इससे बदनामी सरकार और प्रशासन की जरूर होती है मगर भुगतना जनता को पड़ता है.
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