सरायकेला: कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर सरायकेला- खरसावां जिला के विभिन्न ओड़िया बाहुल्य क्षेत्रों में शुक्रवार को बोईतो बंदाण उत्सव मनाया गया. सरायकेला, राजनगर, माहलीमोरुप, सीनी व आसपास के क्षेत्रों में यह उत्सव मनाया गया
. लोगों ने शुक्रवार को सूर्योदय के पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में नदी-सरोवर में कार्तिक स्नान किया. इसके बाद सदियों पुरानी उत्कलीय परंपरा केला के पेड़ के छाल से तैयार नाव को सजा कर नदी और सरोवर में छोड़ा गया. स्थानीय भाषा में लोग इसे डोंगा- भोसा कहते हैं. युवक-युवतियों ने कागज और थर्मोकोल से बनाए गए नाव को भी पानी में छोड़ा. नावों को रंग-बिरंगी फूलों से भी सजाया गया था. सरायकेला के खरकाई नदी के मांजना घाट व तेलीसाई घाट में भक्तों की भीड़ उमड़ी. स्थानीय मांजना घाट में नगर पंचायत के अध्यक्ष मीनाक्षी पट्टनायक ने भी डोंगा भोंसा कर क्षेत्र की सुख, शांति व समृद्वि की मंगलकामना की. पवित्र कार्तिक माह के अंतिम दिन पूर्णिमा के ब्रह्म मुहूर्त पर लोगों ने सूर्योदय से पूर्व नदी और तालाब में आस्था की डुबकी लगाई और पवित्र स्नान कर लोगों ने मंदिरों में पूजा अर्चना की. कार्त्तिक पूर्णिमा को लेकर लोगो में खासा उत्साह देखा गया. इसके बाद पवित्र स्नान कर मंदिरों में पूजा- अर्चना किये. इस दौरान सरायकेला के श्री जगन्नाथ मंदिर, शिव मंदिर व राधा कृष्ण मंदिरों में भक्तो का तांता लगा रहा. कार्त्तिक पूर्णिमा को लेकर प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा का मौके पर विशेष शृंगार किया गया था. कई घरों में भगवान सत्यनारायण की व्रत कथा का भी आयोजन किया गया. उल्लेखनीय है, कि हिंदू धर्म शास्त्र में कार्तिक माह को काफी पवित्र माह माना जाता है. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर हर धार्मिक अनुष्ठान ईश्वर को स्वीकार होता है. मौके पर कई स्थानों में सत्यनारायण व्रत कथा का भी आयोजन किया. पूजा के पश्चात श्रद्धालुओं में प्रसाद का वितरण किया गया. सरायकेला- खरसावां में सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर पवित्र विष्णु पंचुक व्रत का पारण किया गया. काफी संख्या में महिलाओं ने कार्तिक माह के दशमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु पंचुक व्रत रखा था. कार्तिक पूर्णिमा के साथ 5 दिवसीय पंकुच व्रत का भी समापन हो गया. अधिकांश घरों में तुलसी मंडप के पास रंग-बिरंगी रंगोली बना कर राई- दामोदर की पूजा की गयी. ओड़िया समुदाय के लोग कार्तिक पूर्णिमा को सबसे महत्वपूर्ण दिन मानते हैं और इस दिन को हर संभव पुण्य कार्य करते हैं.