सरायकेला (Pramod Singh) सरायकेला- खरसावां जिला आज भी पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं को संजोये रखा है. यहां आजादी के बाद से सरकारी फंड से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है. इतना ही नहीं दुर्गा पूजा के अलावा अन्य नौ पूजा पारंपरिक तरीके से सरकार अपने खर्च पर करती है. जिले में 360 वर्षों से तांत्रिक विधि से दुर्गा पूजा की जाती है. राजमहल स्थित मां पाउड़ी के मंदिर में जिउतिया अष्टमी से सोलह दिवसीय दुर्गा पूजा का शुभारंभ किया जाता है. इस दौरान हर दिन बकरे की पूजा की जाती है. महाअष्टमी के बाद नुवाखिया की परंपरा है. उस दिन राजपरिवार के शादीशुदा सदस्य नदी से नये घड़े में पानी लेकर आते हैं और नये घड़े में नया चावल से नये चूल्हे पर खीर बनाई जाती है.
बता दें, पहले राजमहल के बाहर उस जगह पर दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता था, जहां बार एसोसिएशन का भवन है. बाद में वर्तमान दुर्गा पूजा मैदान में उत्तर दिशा पर खपरैल का मंदिर बनाकर सार्वजनिक दुर्गा पूजा के नाम पर पूजा का आयोजन होता है. सरायकेला राजघराने की बेटी हेमप्रभा देवी की शादी पटियाला के राजघराने में हुई. उन्होंने ही पक्का मंदिर का निर्माण कराया है. वर्षों तक यहां जनसहयोग से दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया. कालांतर में श्रद्धालुओं ने मंदिर के नव निर्माण का निर्णय लिया और जनसहयोग से विभिन्न कलाकृतियों के साथ दुर्गा मंदिर का निर्माण किया.
राज परिवार की दुर्लभ तस्वीर
यहां शारदीय नवरात्र के मौके पर षष्ठी को बेलवरण के साथ दुर्गा पूजा का शुभारंभ होता है. सप्तमी को खंडा धुआं होता है. जिसमें राजपरिवार के लोग अस्त्र लेकर नदी जाते है और इसकी सफाई कर वनदेवी की पूजा- अर्चना करते हैं. महाअष्टमी को संधि बलि की परंपरा है. जिसमें भैंसे की पूजा की जाती है. राजमहल के बाहर दुर्गा पूजा में नवमी को भैंसे की पूजा होती है. जबकि पूजा के दौरान दर्जनों भेड़- बकरे की बलि दी जाती है.
1954 से हो रही सरकारी पूजा
सरायकेला में 1954 से प्रशासन स्तर पर पूजा की जाती है. आजादी से पूर्व सरायकेला में दुर्गा पूजा का आयोजन यहां के राजा- महाराजा करते थे. आजादी के बाद रियासतों का विलय के दौरान सरकार ने राजस्टेट द्वारा किये जा रहे सभी धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन प्रशासन द्वारा करने का समझौता किया.
रहस्यमयी पावड़ी मंदिर
सरायकेला राज स्टेट में विलय के बाद राजमहल में दुर्गा पूजा का आयोजन पूर्व की भांति होने लगा और राजमहल के बाहर जनसहयोग से पब्लिक दुर्गा पूजा का आयोजन तांत्रिक मत से किया जा रहा है. 1954 में सरायकेला नगर स्थित बस स्टैंड पर मंदिर निर्माण कर सरकारी दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई.
सरायकेला एसडीओ होते हैं सरकारी पूजा के मुख्य यजमान
सरायकेला जिले में वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के बीच सरकार और आम लोगों में जबरदस्त आस्था और उल्लास बना रहता है. लोग बड़े ही धूमधाम के साथ दुर्गा पूजा मनाते हैं, हालांकि इस साल कोराना संक्रमण को लेकर सरकारी नियमों के अनुसार ही दुर्गा पूजा संपन्न होंगे. दुर्गा पूजा के आयोजन में सरायकेला सिविल एसडीओ पूजा के मुख्य यजमान बनकर पूजा में शामिल होते हैं.
राजमहल मंदिर में राजा -रानी करते हैं पूजा
सरायकेला राजमहल में जिउतिया अष्टमी से 16 दिनों तक चलने वाले पूजा का आयोजन किया जाता है. इस दौरान राज परिवार के राजा-रानी समेत अन्य सदस्य पूजा में शामिल होते हैं. सरायकेला रियासत के राजा प्रताप आदित्य सिंह देव ने बताया कि पहले राजतंत्र के दौरान विभिन्न राज परिवारों के ओर से मां पाउड़ी मंदिर में पूजा की जाती थी, लेकिन इसे अब केवल सरायकेला राज परिवार है निभा रहा है.
पाउड़ी मंदिर में नहीं है बाहरी लोगों के जाने की अनुमति
मां पाउड़ी मंदिर में बाहरी लोगों के जाने की अनुमति नहीं है. इस मंदिर में केवल राजा और रानी ही पूजा करने जाते हैं. साल में एक बार दुर्गा पूजा के दौरान षष्ठी में शस्त्र पूजा को लेकर राज परिवार के लोग मंदिर में जाते हैं. इस मंदिर में केवल स्त्री साड़ी पहनकर, जबकि पुरुष केवल धोती और गमछा पहनकर ही प्रवेश पा सकते हैं.
वर्तमान सार्वजनिक दुर्गा मंदिर