सरायकेला (Pramod Singh) दोल पूर्णिमा के अवसर पर मंगलवार को श्री जगन्नाथ मंडली के तत्वावधान में कंसारी टोला स्थित मृत्युंजय खास श्री राधाकृष्ण मंदिर से पारंपरिक दोल यात्रा का निकाली गई. यात्रा के क्रम में सरायकेला वासियों ने कान्हा के साथ गुलाल की होली खेली.
“चतुर्भुजो जगन्नाथ कंठ शोभित कौस्तुभ…” जैसे भजन गायन के बीच गाजे- बाजे के साथ निकाली गई दोल यात्रा का शुभारंभ कंसारी टोला स्थित प्राचीन मृत्युंजय खास श्री राधा कृष्ण मंदिर से किया गया. दोल यात्रा एकमात्र ऐसा धार्मिक अनुष्ठान है, जब प्रभु अपने भक्त के साथ गुलाल खेलने के लिये उसके चौखट पर पहुंचते हैं. इस दौरान काठी नृत्य का भी आयोजन किया गया.
भक्तों ने शंख व उलू ध्वनि के साथ राधाकृष्ण का स्वागत किया
मंडली के संयोजक झारखंड रत्न ज्योति लाल साहू के नेतृत्व में पालकी पर राधाकृष्ण को सवार कर दोल यात्रा निकाला गया. दोले तू दल गोविदम, चापे तू मधुसूदन.. के जयकारे के साथ पालकी यात्रा नगर की परिक्रमा कर भक्तों के बीच पहुंची, जहां भक्तों ने शंख व उलू ध्वनि के साथ राधाकृष्ण का अपने द्वार पर स्वागत किया और गुलाल की होली खेली.
श्रीकृष्ण के द्वादश यात्राओं में से एक है दोल यात्रा: साहू
ज्योतिलाल साहू ने बताया कि दोल पूर्णिमा के अवसर पर 1990 से आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली की ओर से प्राचीन दोल यात्रा निकाले जाने की परंपरा का निर्वहन किया जाता रहा है. श्री साहू ने बताया कि जगत के पालनहार श्रीकृष्ण के द्वादश यात्राओं में से एक है दोल यात्रा. क्षेत्र में प्रचलित इस श्लोक दोले तु दोल गोविंदम, चापे तु मधुसुदनम, रथे तु मामन दृष्टा, पुर्नजन्म न विद्यते…के अनुसार दोल (झूला या पालकी), रथ और नौका में प्रभु के दर्शन से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. होली में आयोजित होने वाली इस यात्र को दुर्लभ यात्रा माना जाता है.
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