सरायकेला/ Pramod Singh पद्मश्री शशधर आचार्य द्वारा दिए गए भस्मासुर वाले बयान पर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. गुरुवार देर शाम बिरसा मुंडा स्टेडियम सरायकेला में कलाकारों की एक बैठक की गई. बैठक की अध्यक्षता गुरु बृजेंद्र कुमार पटनायक ने की.


बैठक में कहा गया कि पद्मश्री सम्मान से सम्मानित शशधर आचार्य द्वारा हम छऊ कलाकारों के ऊपर समाचार पत्र में हमारी दक्षता के स्तर को लेकर गैर जिम्मेदाराना बयान देना और हम कलाकारों को सामूहिक रूप से भस्मासुर जैसे शब्दों का प्रयोग करना हम सभी को आहत और व्यथित किया है, जिसके फलस्वरूप आवेश में आकर विरोध स्वरूप हम सभी कलाकारों ने हृदय में रोश के कारण चौबिस घंटे के अंदर शशधर आचार्य द्वारा दिए गए अपने बयान को वापस नहीं लेने की स्थिति में उनका पुतला दहन करने का घोषणा किया गया था. बैठक में निर्णय लिया गया कि पद्मश्री सम्मान की गरिमा का ध्यान रखते हुए पद्मश्री शशधर आचार्य के पुतला दहन कार्यक्रम को रद्द किया जाता है. लेकिन, व्यक्तिगत स्तर पर आगे भी उनके उलूल- जलूल बयानों एवं क्रियाकलापों का हमेशा विरोध जारी रखा जाएगा.
मौके पर भोला महांती ने कहा कि उनका हर बात का जवाब कलाकार दल पूर्व में दे चुका है.उक्त बातों को दुबारा दोहराना नहीं चाहता. हां पर ये सही है कि पद्मश्री सम्मान से विभूषित शशधर आचार्य का नाम चैत्र पर्व आयोजन हेतु बनाए गयी सभी समितियों में सबसे उपर रखा गया था. यहां तक कि प्रतियोगिता के निर्णायक मंडलियो में भी उनका नाम सबसे ऊपर रखा गया था. अंतिम दिन भी 13 अप्रैल को सरायकेला में उपस्थित रह कर भी शशधर आचार्य जानबूझ कर प्रशासन की ओर से प्रयास करने के बाबजूद वे हमारी आस्था परंपरा को महत्व न देते हुए चैत्र पर्व में शामिल नहीं हुए. फिर भी मंच से घोषणा हुई कि एसडीओ मैडम कल उनके घर पहुंच कर उनको सम्मानित करेंगी और किया भी गया. कहा कि सरायकेला के सभी नृत्य दलों को कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए इस साल भी अखबार के माध्यम से आमंत्रित किया गया था पर उनके अनुष्ठान द्वारा कार्यक्रम में प्रोपगंडा रचने के उद्देश्य से कार्यक्रम में भाग नही लिया गया. उन्होंने जो अवहेलना की बात को प्रेस कॉन्फ्रेंस के मध्यम से उठाई वो बिल्कुल निराधार है.
असल बात यह है कि पद्मश्री सम्मान की आड़ में उन्होंने एक सोची- समझी रणनीति के तहत् वर्तमान में छऊ के संरक्षण और संवर्धन हेतु कलाकारों का जो अभियान चल रहा है उसको प्रभावित करने के लिए यह एक ड्रामा बाजी है. कहा कि पिछले साल उनके भाई को चैत्र महोत्सव का जिम्मा मिला था. जिसमें हम अधिकतर कलाकारों को नहीं बुलाया गया था. जिसका हमें मलाल नहीं है. हम लोगों ने आर्टिस्ट एसोसिएशन के बैनर तले पारंपरिक चैत्र पर्व में अनुष्ठान में भाग लेकर अपने पर्व का निर्वहन किया था.
गुरु तरुण भोल ने कहा आचार्य द्वारा कहा जा रहा है कि कला केंद्र में नृत्य करने वाले 50% कलाकारों को उन्होंने प्रशिक्षण दिया है. ज्ञात रहे पूर्व में संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली द्वारा संचालित प्रोजेक्ट राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र में चल रहा था. जहां हमारे मूर्धन्य कलाकार जय नारायण सामल, मकरध्वज दरोगा, अवनीकांत महांती, डोम नायक, विशो नायक,शहनाई वादक गुरु सुधांशु शेखर पानी सहित कई गुरु एवं युवा कलाकार उस प्रोजेक्ट में शामिल थे. उक्त प्रोजेक्ट को संगीत नाटक अकादमी में ऊंचे पद में आसीन अपने परिवार के सदस्य के बल पर लूटने के उद्देश्य से अपने निजी संस्था में स्थानांतरित करवाया गया. जिससे सभी मूर्धन्य एवं युवा कलाकार उनके संस्थान पर जाने को विवश हुए. परंतु प्रोजेक्ट के दौरान आचार्य द्वारा धीरे- धीरे कलाकारों का शोषण करना शुरू किया और उनके शोषण से तंग आकर एक-एक गुरु और एक- एक युवा कलाकार उनके संस्थान से दूर होते गये. अब उनके द्वारा नृत्य का स्तर के बारे में बोलना शोभा नहीं देता.
शशधर आचार्य द्वारा कला को बढ़ाने की बात कहना शोभा नहीं देता जिस समय राजकीय कलाकेंद्र को उनकी शख्त जरूरत थी उस समय उन्होंने छोड़कर भाग गए. भगवान का शुक्र है कि उनका छोड़ा हुआ कला केंद्र अभी तक जीवित है. क्योंकि वे बचपन से ही पैसा को तवज्जो देते थे और पैसा कमाने के उद्देश्य से राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र को बंद कर कर भाग गए. उनमें थोड़ा सा भी छऊ के प्रति प्यार होता तो कला केंद्र को व्यवस्थित करके जाते.
एक बात समझ से परे है कि शशधर आचार्य शास्त्रार्थ की खुली चुनौती दे रहे हैं परन्तु उनसे शास्रार्थ की बात तो किसी ने नहीं कही.उनके इस बयान से घमंड की बू आती है उनका घमंड छोड़कर मैं की जगह हम की बात करनी चाहिए वर्तमान में पद्मश्री राजकुमार स्वर्गीय सुधेंद्र नारायण सिंहदेव एवं गुरु शिरोमणि पद्मश्री स्वर्गीय केदारनाथ साहू जी की नृत्य विडियो मौजूद है. उसके साथ पद्मश्री शशधर आचार्य के दल द्वारा प्रस्तुत किया गया सभी नृत्यों के विडियो का एक तुलनात्मक समीक्षा किया जाए तो पता चल जाएगा कि उन्होंने सरायकेला छऊ की मौलिकता और मानकता के साथ कैसे छेड़छाड़ करने का अपराध किया है.
वर्तमान 2025 के चैत्र पर्व में सारा काम पारदर्शिता के साथ युद्ध कालीन स्थिति में निपटा कर हम कलाकारों ने एक उदाहरणीय सफलता हासिल किये है.
शशधर आचार्य को बार- बार सत्तर लाख का सपना आ रहा है. उस 70 लाख लाने में उनका एक परसेंट भी योगदान नहीं है. चूंकि उन्होंने 35 साल तक कलाकेंद्र का दरवाजा तक नहीं देखा है. 2024 में मिला मस्ती को भूल नहीं पा रहे है. आज पहली बार सरायकेला में एक मंच में सभी कलाकार दिखे और कलाकारों में कुछ अच्छा होने की उम्मीद जगी है. आचार्य यदि कलाकारों का और कला का भला चाहते हैं और कलाकार और कला के प्रति प्रेम है तो अनर्गल ड्रामा बाजी बंद करें. हम फिर से दुहरा रहे हैं कि पद्मश्री सम्मान की गरिमा की अहमियत को हम बखूबी से समझते हैं पर इसकी आड़ में श्री शशधर आचार्य जी अपनी ओछी राजनीति बंद करें और कला और कलाकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हम कलाकारों के सामुहिक प्रयास को संबलता प्रदान करे.
