सरायकेला/ Pramod Kumar Singh : सूर्यदेव की आराधना और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए मनाया जाने वाला चार दिवसीय छठ पर्व शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ. शनिवार को खरना होगा. इस दिन व्रती निर्जला उपवास रखेंगी और शाम को पूजा के बाद खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करेंगी. छठ व्रती 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखेंगी. रविवार को अस्ताचलगामी व सोमवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ महापर्व छठ संपन्न होगा. इधर, सरायकेला-खरसावां का माहौल छठमय हो गया है. गली-मोहल्लों में छठी मइया के गीतों से भक्ति की बयार बह रही है.
भगवान भाष्कर को अर्घ्य दिए जाने वाले घाटों पर भी उत्सव का माहौल है. युद्धस्तर पर छठ घाटों की सफाई हो रही है. प्रशासनिक स्तर पर छठ व्रतियों की सुविधा के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं उपलब्ध कराई जा रही है. सरायकेला में प्रतिवर्ष हर्षोल्लास के साथ आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है. काफी संख्या में छठ व्रती खरकई नदी में भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
सरायकेला में खरकई नदी, जगन्नाथ घाट, कुदरसाही घाट व श्मशान काली मंदिर घाट समेत तीन छठ घाट है. सबसे अधिक छठ व्रतियों व श्रद्धालुओं की भीड़ जगन्नाथ छठ घाट पर होती है. भगवान भास्कर की मानस बहन हैं षष्ठी देवी : अथर्ववेद के अनुसार षष्ठी देवी भगवान भास्कर की मानस बहन हैं. प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं. उन्हें बच्चों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है. इसीलिए बच्चे के जन्म के छठे दिन छठी पूजी जाती है, ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं. एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी.