सरायकेला/ Pramod Singh कहा जाता है कि खाने का मामला हो या फिर जीवन जीने का दोनों ही संदर्भ में चम्मच का बड़ा ही महत्व रहा है. जिसे उसके महत्व के कारण ही उसका इस्तेमाल करने वाले भरपूर सम्मान देते हैं. इसे वर्तमान में झारखंड प्रदेश में घट रही ईडी के कार्रवाई की घटना से जोड़कर भी देखा जा सकता है. कुछ ऐसा ही वाकया सरायकेला में स्वर्णरेखा परियोजना में काम करने वाले एक सामान्य क्लर्क तपन कुमार पटनायक के जीवन के साथ रही है. जिन्होंने अपने ताउम्र मेहरबानियों के साथ मधुर संबंध का कॉन्ट्रैक्ट किया हुआ है.
तपन कुमार पटनायक के स्वर्णरेखा परियोजना में एक सामान्य क्लर्क के पद से लेकर बिना किसी छऊ नृत्य के विधिवत शिक्षा के छऊ गुरु होने तक का सफर रहा है. इतना ही नहीं सेवानिवृत्ति के बाद भी तपन कुमार पटनायक पर जिला प्रशासन की मेहरबानियां बदस्तूर जारी है. यहां तक कि स्थानीय कलाकारों को दरकिनार कर इस वर्ष के राजकीय चैत्र पर्व छऊ महोत्सव सह पर्यटन मेला-2023 के आयोजन में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. इसे या तो जिला प्रशासन अपनी मजबूरी कह सकता है या फिर तपन कुमार पटनायक के अपने पहुंच या फिर चापलूसी का असर कहा जा सकता है. जहां महोत्सव के आयोजन के लिए छऊ की धरती सरायकेला सहित पूरे जिले में जिला प्रशासन को तपन कुमार पटनायक जैसा एक भी योग्य व्यक्ति नहीं मिला. और सेवानिवृत्ति के बाद भी उनकी सेवा लेने की आवश्यकता आन पड़ी.
इस घटना से आहत एवं क्षुब्ध स्थानीय कलाकार दबी जुबान में पैसों की बंदरबांट की बात बताते हैं. इसके पीछे का कारण भी गिनाया जाता है, कि राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला के निदेशक पद पर 29 वर्षों तक काबिज रहने के दौरान कलाकारों और भोक्ताओं में भी अपने अधिकार के मानदेय को लेकर असंतोष बना रहा. यहां तक कि सेवानिवृत्त निदेशक तपन कुमार पटनायक के 29 वर्षों के सफर में राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र सरायकेला एक भी राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का कलाकार नहीं दे पाया. जो तपन कुमार पटनायक के तथाकथित स्वयंभू छऊ गुरु होने की योग्यता को साबित करता है.
मेहरबानियां ऐसे किस पर बरसती हैं ?
स्वर्णरेखा परियोजना में सामान्य क्लर्क के रूप में कार्यरत तपन कुमार पटनायक को तत्कालीन जिला प्रशासन द्वारा वर्ष 1994 में बिना किसी कला योग्यता के राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के निदेशक पद पर प्रतिनियोजित किया गया. जिसके बाद से तपन कुमार पटनायक ने अपने पहुंच या फिर अपनी बेहतर चाटुकारिता के दम पर निदेशक पद की उक्त कुर्सी पर 28 वर्षों तक अनवरत काबीज रहे. इस दौरान ना तो बाइलॉज के हिसाब से केंद्र के निदेशक पद का पदस्थापना किया गया. और ना ही किसी का चयन. इस दौरान छऊ नृत्य कला के क्षेत्र में पद्मश्री और संगीत नाटक एकेडमी जैसे सम्मानों की बौछार भी क्षेत्र में होती रही. परंतु किसी को भी तपन कुमार पटनायक के तुल्य योग्य नहीं माना गया. इतना ही नहीं अपने इस सफरनामा के क्रम में तपन कुमार पटनायक ने खुद को स्वयंभू तरीके से छऊ गुरु भी घोषित करवा लिया. और पद का लाभ लेते हुए कई मंचों से सम्मान भी हासिल कर लिए. पूरे प्रकरण में आज छऊ की धरती मानी जाने वाली सरायकेला को खुद सोचना और निर्णय लेना है कि उसकी अपनी धरोहर छऊ कला कहां और किस प्रकार सुरक्षित हैं ? और किस दिशा में विकास कर रही है.
इस सरकार ने स्थानीय कलाकारों को सबसे ज्यादा दिया सम्मान: सनंद
वहीं इस मामले पर सरायकला विधायक प्रतिनिधि सनंद आचार्य ने बताया कि वर्तमान सरकार ने स्थानीय कलाकारों को सबसे अधिक सम्मान दिया है. राज्य के आदिवासी कल्याण सह परिवहन मंत्री चंपई सोरेन के दिशा- निर्देशन में छऊ कलाकारों को ढूंढ- ढूंढ कर उन्हें सम्मानित किया जा रहा है. ऐसे में जिला प्रशासन एवं सरकार पर स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा का आरोप बेबुनियाद और तथ्यहीन है. उन्होंने बताया कि राजकीय पर्व की तैयारी से पूर्व सभी बैठकों में स्थानीय कलाकारों को सम्मानित किए जाने का मुद्दा उठाया गया. उसी के अनुरूप काम किया गया. आज राजकीय पर्व छऊ महोत्सव में पहली बार पूरे सरायकेला को दुल्हन की तरह सजाया गया है, और ढूंढ- ढूंढ कर छऊ के कलाकारों को सम्मानित किया जा रहा है, उन्हें मंच प्रदान किया जा रहा है. व्यक्ति विशेष की पूजा वर्तमान सरकार में नहीं होती है.