सरायकेला: झारखंड की औद्योगिक नगरी है. लगातार संक्रमण के बीच उद्योगों का खुला रहना चुनौतियों भरा तो है ही साहसिक भी. जहां दिन रात मजदूर मेहनत कर देश और राज्य की अर्थव्यवस्था को बरकरार रखने में जुटे हैं.


वहीं झारखंड सरकार की ओर से Covid के संक्रमण को देखते हुए अघोषित मिनी लॉक डाउन लगाया गया है. औद्योगिक नगरी में रोजगार के लिए पहुंच रहे मजदूरों को भोजन- पानी उपलब्ध कराने के लिए छोटे- छोटे होटल खुल तो रहे हैं, लेकिन उनके लिए मजदूरों को सेवा देना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है.
जिले के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र के उषा मोड़ से कांड्रा चौक तक ऐसे कई छोटे- छोटे खाने-पीने की दुकानें हैं जहां कड़े निर्देशों के बावजूद डेली मजदूरी करने वाले मजदूरों का आना जाना लगा रहता है. अब तमाम होटलों में पार्सल की व्यवस्था की गई है, लेकिन छोटे गरीब मजदूर करे तो करे क्या ! हालात ऐसे होते जा रहे, कि मजदूरों को किसी पेड़ के नीचे भोजन करना पड़ रहा है. क्योंकि ज्यादातर मजदूर किसी भी उद्योग के स्थायी कर्मचारी नहीं है.
जहां एक और उन्हें होटलों में बैठकर खाने की मनाही है. उनके सामने विकट परिस्थिति बनी हुई है. होटल वाले भी 2 गज की दूरी का पालन कर उन्हें पार्सल की व्यवस्था दे रहे हैं. जहां खुले वातावरण में सांस लेने के लिए मनाही और हिदायतें उच्च अधिकारियों से मिल रही है. लगातार मास्क पहनकर ही रहने के आदेश मिल रहे हैं.
इधर मजदूरों के नाम पर राजनीति करने वाले नदारद हैं. मेरा इस लेख का आशय ये है, कि ऐसे मजदूरों के साथ क्रूरता ना दिखाकर उनके लिए कोई व्यवस्था प्रशासन को करनी चाहिए. लगातार मजदूरों द्वारा शिकायत मिल रही है, कि भोजन लेने के लिए किसी भी होटलों के पास जाने पर उनकी पिटाई कर दी जाती है.
यह कतई उचित नहीं हो सकता है. मजदूरों को कम से कम इतनी आजादी मिलनी चाहिए, ताकि वे एक वक्त की रोटी सुकून से खा सकें. जिला प्रशासन को मानवीय संवेदनाओं का ध्यान रखना चाहिए.
