National Desk 2024 के लोकसभा चुनाव की रणभेरी लागभग बज चुकी है. 9 साल से सत्तासीन मोदी सरकार को टक्कर देने दो दर्जन विपक्षी दलों ने अलग मोर्चा INDIA बनाया है. क्या वाकई इंडिया एनडीए को टक्कर देने की स्थिति में होगी ? क्या तमाम छत्रप एक छत के नीचे आएंगे ? मोदी सत्ता को चुनौती देने के लिए भले इंडिया तमाम हथकंडे अपना ले मगर यहां हम एक ऐसे प्रकरण की बात कर रहे हैं जो 2024 के लिए इंडिया और एनडीए दोनों के लिए बड़ी चुनौती बनने जा रही है.
यहां हम सहारा के देशभर में फैले खासकर हिन्दीपट्टी के निवेशकों की बात कर रहे हैं. आपको बता दें कि देशभर में फैले सहारा के करीब 13 करोड़ निवेशक और 12 लाख एजेंट पिछले 12 वर्षों से सहारा- सेबी विवाद के कारण तबाह हो चुके हैं. तत्कालीन राजग सरकार से शुरू हुआ विवाद एनडीए के लागभग दस साल के कार्यकाल में भी नहीं सुलझ सका. नतीजा सहारा का साम्राज्य पूरी तरह से तबाह हो चुका है. इस विवाद की वजह से देशभर के सहारा के निवेशक और एजेंट रोड पर आ चुके हैं. ऐसे में इनके भीतर का आक्रोश आगामी लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है.
बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और झारखंड सरीखे राज्य के निवेशकों में इसको लेकर खासी नाराजगी देखी जा रही है. केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह द्वारा सहारा- सीआरसीएस पोर्टल के जरिये भुगतान शुरू किए जाने की घोषणा से भी निवेशकों का भरोसा मोदी सरकार के प्रति गंभीर नजर नहीं आ रही है. बल्कि निवेशकों की नाराजगी बढ़ गई है. पोर्टल की पेचीदगियां और दस हजार रुपये की बाध्यता ने बड़े निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है.
बता दें कि पिछले दिनों केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सहारा- सेबी विवाद को लेकर उपजे हालात के बाद सहारा समूह की चार कंपनियों के निवेशकों का भुगतान सहारा- सीआरपीएफ पोर्टल के जरिए करने की शुरुआत की है, मगर पोर्टल की पेचीदगियों और दस हजार रुपए भुगतान किये जाने से बड़े निवेशक दुविधा में हैं और वे अभी भी अपने गाढ़ी कमाई को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं.
बता दें कि सहारा- सेबी विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सहारा समूह ने सहारा- सेबी अकाउंट में 25 हजार करोड़ रुपए जमा कराए हैं. मंत्रालय के अनुरोध पर कोर्ट के निर्देश पर पांच हजार करोड़ की पहली किश्त जारी की गई है. जबकि करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए की देनदारी सहारा समूह की बनती है. ऐसे में साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सहारा के निवेशकों को अभी कितना लंबा इंतजार करना पड़ सकता है. इसको लेकर दूर- दूर तक न तो सरकार बात करती है, न शीर्ष कोर्ट. आखिर सहारा के निवेशक जाएं तो कहां जाएं !
सेबी की वजह से सहारा समूह हो गया बर्बाद
जिस सेबी ने सहारा के तमाम निवेशकों को फर्जी और निवेश को काला धन बताकर शीर्ष कोर्ट को सहारा समूह के गतिविधियों पर रोक लगाने को लेकर बाध्य कर दिया था आज सेबी को सामने आकर जवाब देना चाहिए कि 12 वर्षों में उसने कितने निवेशकों का सत्यापन किया ? आज क्यों सहकारिता मंत्री को सामने आने की नौबत आई ? यदि निवेशक फर्जी थे तो सड़क पर कौन हैं. सहारा- सीआरसीएस पोर्टल पर करोड़ों निबंधन किसका है ? फिर सरकार क्यों चुप रही ? जबकि सहारा समूह से लेकर सहारा के निवेशक इस दौरान हर माध्यम से अपनी आवाज़ सांसद, विधायक और मंत्री तक पहुंचाते रहे. सड़क से लेकर सदन तक मामला गूंजता रहा.