सहारा इंडिया परिवार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहा. सहारा प्रमुख बार- बार वीडियो जारी कर अपने निवेशकों एवं कार्यकर्ताओं से मोहलत पर मोहलत मांग रहे हैं. हर बार वे विफल हो रहे हैं. निवेशकों और कार्यकर्ताओं के बीच ऊहापोह और तनाव बढ़ते जा रहे हैं. सहारा इंडिया परिवार का साम्राज्य एक- एक कर ध्वस्त होता जा रहा है. सारे अधिकारी और कार्यकर्ता अपनी अस्मिता के लिए संघर्षरत हैं.
क्या इसी दिन के लिए सहारा पिछले 44 सालों से हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा रहा है. देश की बड़ी आबादी को बचत करने और बड़े- बड़े सपनों को हकीकत में तब्दील करना अगर किसी ने सिखाया तो उसमें सहारा इंडिया परिवार की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता.
2012 से चले आ रहे सहारा- सेबी विवाद में नाटकीय घटनाक्रम मार्च 2014 में आया जब सर्वोच्च अदालत ने सेबी की याचिका पर सहारा प्रमुख सहित उसके तीन डायरेक्टर्स को अदालत की अवमानना मामले में दोषी करार देते हुए सलाखों के पीछे भेजा था. हालांकि शीर्ष अदालत ने सहारा की एक भी दलील सिर्फ इसलिए नहीं सुनी, क्योंकि सहारा प्रमुख ने शीर्ष अदालत के नोटिस का तामिला नहीं किया था. तब से लेकर आजतक सहारा वापसी करने में नाकाम रहा है.
नतीजा ये हुआ, कि पिछले 44 सालों में सहारा इंडिया परिवार ने देश और विदेश में जो सल्तनत खड़े किए थे आज बदहाली के कगार पर पहुंच चुका है. एक दौर हुआ करता था जब सहारा इंडिया परिवार देश के अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती थी. देश के हर विकास और उत्थान और आपदा की घड़ी में सहारा प्रमुख सुब्रत राय कप्तान की भूमिका में होते थे. देश ही नहीं विदेशी सेलिब्रिटीज भी सहारा की मेहमान नवाजी के लिए अतुर रहते थे. आज सहारा इंडिया परिवार अपने ही देश के सिस्टम से संघर्षरत है.
44 साल की बनी बनाई साख सहारा- सेबी विवाद के कारण आज नीलाम होने के कगार पर पहुंच चुका है. यूपीए-2 के समय से शुरू हुआ सहारा- सेबी विवाद एनडीए सरकार में भी जारी है. ऐसा माना जा रहा है, कि सहारा इंडिया परिवार को सहारा प्रमुख सुब्रत राय द्वारा यूपीए की चेयरपर्सन और तत्कालीन विपक्ष कि नेता सोनिया गांधी को विदेशी मूल बताने की कीमत चुकानी पड़ रही है लेकिन एनडीए सरकार आने के बाद भी सहारा की मुश्किलें कम होते नजर नहीं आ रहे.
अब सवाल ये उठता है, कि आखिर सहारा- सेबी विवाद का कारण क्या है ? क्या वाकई यह प्रकरण इतना गंभीर है, कि इसमें सहारा की आहूति ही एकमात्र विकल्प है ! क्या शीर्ष अदालत के पास सहारा- सेबी प्रकरण के लिए मानवीय संवेदनाओं का कोई महत्व नहीं रह गया है ?
दरअसल यह विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब सहारा इंडिया परिवार ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज एक्ट के तहत संचालित अपनी दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल एस्टेट बांड और सहारा हाउसिंग बांड के जरिए बाजार से जुटाए गए धन को शेयर मार्केट में सूचीबद्ध कराने के लिए सेबी को आवेदन दिया. सेबी ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र का नहीं बताते हुए आवेदन अस्वीकृत कर दिया, लेकिन कुछ दिनों बाद ही सेबी द्वारा सहारा को गलत तरीके से बांड जारी कर बाजार से धन उगाही करने के आरोप में नोटिस जारी कर दिया गया.
जिसके बाद सहारा इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण में पहुंचा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहारा की दलील को सही मानते हुए तत्काल सेबी के आदेश को निरस्त कर दिया. सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई, और सुप्रीम कोर्ट को यह बताने का काम किया, कि सहारा गलत तरीके से बांड जारी कर बाजार से 15000 करोड रुपए ले चुका है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सहारा प्रमुख को तीन बार तलब किया. सहारा प्रमुख अपने वकीलों के माध्यम से यह बताने का प्रयास करते रहे, कि सहारा प्रमुख तीनों बार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुए जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे अदालत की अवमानना मानते हुए उन्हें 4 मार्च 2012 तक न्यायालय में प्रस्तुत करने का आदेश जारी कर दिया.
अंततः सहारा प्रमुख 4 मार्च 2012 को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुए. जहां न्यायालय ने सहारा प्रमुख के समक्ष रिहाई के लिए हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा शर्त रख दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ तौर पर कहा आप को सजा नहीं दी जा रही है आप पैसे जमा कराइए और आजाद हो जाइए हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के जज ने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए सहारा प्रमुख को अघोषित कारावास की सजा सुनाई.
जिसे आजतक सहारा चुका पाने में असफल रहा है. वैसे सहारा प्रमुख की मां के निधन के बाद से लेकर अब तक सहारा प्रमुख एवं उनके 3 निदेशक पैरोल पर हैं. हालांकि सहारा समूह अब तक सहारा सेबी अकाउंट में 17000 करोड रुपए जमा कराने का दावा कर रहा है. साथ ही यह भी दावा कर रहा है कि सहारा सेबी मामले की सुनवाई होने के बाद सारा पैसा ब्याज सहित सहारा को वापस मिलना है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अब तक इस मामले की सुनवाई नहीं होने के कारण सहारा समूह को घोर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है.
देश भर में फैले सहारा के संस्थानों में लगभग ताले लग चुके हैं. इक्के- दुक्के संस्थान खुल रहे हैं, वहां भी काफी जद्दोजहद निवेशको, कार्यकर्ताओं एवं ऑफिस के कार्यकर्ताओं को करना पड़ रहा है. हर कोई इस पूरे प्रकरण के लिए सिर्फ और सिर्फ सहारा समूह को दोषी मान रहा है, लेकिन सच्चाई यही है कि अब तक सेबी ने सहारा समूह द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों का सत्यापन नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा है, जबकि इस पूरे प्रकरण में करोड़ों निवेशकों और लाखों सहारा के कार्यकर्ताओं का भविष्य दांव पर लगा हुआ है. सहारा मामलों के जानकार बताते हैं, कि इस पूरे प्रकरण में एक पक्ष की ही दलीलों को सुना गया है. अब सहारा समूह की दलीलों को भी सुननी चाहिए. उसे एक मौका जरूर देना चाहिए अपना पक्ष रखने का और निवेशक को भुगतान करने का.
बार- बार सहारा प्रमुख वीडियो जारी कर निवेशकों और एजेंटों से समय मांग रहे हैं
सहारा प्रमुख बार-बार वीडियो जारी कर अपने निवेशकों और एजेंटों से संयम बरतने की अपील कर रहे हैं. साथ ही भरोसा दिला रहे हैं, कि निवेशकों का पाई- पाई पैसा ब्याज सहित चुकाया जाएगा, लेकिन निवेशक अब अपना संतुलन खोते जा रहे हैं, जो कहीं से भी सहारा के हित में नहीं है. लाखों कार्यकर्ताओं ने खुद को सहारा से अलग कर लिया है. कई एजेंट अभी भी उम्मीद की आस लिए बैठे हैं. पिछले दिनों सहारा प्रमुख ने 31 मार्च 2021 तक का वक्त मांगा था, लेकिन वह भी फेल हो गया, जिससे निवेशकों में खासी नाराजगी देखी जा रही है.
27 अप्रैल की सुनवाई और एक मई से तीन दिनों के मीटिंग पर टिकी सबकी निगाहें
इन सबके बीच 27 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सहारा- सेबी मामले की सुनवाई की तिथि मुकर्रर की गई है. कयास लगाए जा रहे हैं, कि इस बार सहारा को थोड़ी राहत मिल सकती है. उधर सहारा प्रमुख की संभावित मीटिंग भी तय हुई है जो आगामी 12 और 4 मई को होना है इसको लेकर निवेशकों और कार्यकर्ताओं में कुतूहल देखा जा रहा है. हालांकि इस बार अगर सहारा प्रमुख निवेशको और कार्यकर्ताओं का भरोसा जीतने में नाकाम होते हैं, तो उसकी बड़ी कीमत संस्था को चुकानी पड़ सकती है.
हर आपदा में याद आते हैं सहारा श्री
सहारा इंडिया परिवार देश के उन गिने-चुने संस्थानों में से एक है, जिसने देश हित को विशेष अहमियत दी है. लातूर, भुज और कारगिल त्रासदी इसका जीता- जागता उदाहरण है. राष्ट्रीय आपदा के मामले में सहारा ने शुरू से ही अपने खजाने के द्वार खुला रखा था लेकिन जब सहारा मुश्किलों में घिरी तब देश के कर्ताधर्ताओं ने सहारा से मुंह मोड़ लिया. इंडियन क्रिकेट टीम आज आसमान की जिस ऊंचाइयों को छू रहा है उसमें सहारा इंडिया परिवार का अहम योगदान रहा है. भारतीय खेलों को जब विदेशी स्पॉन्सरशिप कर रहे थे, उस वक्त सहारा समूह ने आगे आकर भारतीय खेल को एक अलग आयाम दिया.
सहारा समूह ने अपने 44 सालों के सफर में देश ही नहीं विदेश में भी भारतीय तिरंगे का मान बढ़ाया. ब्रिटेन का ऐतिहासिक ग्रॉसवेनर होटल और अमेरिका का न्यूयॉर्क प्लाजा होटल सहारा समूह ने खरीद कर वहां तिरंगा लहराने का काम किया जिसे सहारा- सेबी प्रकरण में नीलम करवाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ा गया. हालांकि सहारा समूह ने अपने दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण अपने परिसंपत्तियों को औने- पौने दाम में नीलाम होने नहीं दिया. यही कारण है कि सहारा आज घोर वित्तीय संकट झेल रहा है.
मजबूत इक्षाशक्ति के इंसान सुब्रत रॉय सहारा के इम्तहान का आखिरी पड़ाव
महज 3 हजार की पूंजी, एक लैंब्रेटा स्कूटर और तीन लोगों के साथ 1 फरवरी 1978 में सहारा इंडिया परिवार ने गोरखपुर से अपना सफर शुरू किया. सरकारी झंझावतों को झेलते हुए सहारा समूह ने 44 बसंत पार किए. आज सहारा समूह के पास देश और विदेश की संपत्तियों को मिलाकर कुल 1 लाख 75 हजार करोड़ की परिसंपत्तियां हैं, बावजूद इसके सहारा समूह के मुखिया सरकारी तंत्र के आगे झुकने के बजाय उसका डटकर मुकाबला कर रहे हैं. हा इसमें उन्हें घोर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है, लेकिन बतौर सहाराश्री यह लड़ाई आखिरी होगा.
उन्होंने कई वीडियो जारी किए हैं, जिसमें उन्होंने अपने निवेश को और कार्यकर्ताओं को यह संदेश दिया है, कि सरकारी तंत्र के गलत रवैए के कारण समूह को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है, लेकिन वे झुकेंगे नहीं और परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करेंगे. कानून का सम्मान करते रहेंगे.
देश का कानून सर्वोपरि है हमें उम्मीद है, हमें भी इंसाफ मिलेगा. और हमारी जीत होगी. हालांकि विपरीत परिस्थितियों में सहारा समूह को अपनों ने भी काफी चोट पहुंचाया है. जिस सुब्रत राय को सहारा समूह ने भगवान का दर्जा दिया उसी समूह के कई कार्यकर्ताओं ने विपरीत परिस्थितियों में उन पर कई आपत्तिजनक टिप्पणियां सोशल साइट्स पर किए.
हालांकि सहारा समूह द्वारा जिस निवेशको का भी भुगतान किया जा रहा है, उन्हें विलंब अवधि का ब्याज सहित भुगतान दिया जा रहा है. जो आज तक किसी अन्य नन बैंकिंग संस्थाओं ने नहीं दिया. नन बैंकिंग की बात छोड़ दी जाए सरकारी संस्थाओं ने भी ऐसी सुविधाएं नहीं दी.
2 Comments
Post artical is right but Sahara SEBI case is veriou s critical waiting all Sahara workers for final judgment
Honourable SC should take it seriously. In fact it’s related to the livelihoods of more than 1 million family and the interest of more than 10crore customers.