DESK कोल्हान के सबसे बड़े त्यौहारों में शुमार टुसू पर्व आते ही ईचागढ़ के दिवंगत विधायक भाजपा नेता साधु महतो की याद ताजा हो गयी. साधु दा आज इस दुनिया में नहीं रहे, मगर टुसू का जिक्र हो और साधु दा न हों बड़ा अजीब सा लग रहा है.
अक्सर उनसे मिलना- जुलना होता रहता था. एक माह पूर्व से ही साधु दा अपने मुर्गे के साथ अठखेलियां करते नजर आते थे. अपने मुर्गे पर बड़े दांव लगाना उनकी खास शैली थी. मुर्गा पड़ा में उनके मुर्गे की तूती बोलती थी. शायद ही कभी उनका मुर्गा हारता था. वे अपने मुर्गे के जोश में जोशीले भाषणों से न केवल टुसू मेला के आयोजकों को रोमांचित करते थे, बल्कि राजनीतिक विरोधियों पर भी तीखे हमले करने से नहीं चूकते थे. साधु दा अपनी विशेष शैली के लिए आज भी हमारे जेहन में कौंधते हैं. समय की चाल ने उन्हें स्वर्गवासी बना दिया, मगर उनके साथ ही कोल्हान की टुसू को फीका बना दिया.
गुड़- पीठा, मांसो- पीठा, मुढ़ी खिलाकर टुसू के दिन अतिथियों का स्वागत करना, उसके बाद नए कपड़े पहन पूरे लाव- लश्कर के साथ टुसू मेला पहुंच मुर्गा पड़ा में अपने मुर्गे की करतब देखने मे उन्हें बड़ा आनंद आता था. आज के युवाओं या अन्य नेताओं में वो रुतबा नहीं रह गयी. आज के युवाओं ने सड़क पर नाच- गाने की नई परंपरा की शुरुआत की है. जिसे “डहरे टुसू” की संज्ञा दी है. आज के युवाओं ने टुसू के उत्साह को सड़क पर ला दिया है.