राजनगर: रोहिण नक्षत्र का आगमन हो चुका है. खेती- गृहस्थी करनेवाले किसान कृषि कार्य में जुट गए हैं. सरायकेला जिले के राजनगर प्रखंड के किसान भी मौसम में हुए बदलाव और बारिश से गदगद हैं.
खास कर आदिवासी- मूलवासी समाज के लिए रोहिण नक्षत्र उत्सव से कम नहीं होता है. 13 दिन के इस पक्ष में किसान खेतों की पूजा अर्चना कर खेती के कार्य का शुभारंभ करने में जुट गए हैं.
ऐसे होती है कोल्हान में रोहिणी नक्षत्र में खेती की शुरुआत
कोल्हान में विशेषकर आदिवासी- मूलवासी समुदाय की महिलाएं रोहिणी नक्षत्र के प्रवेश होने के मुहूर्त पर तड़के 3:00 से 5:00 बजे अपने- अपने घरों के प्रवेश द्वार की गोबर से पुताई के बाद प्रत्येक घर की एक- एक महिलाएं सबसे पहले उठकर गोबर का चिन्ह हाथ से अपने घर के बाहरी दीवारों के चारों ओर लगातीं हैं. यह कार्य एक विशेष योग के माध्यम से किया जाता है. इसमें किसी का टोकना या बातचीत करना मना रहता है. मान्यता है, कि यदि यह कार्य पूर्ण रूप योग से करती है, तो उस घर में साल भर किसी प्रकार की कोई रोग व्याधि, अथवा अनाज की कमी नहीं होती है.
उसके बाद घर- आंगन की लीपाई- पुताई कर घर के बुजुर्ग, जो कृषि कार्य में संलग्न रहते है, वे एक डुभा या लोटा में बिहिन (बीज) लेता है. उस बीज को भूतपीड़ा और ग्राम थान में देने के पश्चात उसे गमछा या धोती में ढंक कर अपने खेत में लेकर जाता है और खेत के उत्तर- पूर्व (ईशान कोण) कोना में विधिवत बीज की बुआई करते हैं. इस क्रम में वह किसी से कोई बातचीत नहीं करता है. इसे “बीज पुन्यहा” कहते हैं. रास्ते में भी आने- जाने के समय किसी से कोई बातचीत नहीं करता है. तत्पश्चात महिलाएं अपने मापक की वस्तुएं जैसे पेइला, पुवा, टोकी, डुभा आदि को धोकर गुड़ी देकर सिंदूर का टीका लगाती है और भूतपीड़ा के सामने रखती है. इसके बाद अच्छी फसल की कामना हेतु भूतपीड़ा में पूजा अर्चना की जाती है. शाम को घर की कुंवारी लड़की अपने सीमा यानी खेत को छोड़कर दूसरे के खेत से रोहिन मिट्टी लाती है. जिससे लाने के क्रम में वह किसी से बातचीत नहीं करती है . लाने के क्रम में यदि कोई टोकता है तो उस मिट्टी को उसी जगह फेंक देती है, और फिर से दूसरा मिट्टी लेकर आती है. इस मिट्टी को भूतपीड़ा में रखा जाता है, और फिर इससे प्रत्येक घर के तीन कोना में रखा जाता है. शेष बचा मिट्टी को यत्नपूर्वक रखते हैं और जब बीज खेत में डाला जाता है उस समय बीज में यह मिट्टी मिलाया जाता है. पूजा- अर्चना में भी इस मिट्टी का तिलक लिया जाता है. छुआइत होने पर भी इसका उपयोग होता है.
रोहिण के दिन आषाड़ी फल खाने का विधान है
मान्यता है कि रोहिण के दिन कई प्रकार के विषाक्त जीव पृथ्वी के गर्भ से बाहर निकलते हैं. अतः इस दिन आषाढ़ी फल खाने से इन सब जीवों के काटने से विष का प्रभाव कम होता है. परंपरा के अनुसार इस दिन से कटहल का सब्जी खाना प्रारंभ होता है तथा इस दिन से नीम की सब्जी खाना बंद रहता है.