रांची/ सरायकेला: राज्य सरकार ने भाषा को लेकर उपजे विवाद के बाद सरकार ने बोकारो व धनबाद जिले की क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी और मगही भाषा को हटा दिया गया है. वहीं उर्दू भाषा को क्षेत्रीय भाषा की सूची में शामिल किया गया है. इसकी अधिसूचना कार्मिक, प्रशासनिक एवं राजभाषा विभाग ने जारी कर दी है. बता दें कि इन दोनों भाषाओं को हटाने की मांग को लेकर पिछले कई दिनों से धनबाद, बोकारो सहित राज्य के कई जिलों में आंदोलन चल रहा था. इस कारण अंततः सरकार ने इसे हटाने का फैसला लिया और नयी संशोधित अधिसूचना जारी कर दी है. हालांकि पलामू व गढ़वा में भोजपुरी भाषा को क्षेत्रीय भाषा की सूची में रखा गया है. इसी तरह मगही को चतरा व लातेहार जिला की क्षेत्रीय भाषा की सूची में रखा गया है. दूसरी ओर पिछली बार उर्दू भाषा को किसी जिला की क्षेत्रीय भाषा में शामिल नहीं किया गया था, पर इस बार सभी 24 जिलों की क्षेत्रीय भाषा की सूची में उर्दू भाषा को भी शामिल किया गया है. बता दें कि 24 दिसंबर 2021 को झारखंड में सरकार ने जिलास्तरीय पदों के लिए जनजातीय भाषाओं सहित क्षेत्रीय भाषाओं की सूची जारी की थी. जिसमें झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मैट्रिक एवं इंटरमीडिएट स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा जिलास्तरीय पदों के लिए क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं को जिलावार चिन्हित किया गया था.
कांग्रेस का दबाव रंग लाया
भाषा विवाद को लेकर राज्य में बढ़ते विरोध को लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिल कर धनबाद- बोकारो में क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी और मगही को हटाने का आग्रह किया था. इन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषा को लेकर पूर्व स्थिति बहाल की जाये. पहले से धनबाद और बोकारो की क्षेत्रीय भाषा की सूची में भोजपुरी और मगही शामिल नहीं थी. इसलिए इस बार कोई नयी व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता नहीं है.
देखिए 24 जिलों की सूची
जयराम महतो का कार्यक्रम 21 को
भाषा विवाद को लेकर झारखंड के नए नायक के रूप में उभरे जयराम महतो का कार्यक्रम सरायकेला में 21 फरवरी को प्रस्तावित है. इधर सरकार के निर्णय वापसी के बाद भाषा संघर्ष समिति सरायकेला- खरसावां जिला द्वारा प्रस्तावित भोजपुरी, मगही और अंगिका के विरोध में महाजुटान रैली में 21 फरवरी को जयराम महतो की सभा होगी. इसकी जानकारी भाषा संघर्ष समिति सरायकेला- खरसावां जिला के प्रकाश महतो, कुलदेव महतो और सूरज महतो ने दी. उन्होंने बताया कि नियोजन नीति और 1932 के खतियान को लागू करने को लेकर आंदोलन जारी रहेगा. उन्होंने बताया कि कार्यक्रम को हर हाल में सफल बनाया जाएगा. इसकी तैयारियां जोर- शोर से चल रही है. कोल्हान के तीनों जिलों के मूलवासी अब अपने हक और हुकूक की लड़ाई को अंतिम अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लेंगे. जिस तरह भाषा को लेकर सरकार बैकफुट पर गई है, उसी तरह नियोजन नीति और 1932 के खतियान को लागू करने तक सरकार का विरोध जारी रहेगा.