सरायकेला/ Exclucive Report By Rasbihari Mandal सूबे के मुखिया इन दिनों राज्य के लोगों के लिए एक से बढ़कर एक योजनाएं तैयार कर उसे जनता तक पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं. वैसे अब विधानसभा चुनाव भी सर पर है और सरकार की नीतियां इसे घ्यान में रखकर बन रही है. राज्य की जनता तक योजनाओं का लाभ तत्काल कैसे पहुंचे इसको लेकर मुख्यमंत्री गंभीर हैं. मगर सीएम के अपने विधानसभा के राजनगर प्रखंड के एक आदिवासी बहुल गांव की आज आपको तस्वीर दिखाते हैं जिसे देख आप सोचने को मजबूर हो जाएंगे कि क्या वाकई सरकार के विकास योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों तक पहुंच रही है ? क्या सरकार जिन बाबुओं के कंधे विकास योजनाओं को अंतिम पंक्ति में बैठे ग्रामीणों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपती है वो अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से कर रहे हैं ? क्या कभी सरकारी बाबू योजनाओं की समीक्षा करने खुद गावों तक जाकर जमीनी हकीकत जानने का प्रयास करते हैं ?
बात करते हैं सरायकेला जिले के राजनगर प्रखंड के कुड़मा पंचायत के गुढ़ा गांव की. आपको बता दें कि यह इलाका मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का गढ़ है. यहां के मतदाताओं की वजह से मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन पिछले 25 सालों से अपराजेय रहे हैं. इन्ही की देन है कि प्रचंड मोदी लहर के दौर में भी उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी को दो- दो बार धूल चटाया और जीत हासिल करने के बाद मंत्री उसके बाद आज राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं. करीब एक सौ आदिवासी परिवार गुढ़ा गांव में रहते हैं. झारखंड सरकार के जल जीवन मिशन हर घर जल योजना के तहत इस गांव में सोलर आधारित लघु ग्रामीण जलापूर्ति योजना के मद से चार सोलर जलमीनार स्थापित किए गए. तीन महीने पूर्व जलमीनार बनकर तैयार हुआ. मगर इस प्रचंड गर्मी में ग्रामीणों को एक बूंद पानी भी मयस्सर नहीं हुआ. ग्रामीण आज भी दूसरे गांव के हैंडपंप पर आश्रित हैं. आलम ये है कि गांव के तालाब और नदी भी सूख चुके हैं. ग्रामीणों को स्नानादि नित्यकर्म के लिए दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.
आपको बता दें कि गांव के ऊपर टोला, नीचे टोला, छोटा टोला और उत्क्रमित मध्य विद्यालय गुढ़ा के बगल में सोलर आधारित जलमीनार का निर्माण संवेदक विकास साहू द्वारा कराया गया है. छोटा टोला में निर्मित जलमीनार की लागत 6 लाख 99 हजार 734 रुपये है और इसके लाभुकों की संख्या 19 है. नीचे टोला में निर्मित जलमीनार की लागत 10 लाख 40 हजार 627 रुपए है और इसके लाभुकों की संख्या 35 है. वहीं ऊपर टोला में निर्मित जलमीनार की लागत 7 लाख 3 हजार 42 रुपए है और इसके लाभुकों की संख्या 19 है. जबकि उत्क्रमित मध्य विद्यालय गुढा के बगल में निर्मित जलमीनार की लागत 13 लाख 55 हजार 696 रुपये है, इसके लाभुकों की सख्या 46 है. मतलब एक गांव के 119 परिवार के लिए पानी पर सरकार 37 लाख 99 हजार 99 रुपए खर्च करती है और ग्रामीण को एक बूंद पानी नसीब नहीं हो तो इसे किसका दुर्भाग्य कहेंगे ग्रामीणों की या सरकार की!
फोटो चारों बेकार पड़े सोलर जलमिनारों की
मजे की बात ये है कि संवेदक को भुगतान भी हो गया और उसका मोबाईल नम्बर भी बंद हो गया. इतना ही नहीं इसे तकनीकी स्वीकृति देने वाले कनीय अभियंता अश्विनी हेम्ब्रम से भी सम्पर्क किया गया मगर उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया. इतना ही नहीं क्षेत्र की मुखिया पानो मुर्मू से भी फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया गया, मगर उन्होंने भी फोन रिसीव नहीं किया. इस संबंध में मुखिया पानो मुर्मू ने बताया कि ग्रामीणों ने इसकी जानकारी उन्हें दी है. हमने विभाग को अवगत करा दिया है, मगर विभाग की ओर से इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है. जरा सोचिए जब मुखिया की बातों को संबंधित विभाग के अधिकारी तरजीह नहीं दे रहे तो आप समझ सकते हैं अधिकारी कितने बेलगाम हैं.
साइकिल पर दूसरे गांव से पानी ढोकर लाता ग्रामीण
ग्रामीण मालदे हांसदा ने बताया कि सरकार ने सुविधा जरूर दी मगर उसका लाभ हमें नहीं मिल रहा है. इस भीषण गर्मी में हमे दूसरे गांव से पानी ढोकर लाना पड़ रहा है. एक भी हैंडपंप नहीं है नदी- तालाब सूख गए हैं. काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
मालदे हांसदा ग्रामीण
वहीं ग्रामीण लखन सोरेन ने बताया कि तीन माह पूर्व गांव में सोलर जलमीनार बना. ग्रामीण काफी उत्साहित थे कि उनकी पानी की समस्या दूर हो गई, मगर आंधी के कारण सोलर पैनल क्षतिग्रस्त हो गया उसके बाद पानी गायब है, न संवेदक आता है न विभाग के अधिकारी सुध लेते हैं. काफी गर्मी पड़ रही है हम दूसरे गावों पर निर्भर हैं.
लखन सोरेन ग्रामीण
ग्रामीण राजाराम सोरेन ने बताया कि ग्रामीण जलापूर्ति योजना धरातल पर उतरते ही धराशायी हो गया है. हमें दो किलोमीटर दूर नित्य कर्म आदि के लिए जाना पड़ता है. हम बेबस हैं. सरकार ने हमारे लिए योजनाएं जरूर दी मगर बिचौलियों की वजह से हमें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. सरकार इसकी जांच कराए और दोषियों को दंडित करे.
राजाराम सोरेन ग्रामीण
वहीं ग्रामीण सोनाराम ने बताया कि चार में से दो सोलर जलमीनार से कभी- कभी थोड़ा- थोड़ा पानी मिलता है, मगर वह नाकाफी है. हमें दूसरे गांव से पानी ढोकर लाना पड़ रहा है सरकार इसे दुरुस्त कराए ताकि हमें इसका लाभ मिले. अभी भी हर घर तक पाइपलाइन नहीं पहुंचा है और संवेदक गायब हो गया है.
सोनाराम ग्रामीण
क्या मुख्यमंत्री के लिए खतरे की घंटी ?
झारखंड के इतिहास में आजतक किसी भी मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री रहते चुनाव नहीं जीता है. चाहे अर्जुन मुंडा हों या शिबू सोरेन, मधु कोड़ा हों या रघुवर दास. इसकी बड़ी वजह अपने विधानसभा की जनता से दूर होना और जनता की जिम्मेदारी अपने प्रतिनिधि को सौंपना रहा है. चंपाई सोरेन की सबसे बड़ी खासियत ये है कि वे चाहे विधायक रहें या न रहें, मंत्री बनने तक लागभग हर दिन सुबह से लेकर शाम तक अपने विधानसभा के एक- एक कार्यकर्ताओं से मुलाकात करना और जनता से सीधा संवाद करने के लिए जाने जाते हैं. मगर मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके जीवनशैली में बदलाव आया है. अब जनता या कार्यकर्ता से उनका सीधा संवाद बंद हो गया है. यह काम उनके प्रतिनिधि कर रहे हैं मगर जितनी सुगमता से क्षेत्र की जनता अपनी पीड़ा चंपाई दादा को बताते थे उनके प्रतिनिधियों को नहीं बता पाते. भले मुख्यमंत्री बनने के बाद चंपाई सोरेन ने राज्य के दूसरे विधानसभा की तुलना में अपने विधानसभा को कई बड़े सौगात दी है मगर जनता को उनका चंपाई दादा चाहिए मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन नहीं. जनता की यही टीस कहीं मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन पर भारी न पड़ जाए. वैसे चंपाई सोरेन के विषय में एक किंवदंती है कि हर चुनाव उन्हें “कुदरा भूत” जिताता है. क्या इसबार मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का “कुदरा भूत” उन्हें मुख्यमंत्री रहते चुनाव जिताकर झारखंड के लिए नया अध्याय लिखेगा ! यह देखना दिलचस्प होगा.