राजनगर (Pitambar Soy) जिन बेटियों को अपना पेट काट कर बुजुर्ग दम्पति ने लालन- पालन किया और बड़ी होने के बाद कर्ज लेकर एक- एक कर उनकी शादी दी. आज वही बेटियां अपने बुजुर्ग माता- पिता को अपने हाल पर जीने के लिए छोड़ दिया है. देखभाल की तो बात छोड़िये बेटियां अब अपने माता- पिता की खोज- खबर भी नहीं लेती.
हम बात कर रहे हैं, सरायकेला- खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड अंतर्गत गमदेसाई साप्ताहिक हाट मैदान में सालों से रह रहे असहाय बुजुर्ग दंपत्ति अनिल राणा एवं उसकी पत्नी बसंती राणा की. अनिल राणा की उम्र करीब 80 से 85 साल हो गई है. वहीं पत्नी बसंती राणा भी 70 साल के लगभग होगी. इन दोनों की चार- चार बेटियां होने के बाद भी ये उम्र के उस पड़ाव पर बदनसीबी की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं.
ईश्वर ने इनको कोई बेटा तो नहीं दिया, परंतु कहा जाता है कि मां- बाप को अंतिम समय में बेटों से प्यार मिले न मिले, बेटियां जरूर माता- पिता का ख्याल रखती हैं, मगर चारों बेटियों में से कोई इनकी सुध तक लेने नहीं आतीं. बेबश बुजुर्ग दम्पती एक- दूसरे का बेहद ख्याल रखते हैं. बुजुर्ग अनिल राणा अब ठीक से चल नहीं सकते, आंखों की रोशनी भी अब पहले की तरह नहीं रही. बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी नसीब होती है. भारी बारिश से मकान क्षतिग्रस्त हो चुका है. उन्होनें प्रसाशन से गुहार लगाई है कि उन्हें कम से कम एक अदद तिरपाल और मकान मरम्मती के लिए मुवावजा दिया जाए.
1964 में हुए राइट के बाद सरायकेला छोड़ राजनगर में आकर बसे
बुजुर्ग अनिल राणा बताते हैं कि 1964 के राइट के बाद वे सरायकेला छोड़ राजनगर में आकर बस गए और भाड़े की मकान पर रहने लगे. सरायकेला में पोस्ट ऑफिस के पास उनका घर था. राजनगर में आकर ताला का चाबी बनाना, पुराना टॉर्च रिपेरिंग करना और अनेकों छोटे- मोटे काम करके जीवन यापन करते थे. चार बेटियों को बड़ी मुश्किल से कर्ज लेकर विवाह कराया. यहां तक कि पोतियों को भी हमलोगों ने पाला पोसा. लेकिन आज हम दोनों को देखने वाला कोई नहीं है. अब शरीर में इतनी ताकत नहीं कि हम कमा कर खाएं. यहां सालों से दूसरों के मिट्टी के मकान में रह रहे थे, लेकिन बारिश से मकान भी एक तरफ ढह गया और दूसरा कमरा भी ढहने की स्थिति में हैं. वट वृक्ष और कटे फटे तिरपाल ही अब हमारा आशियाना है.
कोरोनकाला में लोगों से मांग कर किया गुजरा, स्वस्थ खराब रहने पर मेडिकल संचालक ने किया था दव- दारू
कोरोनाकाल के दौरान बुजुर्ग दम्पत्ति की हालत बेहद खराब थी. दोनों ने मांग- मांग कर गुजारा किया. समाजसेवी पूर्व उपप्रमुख विनय सिंहदेव ने भी राहत सामग्री देकर मदद किया था. वैसे हालात अब भी बदले नहीं हैं. कोरोनकाला में दोनों काफी गम्भीर रूप से बीमार भी थे, जिन्हें देखने वाला कोई नहीं था. तब मां मेडिकल के संचालक उज्ज्वल मोदक ने दम्पति का इलाज कराया था. साथ जीवन यापन के लिए समय- समय पर राशन और आर्थिक मदद भी किया करते थे.
पेंशन और राशन ही बना जीवन यापन का सहारा, मगर देखभाल के बिना लाचार
बुजर्ग दम्पति अनिल राणा एवं बसंती राणा को सरकार की ओर से वृद्धावस्था पेंशन मिलती है. साथ ही दस किलो आज मिलता है. बस यही दोनों बुजुर्गों का जीवन यापन का सहारा है, परंतु उन्हें देखभाल करने वाला कोई नहीं है. दोनों को तत्काल राहत सामग्री और तिरपाल आदि की सख्त जरूरत है.
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