सरायकेला-खरसावां में प्राचीन संस्कृति के महान पर्व रजो संक्रांति को लेकर जिले भर में त्यौहार की धूम रही. हालांकि कोविड-19 संकट का असर इस वर्ष भी रजो संक्रांति के परंपरागत आयोजन पर देखा गया. बावजूद इसके सभी परंपराओं का निर्वहन करते हुए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रजो संक्रांति का त्यौहार मनाया गया. मूलतः कृषि परंपरा से जुड़े रजो संक्रांति के इस अवसर पर किसान वर्ग सोमवार से 3 दिनों के लिए खेतों से दूर हो गए. बताया गया कि परंपरा को मानते हुए अगले 3 दिनों तक किसान खेतों में नहीं जाएंगे. और इस दौरान खेत या जमीन खोदने जैसे कोई भी कार्य नहीं करेंगे. सामाजिक रीति-रिवाजों के साथ जुड़े इस परंपरागत उत्सव के तहत रजो संक्रांति का दिन स्त्री प्रधान के रूप में मनाया जाता है. जिसके तहत सोमवार- मंगलवार को पेड़ों पर झूले टांगे गए. और स्त्रियों एवं युवतियों सहित बच्चों ने भी झूला झूलने का आनंद लिया. इस अवसर पर रजो के परंपरागत गीत भी गूंजते रहे.
इस दौरान घर के सारे खाना पकाने तक के घरेलू कार्य पुरुष वर्ग द्वारा किया गया. जिसमें विशेष रुप से पीठा पकवान पकाकर घर पर सामूहिक भोजन का आनंद लिया गया. यह पर्व प्राचीन सांस्कृतिक एवं धार्मिक मान्यता के अनुसार वर्ष के एक दिन रजो संक्रांति के अवसर पर धरती माता के भी रजोस्लाव होने की मान्यता रही है. जिसे लेकर रजो संक्रांति से 3 दिनों के लिए खेतों या जमीन की किसी भी साधन से खुदाई पर पाबंदी होती हैं.
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