खरसावां के जनजातीय कला- संस्कृति भवन में मंगलवार को आदिवासी हो समाज महासभा जिला कमिटि सरायकेला- खरसावां द्वारा ओत गुरू लाको बोदरा की 36 वीं पुण्यतिथी मनाई गई. बारी- बारी से हो समाज के लोगों ने ओत गुरू लाको बोदरा को श्रद्वाजंलि दी.
इस दौरान हो भाषा साहित्य के विकास का संक्लप लिया गया. मौके पर खरसावां प्रमुख मनेन्द्र जामुदा ने कहा कि ओत गुरू हो समाज के लिपि वारांग क्षिति के जनक है. उनका सारा जीवन आदिवासी समाज की सेवा के लिए समर्पित किया. जिला परिषद सदस्य कालीचरण बानरा ने कहा कि गुरु लाको बोदरा ने भाषा- लिपि, धर्म- दस्तूर आदि की रक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. खरसावां मुखिया सुनिता तापे ने कहा कि लाको बोदरा का जन्म 19 सितम्बर 1919 को अंगाई पनाई के दिन खूंटपानी प्रखंड के पैसया ग्राम के एक किसान परिवार में हुआ था. वारंग क्षिति लिपी के जनक कहे जाने वाले कोल गुरु लाको बोदरा ओत गुरू के रूप में पूरे कोल्हान में विख्यात हुए. भाषा और लिपि के प्रचार- प्रसार का दायित्व युवाओं पर है. उनके प्रयास से हो भाषा के वारंग क्षिती लिपि का विकास हुआ, जबकि हो समाज के केन्द्रीय सदस्य लाल सिंह सोय ने कहा कि इन्होने गांव- गांव जाकर लोगों को जागरूक किया. इस भाषा के लिपी निर्माण होने से आज कई स्कूल- काॅलेजों में इसका विधिवत पठन- पठान हो रहे हैं. लाको बोदरा की पुण्यतिथी पर श्रद्वाजंलि देने वालों में प्रमुख मनेन्द्र जामुदा, जिप कालीचरण बानरा, मुखिया सुनिता तापे, मुखिया मंगल सिंह जामुदा, पंसस आबिद खान, अजय सामड, राम लाल हेम्ब्रम, राया गुदूवा, भीम बोदरा, सालेन सोय सहित हो समाज के छात्र-छात्राए उपस्थित थे.
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