DESK REPORT दीपावली के मौके पर हर कारोबारियों की तरह पटाखा बेचनेवाले छोटे दुकानदार भी उम्मीद लगाए बैठे रहते हैं, मगर पुलिस- प्रशासन के सबसे सॉफ्ट टार्गेट पर छोटे पटाखा दुकानदार होते हैं. प्रशासन जहां कानून का हवाला देते हुए खुले में पटाखा बेचने पर रोक लगा देती है. वहीं प्रशासन के ही कुछ बाबुओं के मिलीभगत से किसी तरह मैनेज कर छोटे पटाखा दुकानदार अपनी दुकानें सजा लेते हैं. उसके बाद शुरू होता है खेल.
नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर एक पटाखा दुकानदार ने बताया कि हमें प्रशासन से चिन्हित स्थल पर पटाखा बेचने का आदेश दिया गया है, मगर चिन्हित स्थल पर ग्राहक नहीं आते हैं, ऊपर से चिन्हित स्थल पर दबंगई की वजह से दुकान लगाना संभव नहीं है. चोरी- छिपे बाजार में दुकान लगाते हैं यहां भी साहबों के नाम पर पटाखों का बंदरबांट हो जाता है. अगले साल से इस कारोबार को करना ही नहीं है. बताया कि इसमें सोशल मीडिया के नाम पर हड़काकर कुछ कथित पत्रकार भी शामिल हैं जो खुद तो धौंस दिखाकर पटाखे लेते ही हैं दूसरों को भी भड़काते हैं. बड़े कारोबारियों पर कोई हाथ नहीं डालता हम छोटे- मोटे दुकानदार बर्बाद हो जाते हैं.
सवाल ये है कि आखिर नियमों को सख्ती से अनुपालन क्यों नहीं कराया जाता है ? एक आंख में काजल एक आंख में सूरमा क्यों ! छोटे पटाखा कारोबारियों पर ही सख्ती क्यों बड़े व्यवसायियों पर क्यों नहीं ! फिर जिन साहबों के नाम पर हड़काकर पटाखा उनके हवेलियों तक पहुंचाई जाती है उन्हें भी यह सोचना चाहिए कि किसी के उम्मीदों का हनन कर किस मुंह से अपने घर को रौशन करें.