विजयादशमी पर्व पर सबसे पहले विजय दशमी पूजन किया गया इसके बाद सिंदूर दान उत्सव में महिलाओं ने बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया और मां दुर्गा से अखंड सौभाग्य का वरदान मांगा.सिदूर दान उत्सव के बाद दर्पण विसर्जन का कार्यक्रम हुआ. इसके पश्चात मां दुर्गा, मां महालक्ष्मी, मां सरस्वती, शंकर भगवान एंव महिषासुर की प्रतिमाओं को दरबार से आगे खुले चौक में लगाया गया. जहां सिंदूरदान का उत्सव किया गया. इस उत्सव में सर्वप्रथम महिलाओं ने माता दुर्गा को सिंदूर लगाया और उनसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लिया. सभी ने एक दूसरे को सिंदूर लगाकर विजयदशमी पर्व की बधाई भी दी. विजयदशमी के दिन बंगाली समुदाय में सिंदूर से होली खेलने की खास परंपरा रही है. मां दुर्गा को विदाई देने से पहले बंगाली समाज की महिलाओं ने सिंदूर की होली खेली. सुहागिन महिलाओं ने मां दुर्गा को सिंदूर लगाने के बाद बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाया. इस दिन महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर अपने सुहाग की रक्षा की प्रार्थना करती हैं. सिंदूर खेला मूलत: बंगाली समुदाय की परंपरा है. इसके तहत दशहरा के दिन मां दुर्गा की विदाई के पहले उन्हें सिंदूर लगाया जाता है. मान्यता है कि दुर्गा पूजा के दौरान मां दुर्गा अपने मायके आती हैं. दशहरा के दिन उन्हें सिंदूर लगाकर मायके से विदाई दी जाती है. इसके बाद वहां महिलाएं सिंदूर की होली खेलती हैं. इस दौरान कई जगह सिंदूर खेला का भी आयोजन किया गया. सिंदूर खेला में सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर दान करती हैं. इस दौरान भी काफी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया. विजयादशमी के अवसर पर आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में विवाहित महिलाएं ही हिस्सा लेती हैं। ज्यादातर महिलाएं लाल और सफेद रंग मिली-जुली साड़ी साड़ी पहन रखी थीं. सफेद रंग की साड़ियों पर सिंदूर खूब फब रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे होली का माहाैल हो.
सिंदूर खेला रस्म का क्या है महत्व
सिंदूर खेला बंगाली परंपरा का बेहद ही खास पर्व है. इस परंपरा की शुरूआत 450 साल पहले पश्चिम बंगाल और बाग्लादेश के कुछ हिस्सों से शुरू हुई थी. इस खास दिन विवाहित महिलाएं मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी की पूजा के बाद उनका उनका श्रंगार करती हैं और सिंदूर भी लगाती है. इसके साथ ही महिलाएं एक-दूसरे को भी सिंदूर लगाती हैं. इस त्योहार की मान्यता है कि इससे भगवान प्रसन्न होकर सभी महिलाओं को वरदान देते हैं.